‘‘माधुर्य के अकेले अवतार कर्मयोगी श्रीकृश्ण’’

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर विषेष
dinesh muni 1– दिनेश मुनि (श्रमण संघीय सलाहकार) – एक प्रसिद्ध कहावत है ‘महापुरुष जन्म से नहीं कर्म से होते हैं’। जन्म लेते समय मनुष्य एक साधारण सा मानव होता है किन्तु धीरे धीरे संस्कार, षिक्षा, उच्च चारित्र बल एवं पूर्वकृत अच्छे पुण्योद्वय के कारण अपने व्यंिक्तत्व को विकसित ओर प्रभावषाली बनाता हुआ एक दिन मानव से महामानव बन जाता है। वह कंठ धन्य है जिसमें श्री प्रभु का मंगलमय नाम लिया जाता है, वे कान धन्य है जो श्री प्रभु की महिमा का श्रवण करते हैं।
श्री प्रभु का एक दिव्य स्वरुप है भगवान् श्रीकृष्ण। जिनके जन्म लेते ही धरती पर आनंद और सुख की लहरें उठी। भय, आतंक से पीड़ित प्रजा में आषा कि एक किरण फूटी कि हमारा ‘तारणहार’ आ गया। वैदिक परम्परा में श्रीकृष्ण भगवान् विष्णु के पूर्व अवतार माने जाते हैं। जैन परम्परा के अनुसार भी त्रेसठ (63) शलाका पुरुषों में एक शलाका पुरुष श्रीकृष्ण ‘वासुदेव’ के नाम से विख्यात है।
धरती पर माधुर्य के अवतार अकेले श्रीकृष्ण ही तो हुए। वे ऐसे पुरुष हुए जिन्होंने अपने जीवन में न कभी जप किया, न तप किया, न जंगलों में जाकर साधना की लेकिन फिर भी वे धरती के भगवान् स्वीकार किए गए। जन्म से लेकर निर्वाण तक एक भी माला नहीं जपी ओर न ही किसी तरह की साधना की। प्रेम ही उनकी साधना थी और आत्मविष्वास ही उनकी आराधना थी। श्रीकृष्ण की मुरली एवं उनका सुदर्षन चक्र भी मानवता के लिए अमृत वरदान था। चक्र द्वारा मानवता के लिए कलंक बन चुके आतताइयों और आतंकवादियों का सफाया किया ओर समग्र मानवता को प्रेम का सन्देष दिया जिससे सम्पूर्ण मानवता का एक धरातल पर प्रतिष्ठापन हुआ।
श्रीकृष्ण का जीवन ज्ञान एवं कर्म का समन्वित जीवन था। जो उपदेष उन्होंने दूसरों के लिए दिये उसी उपदेष को स्वयं के जीवन में भी चरितार्थ किया। पापियों के संहारक ओर भक्तों के तारक दोनो रुप श्रीकृष्ण के है। श्रीकृष्ण की गीता आत्म विष्वास का शास्त्र है। 18 अध्यायों की गीता उनकी अनुपम देन है। गीता तो धरती का वह अनुपम षिखर है जिससे सारे विष्व को जीवन जीने की कला और समृद्धि की फिजाऐं मिली है।
गीता ही धरती का वह परम शास्त्र है जो मनुष्य को अधिकारों के संरक्षण का विष्वास देता है। आज जिन मानवाधिकारों की रक्षा की बात की जाती है अगर उनकी रक्षा के लिए धरती पर सबसे पहला शंखनाद किसी ने किया तो वह है श्रीमद् भगवद् गीता। कर्मयोग ही गीता का मूल सन्देष है, कर्म आपके कामधेनु की तरह है, वही व्यक्ति वही देष आगे बढ़ रहे हैं जिन्होंने ऊँचे लक्ष्य के साथ ऊँचा प्रयत्न किया है।
इस धरा पर किसी व्यक्ति ने गऊओं की सेवा के लिए अपने ईष्वरत्व को भी समर्पित किया तो धरती पर वह अकेलाषख्स केवल कर्मयोगी श्रीकृष्ण ही हुए। जिस नारी के प्रति इंसानी नज़रिया हमेषा गलत रहा उसके प्रति अगर आध्यात्मिक प्रेम का, ईष्वरीय प्रेम का संगान अगर

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किसी ने किया तो वह भी श्रीकृष्ण ही हुए। श्रीकृष्ण का तो एक एक कण अपने आप में प्रेम ओर माधुर्य से ओत प्रोत है।
आज जन्माष्टमी का पवित्र दिवस है। आज देष में लाखों करोड़ों श्रीकृष्ण के भक्त है जो मन्दिरों में जाकर दर्षन करके अपने आपको धन्य मानते हैं पर क्या किसी भक्त के दिल में दया नहीं आती कि श्रीकृष्ण की गौमाता जो है उसकी हालत क्या हो रही है? लाखों गायें प्रतिदिन कत्लखानों में काटी जा रही है। श्रीकृष्ण की जन्म कर्म स्थली इस भारत भूमि पर लाखों करोड़ों छोटे बड़े कत्लखाने है। इस देष में हिंसा का महाताण्डव श्रीकृष्ण के भक्तों एवं शान्ति के पुजारियों के लिए दिल दहलाने वाला है। अगर इस देष में कृष्ण भक्त एवं इसके अलावा जो भी श्रद्धालु श्रीकृष्ण को दिल में बसाकर यह प्रण ले कि मैं एक गाय का पालन पोषण करुंगा तो इस देष से बहुत जल्दी कत्लखानों मे गायें कटना बंद हो जाएगी।
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के पावन दिवस पर मेरा यही कहना है कि आप व्रत रखकर, मन्दिरों में पूजा प्रसाद चढ़ाकर श्रीकृष्ण का जन्म दिवस मनाते हैं तो मनाएँ परन्तु श्रीकृष्ण के आदर्ष चरित्र ओर उनके नैतिक उपदेषों के एक एक सूत्र को जीवन में धारण करने के साथ साथ गौमाता रक्षण के लिए आगे आये, गौमाता की सेवा करेंगे तो श्रीकृष्ण जन्माष्टमी मनाना सार्थक होगा। अंत में इतनी ही…..
संकट में है आज वो धरती, जिस पर तूने जन्म लिया।
पूरा कर दे आज वचन वो, गीता में जो तूने दिया।।

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