जीवित व्यक्ति की मूर्ति बनाकर उसकी पूजा करना बेढंगा कार्य है उसके स्थान पर उनकी शिक्षाओं और सद्गुणों को अपनायें—- एक बार गांधीजी को एक पत्र मिला, जिसमें लिखा था कि शहर में गांधी मंदिर की स्थापना की गई है, जिसमें रोज उनकी मूर्ति की पूजा-अर्चना की जाती है। यह जानकर गांधीजी परेशान हो उठे। उन्होंने लोगों को बुलाया और अपनी मूर्ति की पूजा करने के लिए उनकी निंदा की। इस पर उनका एक समर्थक बोला, ‘बापूजी, यदि कोई व्यक्ति अच्छे कार्य करे तो उसकी पूजा करने में कोई बुराई नहीं है।’ उस व्यक्ति की बात सुनकर गांधीजी बोले,
‘भैया, तुम कैसी बातें कर रहे हो? जीवित व्यक्ति की मूर्ति बनाकर उसकी पूजा करना बेढंगा कार्य है।’ इस पर वहां मौजूद लोगों ने कहा, ‘बापूजी हम आपके कार्यों से बहुत प्रभावित हैं। गांधीजी बोले ”आप मेरे किस कार्य से प्रभावित हैं?’ यह सुनकर सामने खड़ा एक युवक बोला, ‘बापू, आप हर कार्य पहले स्वयं करते हैं, हर जिम्मेदारी को अपने ऊपर लेते हैं और अहिंसक नीति से शत्रु को भी प्रभावित कर देते हैं। आपके इन्हीं सद्गुणों से हम बहुत प्रभावित हैं।’
गांधीजी ने कहा, ‘यदि आप मेरे कार्यों और सद्गुणों से प्रभावित हैं तो उन सद्गुणों को आप लोग भी अपने जीवन में अपनाइए। तोते की तरह गीता-रामायण का पाठ करने के बदले उनमें वर्णित शिक्षाओं का अनुकरण ही सच्ची पूजा-उपासना है। इस तरह उन्होंने अपनी पूजा रुकवाई।
अपनी गलतियों को कैसे सुधारें—–
बात उन दिनों की है जब कलकत्ता में हिन्दू – मुस्लिम दंगे भड़के हुए थे। ऐसी स्थिति में गाँधी जी वहां पहुंचे और एक मुस्लिम मित्र के यहाँ ठहरे। उनके पहुचने से दंगा कुछ शांत हुआ लेकिन कुछ ही दोनों में फिर से आग भड़क उठी। तब गाँधी जी ने आमरण अनशन करने का निर्णय लिया और 31 अगस्त 1947 को अनशन पर बैठ गए। इसी दौरान एक दिन एक अधेड़ उम्र का आदमी उनके पास पहुंचा और बापूजी से बोला” मैं तुम्हारी मृत्यु का पाप अपने सर पर नहीं लेना चाहता, लो रोटी खा लो।” और फिर अचानक ही वह रोने लगा, ”मैं मरूँगा तो नर्क जाऊँगा!”“क्यों ?”, गाँधी जी ने शालीनता से पूछा। उस आदमी ने कहा ”क्योंकि मैंने एक आठ साल के मुस्लिम लड़के की जान ले ली।” ”तुमने उसे क्यों मारा ?”, गाँधी जी ने पूछा। ”क्योंकि उन्होंने मेरे मासूम बच्चे को जान से मार दिया।” आदमी रोते हुए बोला।
गाँधी जी ने कुछ देर सोचा और फिर बोले,” मेरे पास एक उपाय है।” आदमी आश्चर्य से उनकी तरफ देखने लगा।
”उसी उम्र का एक लड़का खोजो जिसने दंगों में अपने माता-पिता खो दिए हों, और उसे अपने बच्चे की तरह पालो, लेकिन एक चीज सुनिश्चित कर लो कि वह एक मुस्लिम होना चाहिए और उसी तरह बड़ा किया जाना चाहिए।”
गाँधी जी ने अपनी बात ख़तम की।
जब किसी ने बापूजी के मुहं पर थूका तो वे बोले एक ने तो अपना गुस्सा थूका भले ही मेरे मुंह पर ही क्यों न थूका हो।
बात भारत-पाकिस्तान बटवारे के दौरान की है, जब देश में हिन्दू-मुस्लिम दंगे हो रहे थे। तब बापू दंगे शांत कराने को बंगाल गए थे वहां पर आक्रोशित मुसलमान भाइयों को जब गांधी जी समझाने का प्रयास कर रहे थे तो एक मुसलमान ने गांधी जी के मुंह पर थूक दिया। ऐसा देख कांग्रेस सेवादल के कार्यकर्ताओं ने उसे पकड़ा तो गांधी जी ने कहा कि इन लोगों में गुस्सा है और मुझे ख़ुशी है कि किसी एक ने तो अपना गुस्सा थूका भले ही मेरे मुंह पर ही क्यों न थूका हो। इतना सुनकर वह मुस्लिम युवक उनके पैरों पर गिर पड़ा और वहां हो रहे दंगे कम हुए।
बापूजी ने विभिन्न आन्दोलनों के दोरान करीब 79000 किलोमीटर पदयात्रा की और करीब एक करोड़ शब्द लिखे—–(पैदल चलना व्यायम का राजा है )
महात्मा गांधीमानते थे कि पैदल चलना व्यायाम का राजा है, इसलिए वे बहुत लंबी दूरी के लिए भी किसी साधन की बजाय पैदल चलने को तरजीह देते थे। वे अपने पूरे जीवन में औसतन रोज 18 किलोमीटर पैदल चले। इतनी पैदल यात्रा में तो वे दो बार धरती का चक्कर लगा सकते थे! 1913 से 1938 तक विभिन्न आंदोलनों के दौरान 25 वर्षों में वे करीब 79,000 किलोमीटर पैदल चले। देश केलिए चालीस साल के स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान गांधीजी ने करीब 1 करोड़ शब्द लिखे यानी रोज करीब 700 शब्द। उन्होंने मूल रूप से सात किताबें लिखीं और भगवद गीता का गुजराती में अनुवाद किया।
बापूजी का धर्म के बारे में विचार
बापूजी कहते थे कि”मेरी धर्म पर गहरी आस्था है, में इसके लिये अपने प्राण दे सकता हूँ | लेकिन धर्म व्यक्तिगत मामला है | राज्य का मेरे धर्म से कोई समबन्ध नहीं है | गांधीजी के लिये स्वच्छता एक काम या आदत नहीं वरन जीने का एक तरीका था |
सकंलनकर्ता—- डा. जे.के. गर्ग