आपकी जन्म कुण्डली के ग्रहो द्वारा आपका वास्तु निर्धारण

डा. राकेश गोयल
डा. राकेश गोयल

तकदीरे बना नहीं करती सिर्फ दिषाओं से ।
जब तक सितारे ना हो बुलन्द हमारे विचारों से ।।
सिर्फ दिषायें बदलने से दषा नहीं बदल सकती ।
जिन्दगी बिना सितारों के सुधर नहीं सकती ।।
केवल दिषाये बुलन्द नहीं करती तकदीरो को ।
तकदीरे बुलन्द होती है सितारों के मिजाजों से ।।

आज के इस वर्तमान युग में वास्तु का हर जगह बोलबाला है, हर व्यक्ति जो अपने लिए एक छोटा सा आषियाना बनाना चाहता है वो भी नित नये वास्तुकारो के चक्कर लगाता रहता है और अपनी जिज्ञासा षान्त करने की कोषिष करने में लगा रहता है, मेरा यह ज्वलंत प्रष्न है कि क्या उसे सही मार्गदर्षन मिल रहा है, और क्या वह अपने भवन को सही वास्तु के अनुसार निर्माण करा रहा है । यहां मेरा इस बात से तात्पर्य किसी वास्तुकार विद्वान या वास्तु के नियमों को ललकारना चा चेलेन्ज करना नहीं है बल्कि मेरे पच्चीस वषों के षोध एवं अनुभव के आधार पर लोगो को इस विषय में सही जानकारी उपलब्ध कराना है ।
वास्तु जो कि ज्योतिष का ही एक अंग है, बिना वास्तु के ज्योतिष एवं बिना ज्योतिष के वास्तु दोनो ही अधूरे है, हमारी जन्म कुण्डली के बारह भाव अपने आप में पूरा वास्तु चक्र है, जन्म कुण्डली का लग्न पूर्व दिषा, चतुर्थ स्थान उत्तर दिषा, सप्तम स्थान पष्चिम दिषा, दषम स्थान दक्षिण दिषा द्वितिय एवं तृतिय भाव ईषान कोण ‘‘उत्तर-पूर्वी कोण’’, पंचम एवं षष्ठ भाव वायव्य कोण ‘‘उत्तर-पष्चिम कोण’’, अष्टम एवं नवम भाव नैऋत्य कोण ‘‘दक्षिण-पष्चिम कोण’’, तथा एकादष एवं द्वादष भाव आग्नेय कोण ‘‘दक्षिण-पूर्वी कोण’’, का प्रतिनिधित्व करते है। यहां देखने लायक बात यह है कि जब कुण्डली में ही बारह भावों को इस प्रकार निर्देषित किया गया है जिस प्रकार की किसी भी भूखण्ड में वास्तु पुरूष की कल्पना की गई है, तो मेरा यह कहना और मानना है कि फिर किसी भी मकान या भूखण्ड का वास्तु देखते समय उस व्यक्ति उस भूस्वामी की कुण्डली की और ध्यान क्यों नहीं दिया जाता है, और मात्र वास्तु के नियमों को ही क्यों देखकर किसी भी व्यक्ति को हम अपनी सलाह दे देते है ।
यहां मैं आपका ध्यान एक उदाहरण के माध्यम से आर्क्षट करना चाहता हूं, मान लो कि किसी षहर में एक पूरी कालोनी पूर्व देखते मकानों की है तो स्पष्ट है कि सभी मकान पूर्व मुखी है और वास्तु के नियमों के अनुसार पूर्व मुखी मकान या भूखण्ड सबसे अच्छा माना गया है, तो मेरा आपसे यह पूछना है कि क्या उस कालोनी में रहने वाले सभी परिवार करोडपति या सर्व प्रकार से सुखी होंगे मेरा जवाब ना में होगा कारण बामुष्किल बीस प्रतिषत परिवार बहुत सुखी होगें 20 प्रतिषत सुखी होगें कुछ मध्यम होगें और कम से कम 40 प्रतिषत परिवार बहुत दुखी भी होंगे, ऐसा क्यों, जबकि वास्तु के नियमों के अनुुसार पूर्व मुखी मकान सबसे बेहतर माने गये है । इसी प्रकार माना कि कोई कालोनी दक्षिण दिषा या दक्षिण-पष्चिम दिषा देखती है तो स्पष्ट है कि उस कालोनी में सभी मकान दक्षिण या दक्षिण-पष्चिम देखते होंगे, और वास्तु के नियमों के अनुसार दक्षिण मुखी या दक्षिण-पष्चिम मुखी मकान बहुत खराब माना गया है तो यहां फिर मेरा आपसे यह पूछना है कि क्या ऐसी कालोनी में रहने वाले सभी परिवार बहुत परेषान या बहुत दुखी होंगे, मेरा जवाब होगा नहीं, ऐसी कालोनी में भी कुछ परिवार बहुत सुखी करोडपति होगें कुछ सुखी होंगे कुछ मध्यम होगें और बामुष्किल 20-30 प्रतिषत परिवार ही बहुत परेषान होगें । तो फिर ऐसा क्यों जब कि वास्तु के नियमों के हिसाब से पूर्व दिषा सबसे अच्छी और दक्षिण या दक्षिण-पष्चिम दिषा सबसे खराब है, ऐसा मेरे विचार एवं पच्चीस वर्षो के अध्ययन एवं अनुसंधान के बाद प्राप्त निर्णयों से मेरा यह मानना और अनुभव है कि कोई भी दिषा या कोई भी कोण खराब नहीं है, खराब है तो हमारी कुण्डलियों में हमारी ग्रह स्थिति ।
जिस प्रकार कुण्डली के बारह भाव आठो दिषाओं को प्रदर्षित करते हैं उसी प्रकार हमारी कुण्डली में स्थित हमारे ग्रह भी अपनी-अपनी दिषाओं के मालिक है हर ग्रह का अपनी-अपनी दिषाओं पर पूर्ण आधिपत्य है, और जिस प्रकार हमारी कुण्डलियों में हमारे ग्रहों की षुभाषुभ स्थिति है उसी के अनुरूप कोई भी दिषा हमारे लिए षुभ या अषुभ हो सकती है । जैसे सूर्य पूर्व दिषा का मालिक है, मंगल दक्षिण दिषा, षनि पष्चिम दिषा, बुध उत्तर दिषा, गुरू उत्तर-पूर्व ईषान कोण का, षुक्र दक्षिण-पूर्व आग्नेय कोण का, चन्द्रमा उत्तर-पष्चिम वायव्य कोण का तथा राहु-केतु दक्षिण-पष्चिम नैऋत्य कोण के स्वामी है । इसी हिसाब से कौनसा ग्रह हमारी कुण्डली में बलवान है या कौनसा ग्रह कमजोर है उसी हिसाब से उस दिषा में बनाया गया मकान ही हमारे लिए षुभ या अषुभ रहेगा, यहां यह बात आपके जेहन में आ सकती है कि कोई भी मकान या भूखण्ड किसी एक या दो व्यक्तियों के नाम ही होगा किन्तु उस मकान में उसका पूरा परिवार निवास करता है तो फिर किसी एक की कुण्डली के हिसाब से दिषा का निर्णय कैसे हो, तो यहां मैं आपको यह भी स्पष्ट कर दूं कि जिस प्रकार हमारे षरीर में कोई भी बीमारी आनुवांषिक रूप से आती है उसी प्रकार एक परिवार एक खून में करीब-करीब एक ही ग्रह खराब या एक ही ग्रह अच्छी स्थिति में होता है जैसे मान लो किसी व्यक्ति की कुण्डली में सूर्य उच्च का या स्वराषि या बलवान है तो यह निष्चित है कि उसकी समस्त संतानों में सूर्य की स्थिति अच्छी ही होगी, परिवार के किसी भी सदस्य की कुण्डली में सूर्य खराब नहीं होगा, उसी प्रकार यदि किसी व्यक्ति की कुण्डली में मंगल या अन्य कोई ग्रह नीच का या षत्रु क्षेत्री या पाप प्रभाव में है तो परिवार के अन्य सदस्यों की कुण्डलीयों में भी वह ग्रह निष्चित रूप से खराब ही होगा, अतः परिवार के समस्त सदस्यों की कुण्डलियों का विवेचन करने की आवष्यकता नहीं है मात्र घर के मुखिया की कुण्डली का विवेचन ही काफी है ।
अब पुनः हम हमारे मूल प्रष्न की और चलते है कि जिस प्रकार हमारी कुण्डली में हमारे ग्रहो की षुभाषुभ स्थिति है उसी के अनुरूप ही सर्वप्रथम दिषा का निर्णय होना चाहिये कि मकान कौनसे मुखी या किस दिषा की और उसका मुख्य द्वार होना चाहिये मान लो यदि आपकी कुण्डली में सूर्य बलवान है तो आपको पूर्वमुखी मकान अत्यधिक फायदेमंद होगा और यदि इसके विपरीत यदि सूर्य कुण्डली में कमजोर है, सूर्य जनित पूर्व जन्मों का दोष कुण्डली में दिखाई देता है तो पूर्व दिषा कितनी ही अच्छी दिषा हो यही पूर्व दिषा का मकान आपका सुख-चैन छीन लेगा कारण यहां सूर्य आप और आपके परिवार पर अत्यधिक विपरीत दूषित प्रभाव डालेगा क्योंकि अपनी दिषा में ही सभी ग्रह पूर्ण बली होते हैं, इसी प्रकार यदि आपकी कुण्डली में मंगल बलवान हो तो हमेषा दक्षिण मुखी मकान में निवास करे और अगर राहु बलवान हो तो दक्षिण-पष्चिम दिषा में ही आपका प्रवेष द्वार रखे भले ही वास्तु के नियमों के हिसाब से यह दिषा कितनी ही खराब हो, इसी प्रकार अन्य ग्रहों की स्थिति को ध्यान में रखते हुए ही आपके मकान या भूखण्ड का निर्णय करे, क्यों कि जो ग्रह आपकी कुण्डली में सर्वश्रेष्ठ बलवान है, आपको अच्छे फल प्रदान करने की स्थिति में है और यदि फिर उसी ग्रह की दिषा में आप अपना मकान बनाते हैं तो वह मकान आपके लिए अत्यधिक षुभ रहेगा, कारण आपकी कुण्डली का सर्वश्रेष्ठ ग्रह अपनी दिषा में पूर्ण बली होता है, अपनी दिषा का मालिक होता है, और अपनी दिषा में ही अपने पूर्ण षुभ फल प्रदान करता है इसके विपरीत जो ग्रह कुण्डली में कमजोर या पाप फलदायक है उसकी दिषा में मकान या निवास होने पर वह अपना पूर्ण पाप फल प्रदान करता है ।
यहां मैं आपको यह भी स्पष्ट करना चाहता हूं कि मेरे इन तर्को से मेरा तात्पर्य वास्तु के मूल सिद्धान्तों की अवहेलना करना कतई नहीं है, किसी भी भूखण्ड या मकान में वास्तु के मूल सिद्धान्त वास्तु पुरूष के अनुसार वही रहेंगे जैसे की ईषान कोण में पानी का टैंक एवं पूजा स्थल होना चाहिये, आग्नेय कोण में घर की रसोई, वायव्य कोण में मेहमानों का कमरा एवं नैऋत्य कोण में घर के मुखिया का मुख्य षयन-कक्ष, एवं नैऋत्य कोण का हिस्सा मकान के बाकी सभी हिस्सों से उपर एवं भारी होना चाहिये तथा ब्रहम क्षेत्र खुला एवं साफ होना चाहिये इत्यादि-इत्यादि वास्तु के मूल नियम वही रहेंगे चाहे जिस भी दिषा में मकान हो किन्तु दिषा का निर्णय कुण्डली के अनुसार ही होना चाहिये तभी वह मकान आपके लिए षुभ एवं सही वास्तु सम्मत निवास होगा ।
अतः यह स्पष्ट है कि मात्र वास्तु के नियमों को ध्यान में रखकर ही किसी मकान या भूखण्ड का निर्णय नहीं किया जा सकता, अपितु उसके मालिक और उसके परिवार की कुण्डलियों का विष्लेषण करके ही ग्रहो की स्थिति एवं उनकी दिषाओं को ध्यान में रखकर ही इस बात का निर्णय किया जाना चाहिये कि मकान या भूखण्ड उस भूस्वामी के लिए षुभ भी रहेगा या नहीं । इस लेख के माध्यम से मेरा उद्देष्य आम दुनिया को मात्र सही वस्तुस्थिति से अवगत कराना है, ना कि किसी की भावनाओं को कोई ठेस पहुंचाना, किन्तु यदि फिर भी मेरे इस लेख से किसी की भावनाओं को ठेस लगती हो तो उसके लिए मैं क्षमाप्रार्थी हूं।
‘‘इति षुभम्’’
डॉ राकेष गोयल
ज्योतिष अनुसंधानकर्ता
भव्य ज्योतिष विज्ञान अनुसंधान केन्द्र
3, ब्रहम्पुरी, कचहरी रोड, अजमेर-305001
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