जब जैशा भूख-प्यास की शिद्दत से बेहोश होकर गिरी तब सिर्फ एक भरतीय एथलीट ज़मीन पर नहीं गिरी थी | बल्कि भारत का सम्मान मौजूदा हुकूमत के कारण विदेशी धरती पर गिर गया था | जब जैशा भूख-प्यास की हालत में बेहोश होती है तब नरेन्द्र मोदी जी की लजर सरकार की कमज़ोर खेल नीति और व्यवस्था पूरी दुनियाँ के सामने उपहास का विषय बन जाती है |
दूसरी जानिब रियो ओलंपिक के सफ़र की सच्चाई यह है कि तमाम राजकीय सुविधाओं के साथ बड़ी क्लास में हवाई सफ़र करने वाले अधिकारीगण जैशा को मौत के अँधेरे समुन्दर में धकेल देते हैं और जैशा अपनी मंज़िल से 12 किलोमीटर पहले ही लड़खड़ाने लगती है और इसी भूख और प्यास की शिद्दत से वह आगे बढ़ती है और फिनिशिंग लाइन क्रास कर बेहोश हो कर ऐसी गिरती है कि उसके दोनों हाथों के ज़रिये 9 बोतल गुलूकोज़ उसके शरीर में डाला जाता जिस के पश्चात वह लगभग 3 घंटे बाद होश में आती है |
अगर जैशा रियो में मौत और ज़िन्दगी की जंग लड़ रही थी तो खिलाड़ियों को दी जाने वाली सुविधाओं के आभाव से तंग आकर एक नेशनल लेबल की खिलाड़ी पूजा भारत सरकार के खिलाड़ियों के प्रति अपनाये जा रहे इस उदासीन रवैये से उकता कर न सिर्फ मौत को गले लगा लेती है बल्कि अपने खून से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी को एक सुसाइड नोट भी लिखती है जिसमें वह प्रतिभाशाली खिलाड़ियों को सुविधाएं देने की गुहार करते हुए इस दुनियाँ को अलविदा कहते -कहते व्यवस्था पर बहुत सारे सवाल खड़े कर जाती है |
मैं रियो ओलंपिक में हुयी इस लापरवाही के लिए व्यवस्थापक के रूप में गए अधिकारियों पर राष्ट्रद्रोह का मुक़दमा चलाने की मांग करते हुए नैतिकता के आधार पर इन दोनों दुर्घटनाओं के लिएभारत सरकार के खेल मंत्री से इस्तीफ़े की मांग करता हूँ |
चौधरी मुनव्वर सलीम
