
-अमलेन्दु उपाध्याय- गुजरात के राधनपुर शहर में दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल को हिरासत में लिए जाने के बाद भाजपा और “आप” के कार्यकर्ताओं के बीच दिल्ली और लखनऊ में संघर्ष हुआ। दिल्ली और लखनऊ में “आप” के कार्यकर्ताओं ने भाजपा के खिलाफ कथित प्रदर्शन/ हमला किया। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक दिल्ली स्थित भाजपा मुख्यालय के समक्ष आआपा कार्यकर्ताओं के प्रदर्शन के दौरान दोनों पार्टियों के कार्यकर्ताओं के बीच घमासान हुआ। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक ही गुजरात में केजरीवाल को कथित हिरासत में लिए जाने के विरोध में भाजपा मुख्यालय के समक्ष प्रदर्शन करने पहुंचे ‘“आप”’ कार्यकर्ता भाजपा मुख्यालय में घुस गए। कहा जा रहा है कि 49 दिन के दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल, भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी के गुजरात में विकास कराने के दावों का ‘निरीक्षण’ करने गुजरात गए हुए हैं।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक दोनों तरफ से लाठी, पत्थर चले जिसमें “आप” कार्यकर्ता घायल हो गए। दिल्ली में “आप” के बड़े नेता आशुतोष और राजमोहन गांधी की हमलावरों की अगुवाई करते हुए और “आप” कार्यकर्ताओं पर लाठी लेकर पिलते भाजपा कार्यकर्ताओं की तस्वीरें सोशल मीडिया में तैर रही हैं, जो सब कुछ बयाँ कर रही हैं।
आम आदमी पार्टी बार-बार इसे शांतिपूर्ण प्रदर्शन कह रही है जबकि प्रथम दृष्टया यह प्रदर्शन नहीं निश्चित तौर पर हमला वह भी पूर्व नियोजित हमला है। हमला इसलिए है क्योंकि “आप” कार्यकर्ता अगर गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ रोष प्रकट करने गए थे, तो उसकी सही जगह गुजरात भवन थी, न कि भाजपा दफ्तर। अभी तक जो खबरें आई हैं, उसके मुताबिक केजरीवाल को रोककर चुनाव आचार संहिता लागू होने की जानकारी दी गई थी…. इसके बावजूद हम यह मानते हैं कि इसमें मोदी सरकार की बदमाशी भी थी, लेकिन क्या इसके आधार पर भाजपा के दफ्तरों पर “आप” के हमले को जायज ठहराया जा सकता है ? स्पष्ट है, केजरीवाल को गुजरात प्रशासन ने रोका था या कथित हिरासत में लिया था, भाजपा ने नहीं रोका था, इसलिए भाजपा दफ्तरों पर हमले/ प्रदर्शन का कोई औचित्य कहीं से लेकर कहीं तक नहीं है।
गुजरात सरकार के विरुद्ध प्रदर्शन का स्थान गुजरात भवन था, भाजपा मुख्यालय नहीं। … और अगर एक बारगी यह मान भी लिया जाए कि भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व के खिलाफ भी प्रदर्शन करना जरूरी था तो लखनऊ में भाजपा दफ्तर पर “आप” कार्यकर्ता क्या करने गए थे ? क्या यूपी भाजपा की भी गुजरात में कोई भूमिका थी ? फिर लखनऊ में भाजपा दफ्तर पर हमले को कि आधार पर जायज ठहराया जाए?
दरअसल यह कथित प्रदर्शन या तो गुजरात भवन पर होना चाहिए था या चुनाव आयोग पर होना चाहिए था, वहां गुजरात सरकार की शिकायत करनी चाहिए थी, गृह मंत्रालय में शिकायत करते वहां प्रदर्शन करते, लेकिन भाजपा कार्यालयों पर हमला कतई जायज नहीं है। वैसे भी दिल्ली में राज्यों के भवनों पर रोज़ प्रदर्शन होते ही रहते हैं। मुजफ्फरनगर सांप्रदायिक हिंसा के बाद भाजपा या सपा के दिल्ली कार्यालयों पर प्रदर्शन नहीं हुए, यूपी भवन पर हुए।
मैं जब “आप” के इस प्रदर्शन को बार-बार हमला लिख रहा हूँ तो पूरे होश-ओ-हवास में ही इसे हमला लिख रहा हूँ। और अगर यह हमला नहीं है तो “आप” का कोई सुधीजन यह बताएगा कि “आप” कार्यकर्ता, भाजपा दफ्तर पर क्या करने गए थे ? जो सूचनाएं आ रही हैं उनके मुताबिक लखनऊ में “आप” के जिम्मेदार लोगों द्वारा शाम 6 बजे पत्रकारों को फोन किया गया और कहा गया कि भाजपा दफ्तर पर हंगामा होगा। जरूर पहुँचे। टीवी वाले और अखबारों के फोटोग्राफर पहुँच गए। 6.45 पर “आप” के लगभग 40 लोगों ने नारे बाजी शुरु की, फिर बैनर फाड़ना शुरू किया। अंदर भाजपा के कोई 70-80 कार्यकर्ता थे जो “आप” के हमलावरों पर टूट पड़े।
वैसे केजरीवाल जी को दिल से बधाई देने का मन कर रहा है। उन्होंने बहुत ही सलीके से दो चीज़ें एकदम स्पष्ट कर दीं।
पहली कि गुण्डई करने पर मोदीभक्तों-संघ गिरोह का ही अधिकार नहीं है, “आप” उनके भी बाप हैं… और उन्हीं सियासी औजारों के प्रयोग से मीडिया हाईलाइट्स में आ रहे हैं, जिन औजारों को संघ गिरोह प्रयोग करता रहा है। वरना अभी तक तो वेलेंटाइन डे पर युवकों की पिटाई करना, लेखकों पर हमले करना, सांस्कृतिक आयोजनों में हंगामा करना, इत्यादि पर संघ और उसके बगलबच्चा संगठनों का ही कॉपीराइट था, केजरीवाल और आप ने उस कॉपीराइट को तोड़ा है।
दूसरी यह भी स्पष्ट हो गया कि भाजपा कार्यालयों में हथियारों का जखीरा हमेशा जमा रहता है… वरना अचानक हुए हमले से टक्कर लेने के लिए भारी संख्या में पत्थर, ईंट और लाठियां भाजपा दफ्तरों में कहां से आ गईं। इससे यह तो स्पष्ट हो गया कि भाजपा दफ्तरों में युद्ध के साज-औ-सामान हमेशा मौजूद रहते हैं।
अब यक्ष प्रश्न यह है कि केजरीवाल और “आप” ऐसी हरकतें कर क्यों रहे हैं? क्या वे वास्तव में मोदी और भाजपा का विकल्प बन गए हैं या विकल्प बनने के आस-पास पहुँच गए हैं?
ऐसा कुछ भी नहीं हैं, दरअसल यह “आप” और भाजपा की नूरा कुश्ती है, मोदी को पायदा पहुँचाने की केजरीवाल की एक नाकाम कोशिश है। बहुत साफ है कि केजरीवाल अभी तक भाजपा के मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित करने में नाकामयाब रहे हैं और उन्हें जो भी समर्थन मिला है वह उन मतदाताओं का है जो कांग्रेस, या तीसरी धारा के दलों से नाराज़ हुए उनके मतदाता हैं। जाहिर है कि केजरीवाल ऐसे ओछे सियासी टोने-टोटके करके भाजपा की ही मदद कर रहे हैं, वह किसी भी प्रकार यह भ्रम पैदा करना चाहते हैं कि मोदी को टक्कर वही दे सकते हैं, ताकि गैर भाजपा मतदाताओं में किसी भी प्रकार बिखराव पैदा हो और अंत में फायदा केजरीवाल के पितृ संगठन संघ परिवार को ही पहुँचे।
वैसे भी केजरीवाल और मोदी के न रास्ते अलग हैं, न लक्ष्य अलग हैं, न संस्कार अलग हैं और न रसोई अलग है… दोनों ही संघ परिवार की रसोई का भोजन करके सियासत में शिखर पर पहुँचे हैं। यही कारण है कि दोनों में संघ परिवार का कर्ज़ चुकाने की होड़ मची है। मोदी और केजरीवाल एक सिक्के के दो पहलू नहीं एक ही पहलू हैं। बस अंतर इतना है कि मोदी कम पढ़े लिखे हैं इसलिए सियासी धूर्तता में उन्नीस पड़ रहे हैं जबकि केजरीवाल पढ़े-लिखे हुनरमंद हैं इसलिए बाईस पड़ रहे हैं। लेकिन दोनों का अंतिम लक्ष्य संघ परिवार और कॉरपोरेट जगत की सेवा करना ही है।
अमलेन्दु उपाध्याय, लेखक राजनीतिक विश्लेषक व हस्तक्षेप.कॉम के संपादक हैं।