सबकुछ देकर भी प्राप्त नहीं होता है वह बहुमूल्य है-महासागर महाराज
मदनगंज-किशनगढ़। मुनि सुधासागर महाराज ने आर.के. कम्यूनिटी सेन्टर में अपने प्रवचन में कहा कि इतनी जिनवाणी मां बोली रही है और बोलते बोलते सुनते सुनते अनन्त भव निकाल दिए। बोलने वाला थक गया लेकिन सुनने वाला अभी थका नहीं। तो भी वह हम नहीं कर पा रहे है जो वक्ता चाहता है। आखिर कभी हम ये सोचेंगे हमें कितने लोग सुनाएंगे। आखिर हमें कितने लोग पढ़ाएंगे। कभी हमें विचार आएगा कि कितने लोग निकल गए जो हमें सतमार्ग बताने के लिए उनकी जिंदगी कम पड़ गई। लेकिन हम अभी तक नहीं समझ पाए। महावीर स्वामी के 40 साल कम पड़ गए और सभी तीर्थंकरों को मिलाया जाए तो अनन्ता अन्नत भव कम पड़ गए हमें समझाने में। यानि हम कितने बुद्धू है यह हमारा निर्णय हो गया। मुनिश्री ने कहा कि तभी तब गलती करना जब तक मां बाप तुम्हें समझाते रहे कि बेटा ये करना ये नहीं करना। तब तक तो तुम्हारी खैरियत है। इतनी गलती तो तुम्हारी माफ है। किन्तु जब पिता के मुंह से यह निकलने लग जाए कि मैं तो थक गया कहते कहते समझाते समझाते। अब जो तेरी मर्जी है वो कर। जिंदगी में कभी तुम्हारें पिता ने यह शब्द बोल दिया तो तुम्हें हजारों हजारों भव तक तुम्हें ऐसा क्षेत्र मिलेगा जहां कोई समझाने वाला पहुंच ही नहीं पाएगा। वहीं अगर तुम्हारे से कोई गलती हुई है और तुम्हारें पिताजी से कोई शिकायत करे। उसके बाद तुम्हारें पिता अगर ये बोले कि उससे ये गलती हो गई ? उससे ये होना तो नहीं चाहिए, मुझे विश्वास है मेरे बेटे पर। तो समझ लेना तुम्हें परम पिता मिले है। कल तुम्हें साक्षात भगवान और गुरू मिलेंगे। इतना बड़ा विश्वास तुम्हारे पिताजी का तुम्हारे ऊपर। क्या कोई बालक अपने पिता का इतना विश्वास जीत पाया है ?
इससे पूर्व मुनि महासागर महाराज ने अपने प्रवचन में कहा कि हम अपनी अज्ञानता के कारण ही अपने निज स्वभाव को पहचान नहीं पा रहे है और यही गलती हम अनादि काल से पर्याय दर पर्याय करते आ रहे है। और आज जब इस दुर्लभ पर्याय को प्राप्त कर लिया उसके उपरांत भी संसारी प्राणी धन दौलत एकत्रित कर रहा है, रत्नों का ढ़ेर लगा रहा है। इन सब चीजों का संग्रह करने में वह अपने इस रत्नमयी जीवन को व्यर्थ में गंवा देता है। यानि करना क्या था और कर क्या रहे है। यही सबसे बड़ी अज्ञानता इस जीव को संसार में रूलाती है। इसीलिए आज प्रत्येक व्यक्ति दु:खी है। मुनिश्री ने सम्यक दृष्टि और मिथ्या दृष्टि का भेद बताते हुए कहा कि मिथ्या दृष्टि पर पदार्थ को अपना मानता है, वो जो चेतन अचेतन संबंध होते है को अपना मानता है। किन्तु जो निज को अपना मानता है वह है सम्यक दृष्टि। मुनिश्री ने कहा कि सबसे ज्यादा व्यक्ति अगर किसी का दास है तो वह स्वयं की इच्छाओं का दास है। उन्होंने कहा जो पर्याय हमें मिली है हम उससे बहुत ऊपर जा सकते है मगर हमें इसका ज्ञान ही नहीं है। आप वो रत्न हो जो कीचड़ में पड़ा हुआ है। अभी वो मुकुट की शोभा नहीं बन पा रहा है। आपकी क्या कीमत है कुछ भी कहा नहीं जा सकता है। संसार में सामान्य वस्तु की कीमत है। कीमती क्या है ? जिस वस्तु को हम धन देकर खरीद ले उस वस्तु की कोई कीमत नहीं मानी गई है। आप भले ही उसे कीमती कहो, लेकिन उसे कीमत नहीं कहा जा सकता है। जो भी वस्तु किसी द्रव्य के बदले मिल जाए उसे आचार्यों ने सामान्य कहा है। बहुमूल्य क्या है ? जो सबकुछ देकर भी प्राप्त नहीं होता है वह बहुमूल्य है। मनुष्य पर्याय जो आपको मिली है इसे आप पुन: प्राप्त करके दिखाओ। 84 लाख और चार गतियों में अगर आपकी यह मनुष्य पर्याय खिसक गई तो कुछ नहीं बचेगा। क्योंकि मनुष्य योनी को छोड़कर कोई भी योनी काम की नहीं है। मुनिश्री ने कहा कि जीवन निर्वाह करते करते हमें जीवन निर्माण करना है। और ये तब होगा जब हम अपने दोषों को हटाएंगे और गुणो को अन्दर लाएंगे। तभी हमारे जीवन का विकास होगा।
ये रहे श्रावक श्रेष्ठी
श्री दिगम्बर जैन धर्म प्रभावना समिति के मीडिया प्रभारी विकास छाबड़ा के अनुसार प्रात: अभिषेक एवं शांतिधारा, चित्र अनावरण, दीप प्रज्जवलन, शास्त्र भेंट, पाद प्रक्षालन, सायंकालीन आरती एवं वात्सल्य भोज पुण्यार्जक का सौभाग्य भवान कुणाल विनोद रिषभ ऊषा हर्षा मंजूला क्रिपा हर्षवी प्राची जैन (गडा) मुम्बई परिवार को मिला।