……यों बदलाव की राह खोल रही बिहारी बयार

शमेन्द्र जडवाल
शमेन्द्र जडवाल
कुदरत का यह नीयम है कि,जब भी कभी बदलाव की बयार चल निकली है ,उसने आस पास काफी कुछ लपेट लिया होता है। मैं यह तो नही मानता कि, बिहार मे हारी भाजपा मे कोई बहुत बड़ा बदलाव आएगा किन्तु यह भी सच है कि, विरोधी बयार कुछ ऐसे ही सकेत जरूर दे रही है यहाँ।
बिहार में कुछ सीट, और मिली हार के बाद से भाजपा में बड़ा उथल पुथल मचा है। वयोवृद्ध नेता लालकृष्ण – आडवाणी,मुरली मनोहर जोशी और यशवंत सिन्हा जैसे मार्गदर्शकों ने पार्टी नेतृत्व की कार्य र्शैली पर तीखा हमला बोल दिया है। साझाबयान में पार्टी के नेतृत्व पर सवाल खड़े किये गए हैं। इनका सा मानना हैकी,दिल्ली विधान सभा की हार के बाद से कोई सबक नहीं लिया गया।एक साल से पार्टी कमजोर हो रही है….!
इनका यह भी मानना है की, इस नई हार के मसले पर विस्तार से चर्चा होनी चाहिए।जीतने का श्रेय लेना और हारने के बाद भाग जाना, यह सब नही चलेगा।इधर हिमाचल के पूर्व मुख्य मंत्री शांत कुमार ने भी इनकी बातों का समर्थन कर दिया है।उधर – भाजपा की हार से संघ खेमे में भी, स्वर मुखर हुए — हैं। सूत्रों के मुताबिक बड़े नेता अडवाणी ,जोशी ने अपने बयानों से पहले संघ पदाधिकारियों से मुलाक़ात की थी।उन्हें अपनी बात आगे बढ़ाने का हरी संकेत मिला भी किन्तुसाफ् किया गया की इस मसले में मोदी महाशय को न घसीटा जाय!
लगता है की, संघ प्रमुख मोहन भागवत के मन में मोदी महाशय के प्रति नरमी का रुख साफ़ है। उन्होंने विश्व मंच पर भारत को नए आयाम में प्रस्तुत जो किया है।शायद यही वजह रही होगी । यूँभी मोदी जी पर कोई आरोप कहाँ है।
लगता तो यह भी है की संघ के दिग्गज इस बयानबाजी को लेकर एक तीर से दो निशाने लगा रहे हैं । एक तो पार्टी नेत्रत्व को बोलने दिया जाए दूसरा इससे श्रीमोदी पर अंकुश तना रहे। यो भी – देखाजाये तो संघ का काम करने का अपना ही तरीका होता है।वो खुद सीधे सीधे कभीं उलझन खड़ी नहीं करते?
गौरतलब है कि,चुनाव के निपटते ही बिहारी बाबू यानि भाजपा के ही सांसद और फ़िल्म जगत में अपने समय के जाने माने कलाकार शत्रुघ्न सिन्हा पर भी कारवाही किये जाने की मांग उठाई गई थी।लेकिन लगता है इस नए त्रिकोण के चलते उन पर गाज ना गिरे। यो भी उन्होंने खुलकर कुछ ख़ास नहीं कहा।और यदि पार्टी नेतृत्व ऐसों पर कारवाही करता है तब तो मानकर चलिए भाजपा के दिन और बहुआयामी हो ही जाएंगे!
राजनीती के जानकारों का मानना ये भी है की, पार्टी नेतृत्व और संघ के लिए कोई न कोई एक्शन
लेना अब जरुरी लगता है। और इस कारण कुछ बड़े नेताओं को सत्ता से बदला जाना ही रास्ता दिख रहा है, चूँकि पार्टी की साख सर्वोपरि है। बस इसीसे…ये…
वैसे भी बदलाव की बयार जो चल पड़ी है बिहार ही से। कई पार्टी से जुड़े समर्पितों का सोच भी यही कहती हैकि अब कुछ नया हो ही जाना चाहिए पार्टी हित मे !
शमेन्द्र जडवाल

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