अखबार में आलेख प्रकाशित करके अंत में लिख दिया जाता है कि “इस लेख के सभी विचार लेखक के स्वयं के हैं ” या “इस कालम में प्रकाशित बातों के लिए संपादक की सहमति आवश्यक नहीं है” – और ऐसा करके संपादक अपने आप को जिम्मेदारी से बचा लेता है।
फिल्म या सीरियल के शुरू में डिस्क्लेमर लिख कर कि “इस फिल्म को सेंसर बोर्ड ने UA सर्टिफिकेट जारी किया है। अतः इसे देखने का निर्णय दर्शक अपने विवेक के अनुसार लें।” या “इस फिल्म /सीरियल के कुछ दृश्य आपको विचलित कर सकते हैं (हिंसात्मकता /वीभत्सता /जुगप्सा /भयानकता के कारण)।” धार्मिक /राजनैतिक /जातिवादी /आरक्षण / ईश्वर विरोधी /परंपरा विरोधी इत्यादि फिल्म /सीरियल /पुस्तकों आदि में भी इस तरह के कथन छाप कर संपादक /प्रकाशक /लेखक/ निर्माता /निर्देशक/सेंसर बोर्ड अपनी जिम्मेदारी किसी दूसरे पर डाल कर खुद को बचा लेते हैं।
अब हम वहाटसएप ग्रुप की बात करें।
यहाँ एडमिन की ओर से ऐसे किसी डिस्क्लेमर की गुंजाइश नहीं है।
जबकि सच्चाई यही है कि एडमिन का अपने ग्रुप में शेयर की गयी किसी भी सामग्री पर कोई नियंत्रण नहीं है।
फिर उस सामग्री के लिए एडमिन को गिरफ्तार क्यों किया जाए?
फेसबुक पर कुछ लिखने पर क्या मार्क जकरबर्ग को अरेस्ट किया जाता है?
इस हिसाब से तो वहाटसएप इस तरह से बनाया जाना चाहिए कि जब कोई सदस्य किसी बात को ग्रुप में शेयर करना चाहे तो वह पहले सिर्फ एडमिन को भेजे । फिर अगर एडमिन पढ़कर उसे पास करे तो ही वह ग्रुप में शेयर हो वरना एडमिन चाहे तो डिलीट कर दे ग्रुप में शेयर होने से पहले ही। केवल तब ही हम एडमिन को जिम्मेदार ठहरा सकते हैं। जब तक वर्तमान स्थिति में वहाटसएप है – एडमिन को जिम्मेदार नहीं ठहराया जाना चाहिए।
एक प्रयास……
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