लगा पहचान था जो मेरा बेगाना सा मिझसे मिला
आसमान से भी मिलता है वो बड़े ताव से
जर्रा था मगर खुद को खुदा कहता मिला
छूके जब आयी हवाएं उसे
ये पुरवाई भी मुझको अपना कहता मिला
ख्वाब के संदूक में बिखरी पड़ी थी यादें
याद मुझको करके कोई दीवाना ख्वाब में मिला
चांदनी बरस रही है जैसे चेहरे से मेरे
जाने क्यूं है मुझको ख्वाबों में अपना कहता मिला
कुछ नहीं लिखा है किताबों में मेरे
ये अहसास है दिल के जो अक्सर मुझसे उलझा मिला
सांसों से रिश्ता गर न होता कोई तो शायद
‘नाज’ से कोई अजनबी भी क्यूं ऐसे अपना सा मिला
मीनाक्षी ‘नाज’