राम नाम की अंगूठी पहन कर लेने वाला टीपू सुलतान हिन्दू विरोधी !

यह कैसा अन्याय है कि मुस्लिम टोपी का विरोध करने वाले मोदी तो धर्मनिरपेक्ष और अपनी ज़िंदगी की आख़री सांस भारत माँ को आज़ाद कराने के लिए राम नाम की अंगूठी पहन कर लेने वाला टीपू सुलतान हिन्दू विरोधी !

मुल्क में अब गोडसे तो ज़िंदा रहेगा लेकिन देश के लिए अपनी जान न्योछावर करने वालों का नाम भी ज़िंदा नहीं रहने दिया जाएगा

चौधरी मुनव्वर सलीम
चौधरी मुनव्वर सलीम
– चौधरी मुनव्वर सलीम- कालमार्क्स के यह जुमले कर्नाटक भाजपा के नेताओं के गाल पर एक तमंचा है चूंकी इन जुमलों से यह साबित होता है कि टीपू की जंग सिर्फ और सिर्फ भारत माता की हिफाज़त के लिए की गयी जंग थी यदी उसे सत्ता का ही विस्तार करना होता तो वह भी निजाम और मराठों की तरह अँगरेज़ से संधी कर लेता और ३० बरसों तक कंही हिन्दुस्तान को आज़ाद कराने की जंग नहीं लड़ता और जो अपने राष्ट्र से इतनी बेलोस मोहब्बत करता हो वह उसकी प्रजा से किस दर्जे का प्रेम करता होगा यह भाजपा के संकीर्ण सोच के नेताओं की समझ नहीं आयेगा !
हाँ टीपू क्रूर था ,निर्दयी था अत्याचारी था लेकिन सिर्फ अँगरेज़ के लिए ,भारत माता को गुलामी की जंजीरों में जकड़ने वालों के लिए शायद इसीलिए अहिंसा के देवता मोहनदास करमचंद गांधी ने पहली बार हिंसा का समर्थन करते हुए अपने अखबार “यंग इंडिया ” में २३ जनवरी १९३० को लिख दिया था कि “ शेर की एक दिन की ज़िन्दगी लौम्डी के सौ सालों की ज़िंदगी से बहतर है ” बापू यही नहीं रुके , टीपू के मन में अँगरेज़ के खिलाफ धधकते हुए हिंसात्मक लावे की सरहाना करते हुए बापू ने आगे लिखा कि “उसकी (टीपू की ) शान में कही गयी एक कविता की यह पंक्तियाँ याद रखे जाने योग्य हैं ““खुदाया , जंग के खून बरसाते बादलों के नीचे मर जाना ,लज्जा और बदनामी की ज़िंदगी जीने से बहतर है ”” ! अहिंसा की मूरत बापू की कलम से लिखे गए यह जुमले क्या राष्ट्र प्रेम के लिए टीपू की हिंसात्मक कार्यवाही का समर्थन नहीं करते हैं !

मोदी जी आप अपने स्वयं के और भाजपा नेताओं के मन में उदारता पैदा करो चूंकी किसी मज़हब की टोपी को ठुकराकर,सबका साथ सबका विकास का नारा मात्र देने से महान नहीं बना जाता ! महान बनने के लिए क्या करना होता है उसके लिए मैं टीपू सुल्तान की एक उदारवादी मिसाल के साथ अपनी कलम को विराम देता हूँ कि मई २०१४ को मध्य लन्दन में स्थित क्रिस्टी नीलाम घर में टीपू सुलतान की एक अंगूठी नीलाम की गयी इस एक मात्र सोने की अंगूठी की कीमत एक व्यक्ती ने एक करोड़ ४२ लाख ८७ हजार २६५ रूपये अदा की इतनी बड़ी कीमत टीपू की महानता का ऐलान करती है यह कीमत न सिर्फ टीपू की महानता को दर्शाती है बल्की उसकी उदारता की एक ऐसी मिसाल है जिसे सुनकर कर्नाटक भजपा के नेताओं तुम्हारा सर शर्म से झुक जाएगा चूंकी यह अंगूठी गौरे अँगरेज़ ने १७९९ में श्री रंगापट्टीनम में शहीद टीपू के हाथ से उतारी थी और इस अंगूठी पर मर्यादा पुरुषोत्तम राम का नाम लिखा हुआ था ! निलामे के पश्चात लंदन के क्रिस्टी नीलाम घर ने यह उल्लेख किया कि “ यह अदभुत है कि महान मुस्लिम योद्धा हिन्दू देवता के नाम वाली अंगूठी पहने हुआ था ” !
मैं मुल्क के अवाम से पूछना चाहता हूँ कि यह कैसा अन्याय है कि मुस्लिम टोपी का विरोध करने वाले मोदी तो धर्मनिरपेक्ष और अपनी ज़िंदगी की आख़री सांस भारत माँ को आज़ाद कराने के लिए राम नाम की अंगूठी पहन कर लेने वाला टीपू सुलतान हिन्दू विरोधी ! यह कैसे दोहरे मापदंड है

पिछले 1 ½ साल में हिन्दुस्तान ऐसे खौफनाक दौर से गुजरा है जिसमे धर्मनिरपेक्षता,सदभावना और एकता जैसे शब्दों को जैसे दफन ही कर दिया गया हो !लेकिन अब जिस तरह आज़ादी के ६७ साल बाद राष्ट्र प्रेम से लबरेज़ ज़ेहनीयतों,आज़ादी के मतवालों और माँ भारती को गुलामी की जंजीरों से आज़ाद कराने वाले जुनूनी जिहादियों को अपमानित किया जा रहा है ,उससे उन तमाम भारत माँ के सपूतों की आत्माएं खून के आंसू बहा रही होंगी जिन्होंने हँसते-हँसते हिन्दुस्तान की जंग-ए-आज़ादी में खुद को फना कर लिया था !
वैसे तो अखबार और समाचार पत्र रोज़ ही इंसानी खून से रंगे हुए आते है लेकिन पिछले ६ माह से एक नई तरह की खबर समाचार पत्रों की सुर्खी बन रही है और वह सुर्खी है स्वतंत्रता संग्राम के सेनापतियों का अपमान, मौजूदा भाजपा हुकूमत और उसके सहयोगी संगठनों द्वारा आये दिन किसी न किसी ऐसे भारत माँ के सपूत के बारे में अपमानजनक और काबिल-ए-मजम्मत भाषा का इस्तेमाल हो रहा है जो मुल्क के १२० करोड़ शहरियों के ज़मीर को झिंझोड़ देती है !
भाजपा ने अपनी संकीर्ण मानसिकता का परिचय देते हुए सर्वप्रथम मौलाना मो.अली जौहर फिर महात्मा गांधी और अब शेर-ए-मैसूर टीपू सुलतान को अपनी नफरत का निशाना बनाया है ! दरअसल हुआ यह है कि वोह कांग्रेस जो जंग-ए-आज़ादी के अहम सिपहसालार मौलाना मो.अली जौहर को मेरे द्वारा भारत रत्न दिए जाने की मांग पर उस वक़्त खामोश रही जब संसद में मेरी इस मांग से भड़क उठे भाजपा सांसद बलबीर पुंज ने मौलाना को पकिस्तान निर्माता बता कर मौलाना की तमाम देश भक्ती की दास्तान को पामाल कर दिया था ! मैंने तो उस समय सदन में खड़े होकर यही कहा था कि इस बात पर संसद से सडक तक बहस होना चाहिए चूंकी मौलाना हिन्दुस्तान की आज़ादी की मांग करते हुए गोलमेज़ कान्फ्रेन्स में पकिस्तान निर्माण के २७ बरस पहले ही इस फानी दुनिया से मुंह मोडकर हमेशा-हमेशा के लिए इस आरज़ी दुनिया को अलविदा कह गए थे !
वही कांग्रेस जो अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे मौलाना मो.अली जौहर के इस अपमान पर खामोश रहती है और २२ दिसंबर २०१४ को इस खुमारी को तोड़ते हुए कर्नाटक के कांग्रेसी मुख्यमंत्री टीपू सुलतान की जयंती को धूम-धाम से मनाने की बात करते हैं तब भाजपा के कर्नाटक इकाई के वरिष्ठ नेता टीपू सुलतान को “क्रूर शासक” की संज्ञा देकर यह कहते हुए इस होने वाले जशन का विरोध करते हैं कि “टीपू ने कर्नाटक में जबरन धर्मांतरण कराया था” !
जब मेरे जैसे देशप्रेमी की निगाह अखबार की इस दिल दहला देने वाली खबर पर पढी तो मुझे महात्मा गांधी के वोह बोल याद आ गए जो इन संकीर्ण मानसिकता के लोगों के गाल पर एक अहिंसक तमाचा हैं ! चूंकी माँ भारती के सबसे होनहार और योग्य सपूत यानी महापुरुष महात्मा गांधी ने ऐसे ही साम्प्रदायिक लोगों को ज़हन में रख कर स्वयं के अखबार “यंग इंडिया” में २३ जनवरी १९३० के प्रष्ठ क्रमांक ३१ पर शेर-ए-मैसूर के लिए लिखा था कि “मैसूर के फतह अली (टीपू सुलतान) को विदेशी इतिहासकारों ने इस प्रकार पेश किया है कि मानों वह धर्मान्धता का शिकार हो जबकी वास्तविकता इसके बिलकुल विपरीत है चूंकी टीपू के सम्बन्ध हिन्दू प्रजा के साथ बहुत ही अच्छे थे ! मैसूर राज्य के पुरातत्व विभाग के पास ऐसे पत्र मौजूद हैं जो टीपू सुलतान ने श्रंगेरी मठ के शंकराचार्य को १७९३ में लिखे थे इनमें से एक पत्र में टीपू ने शंकराचार्य के एक पत्र की प्राप्ती का उल्लेख करते हुए उनसे निवेदन किया है कि वह (शंकराचार्य) ,उसकी (टीपू) और सारी दुनिया की भलाई,कल्याण और खुशहाली के लिए तपस्या तथा प्रार्थना करें ” !
महात्मा गांधी अपने अखबार में आगे लिखते हैं कि “ उपरोक्त पत्र के अंत में टीपू ने शंकराचार्य से यह भी निवेदन किया है कि वे मैसूर आयें क्यूँकी किसी भी देश में अच्छे लोगों के रहने से वर्षा होती है,फसल अच्छी होती है और खुशहाली आती है ” !
वैसे तो महात्मा गांधी द्वारा लिखी गयीं यह पंक्तियाँ उन तमाम साम्प्रदायिक ज़हनीयतों के लोगों के लिए काफी है जो टीपू जैसे महान स्वतंत्रता संग्राम के योद्धा को अपने राजनैतिक स्वार्थ के लिए अपमानित कर रहे हैं ! जो लोग टीपू की जयंती समारोह को विवादों में डाल रहे हैं तथा कर्नाटक की राज्य विधान परिषद की अध्यक्ष की संवैधानिक कुर्सी पर आसीन रहते हुए भाजपा के वरिष्ठ नेता शंकर मूर्ती कहते हैं कि “टीपू ने मंदिर तोड़े हैं पहले उस पर बहस होना चाहिए ” !
शायद ऐसे ही नफरत पसंद लोगों को तहरीरी जवाब देने के लिए बापू ने २३ जनवरी १९३० में “यंग इंडिया” में यह लिखा था कि “ टीपू सुलतान ने हिन्दू मंदिरों विशेष रूप से श्री वेंकटरमण,श्री निवास तथा श्री रंगनाथ मंदिरों को ज़मीनें एवं अन्य वस्तुओं के रूप में बहुमूल्य उपहार दिए ” ! बापू आगे लिखते हैं कि “कुछ मंदिर तो टीपू के महलों के आहतों में थे ! यह उसके (टीपू के) खुले ज़हन,उदारता और सहशुणता का जीता जागता प्रमाण था ” !
मैं बापू के इन जुमलों के पश्चात भाजपा नेता शंकर मूर्ती से पूंछना चाहता हूँ कि वह अपनी कोठी में या फिर उनकी पार्टी के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ७ रेस कोर्स पर स्थित अपने महल में एक ऐसी मस्जिद तामीर करने की इजाजत दे सकते हैं जहाँ सुबह से लेकर रात तक पंच वक़ता आज़ान और नमाज़ हो , मैं ही नहीं बल्की पूरा हिन्दुस्तान जानता है कि जिस प्रधानमंत्री ने रोज़ा अफ्तार कार्यक्रम तक दिखावे के लिए भी अपने महल में आयोजित नहीं किया वोह क्या अपने आवास में मस्जिद बनाने की अनुमती देगा ! लेकिन जिस शेर-ए-मैसूर को भाजपा के वरिष्ट नेता शंकर मूर्ती ने टीपू की देश्भाक्ती को नज़रंदाज़ कर मंदिर तोड़ने वाला बताया है ! उस टीपू की उदारवादी सोच का अंदाजा बापू द्वारा लिखे हुए इस एक वाक्य से लगाया जा सकता है कि “टीपू एक महान शहीद था ,जो किसी भी द्रष्टी से आज़ादी की राह का हकीकी शहीद माना जाएगा उसको (टीपू को) अपनी इबादत में हिन्दू मंदिरों की घंटियों से कोई परेशानी नहीं होती थी ” !
बापू के द्वारा टीपू के संदर्भ में लिखे गए यह जुमले वर्तमान राजनीतिक परिपेक्ष के लिए ऐसी डॉ धारी तलवार साबित हुए हैं ,जिससे एक ओर तो टीपू की उदारवादी छबी खुलकर सबके सामने आ जाती है और दूसरी ओर जो लोग मस्जिदों से यह कह कर लाउड स्पीकर उतारने की बात कर रहे हो कि इनसे पांच बार व्यवधान पैदा होता है ! और यही लोग उस टीपू पर मंदिर तोड़ने का आरोप लगा रहे हों जो मंदिरों की घंटियों के बीच अपनी इबादत करता हो ! तब ज़हनियत का जो बड़ा विरोधाभास नजर आता है वह नई नस्ल में भी एक ऐसी दुर्भावना का संचार करता है जो यकीनी तौर पर वर्तमान और आने वाले हिन्दुस्तान के लिए खतरनाक साबित होगा !
ऐसा नहीं हैं कि यह पहली बार हुआ हो कि टीपू की देशभक्ती से अपनी ईर्ष्या के चलते संकीर्ण ज़हनियत के लोगों ने टीपू पर धर्मांतरण जैसे गंभीर आरोप लगायें हों लेकिन आज जब उसी कर्नाटक से टीपू के खिलाफ नफरत अंगेज़ आवाजें भाजपा नेताओं के मुख से निकली हैं जिस कर्नाटक रूपी भारत माँ के हिस्से को अँगरेज़ की के नापाक क़दमों को वापस लौटाने के लिए अपना सब कुछ न्योछावर करने वाले टीपू को क्रूर तथा हिन्दू विरोधी शासक कहा जा रहा हो, तब यहाँ मुझे उडीसा के पूर्व राज्यपाल और मशहूर तारीखदां विशम्भर नाथ पाण्डेय जी की किताब “इतिहास के साथ यह अन्याय ” के प्रष्ठ क्रमांक ६ पर अंकित वह स्वर्ण अक्षरों में लिखी जाने वाली पंक्तियाँ मुल्क तक पहुंचाने के लिए मेरा धर्मनिरपेक्ष मन मजबूर कर रहा है ! जो एक करारा जवाब है उन भाजपा नेता सुरेश कुमार जैसे संकीर्ण मन और मस्तिष्क के लोगों के लिए जो टीपू की जयंती समारोह का विरोध कर टीपू को हिन्दू विरोधी साबित करने की नाकाम कोशिश कर रहे हैं !
उडीसा के पूर्व राज्यपाल बी.एन.पाण्डेय जी लिखते हैं कि – मेरे एक पत्र के जवाब में मैसूर गजेटियर का नया संस्करण तैयार करने वाले और मैसूर विश्वविध्यालय के प्रो.श्री कनटाईया लिखते हैं कि “ तीन हजार ब्रहामडों की आत्महत्या की घटना ” मैसूर गज़ेटियर में कहीं भी नहीं मिलती ! उन्होंने टीपू के हिन्दू प्रेम और धर्मनिरपेक्षता की तारीफ करते हुए लिखा कि पं. पूनैया टीपू के प्रधानमंत्री थे और टीपू के सेनापती भी एक हिन्दू पं. क्रष्ण राव थे ! प्रो.श्री कनटाईया ने अपने पत्र के साथ मैसूर के १५६ ऐसे मंदिरों की सूची बी.एन.पाण्डेय जी को भेजी है जिन्हें टीपू वार्षिक अनुदान दिया करते थे !
मैं यहाँ इन नफरत पसंद लोगों से कहना चाहता हूँ कि तुम हिन्दू राष्ट्र का नारा लगाकर हिन्दुस्तान के अल्पसंख्यकों को चाहे वोह मुसलमान हों ,सिख हों,ईसाई हों,जैन हों,पारसी हों या बोद्ध हों लेकिन तुम, इन्हें अपने मज़हब पर चलने वाला आम शहरी नहीं मानकर हिन्दू राष्ट्र बनाकर इन्स्हें हिन्दू कहलवाना अपनी शान समझ रहे हो और उस टीपू को क्रूर शासक कह रहे हो जिसने अपना प्रधानमंत्री और सेनापती तक एक हिन्दू को बनाकर धर्मनिरपेक्षता की वोह तारीखी मिसाल पेश की है जिसे रहती दुनिया तक उसकी उदारवादी सोच के रूप में याद किया जाता रहेगा !
कर्नाटक भाजपा के वरिष्ठ नेता सुरेश कुमार ने टीपू के राष्ट्रप्रेम को तिलांजली देते हुए कहा कि “टीपू को ऐसा व्यक्ती नहीं माना जा सकता जिनकी जयंती सरकार को मनानी चाहिए ” ! तब सवाल यह पैदा होता है कि अगर महाराष्ट्र में भाजपा सरकार के रहते यदी देश के सबसे पहले आतंकी गोडसे का जन्मदिन मनाया जाए और अँगरेज़ से लड़ते-लड़ते अपनी औलाद तक को अँगरेज़ की गुलामी में गिरवी रखने वाले और अपने खून की एक-एक बूँद मात्रभूमी की हिफाज़त में बहा देने वाले तथा अपने लहू से आजादी के वटवृक्ष को सींचित करने वाले टीपू की जयंती का विरोध करना क्या यह साबित नहीं करता कि मुल्क में अब गोडसे तो ज़िंदा रहेगा लेकिन देश के लिए अपनी जान न्योछावर करने वालों का नाम भी ज़िंदा नहीं रहने दिया जाएगा! जिस गोडसे ने अहिंसा की मूरत को मिस्मार किया था उसी महात्मा ने २३ जनवरी १९३० को टीपू के राष्ट्रप्रेम की गाथा को कुछ यूं अपने अल्फाजों में लिखा था कि “ टीपू ने आजादी के लिए लड़ते हुए अपने जान देदी और दुश्मन के सामने हथियार डालने के प्रस्ताव को सिरे से ठुकरा दिया ! जब टीपू की लाश उन अज्ञात फौजियों की लाशों में पाई गयी जो मात्रभूमी की रक्षा करते हुए शहीद हो गए थे तो देखा गया कि मौत के बाद भी उसके हाथ में तलवार थी ! वह तलवार जो आज़ादी हासिल करने का ज़रिया थी ” !
लेकिन नफरत के अलमबरदार बन चुके इन भाजपा नेताओं पर बापू के द्वारा बोले गए उपरोक्त शब्दों का क्या असर होगा जो बापू के हत्यारे गोडसे का महीमा मनडन संसद में खड़े होकर कर रहे हों ! लेकिन मैं इन ,टीपू,बापू और मो.अली जौहर से नफरत करने वालों को अपनी जुर्रतमंद कलम के ज़रिये यह बताना चाहता हूँ कि ,आज भी यह तीनों महानातामाएं हिन्दुस्तानी अवाम के दिलों में इज्ज़त का आला मुकाम रखती है ! चूंकी हिन्दुस्तानी अवाम ने इनके पार्थिव शरीर को ही महान नहीं माना है बल्की महात्मा की महान उपाधी यह साबित करती है कि हकीक़त में इनकी आत्माएं भी महान थी !
अगर इन्हें अपमानित करने की कोशिश की गयी तो इसके अंजाम भी बहुत खतरनाक साबित होंगे चूंकी हिन्दुस्तानी अवाम के खून में आज भी बापू की अहिंसात्मक आन्दोलन कारी विचारधारा ,टीपू की कभी न भुलाई जाने वाली बहादुरी और मौलाना मो.अली जौहर की राष्ट्र भक्ती मौजूद है ! जो आजादी के पहले गौरे अँगरेज़ के पतन का कारण बनी थी और भविष्य में भी काले अँगरेज़ की तबाही का कारण बन सकती है !
आज़ादी की तारिख को मिटाने की नाकाम कोशिश करने वालों तुमने कर्नाटक में खड़े होकर सत्ता के नशे में चूर हो कर टीपू सुलतान के लिए यह बोल दिया कि “टीपू कोई ऐसा व्यक्ती नहीं है कि उनकी जयन्ती समारोह का आयोजन हो ” तब मैं पूरे एतमाद के साथ यह कह सकता हूँ कि जिस भाजपा नेता सुरेश कुमार ने यह गुस्ताखाना जुमले बोले हैं उसने यकीनन तारिख को साम्प्रदायिकता का चश्मा लगा कर पढ़ा होगा ! चूंकी बापू का कहा तो तुम्हारी समझ आयेगा नहीं लेकिन जिन अंग्रेजों के खिलाफ तुम्हारी आवाज़ तक तारिख के पन्नों में दर्ज नहीं हैं उन्ही अंग्रेजों में से एक मशहूर इतिहासकार हुआ है कालमार्क्स जिसने हिन्दुस्तान पर अँगरेज़ हुकूमत के विस्तार के कारणों के विश्लेषण में लिखा है कि “हैदर अली और टीपू सुलतान ने कुरान पर हाथ रख कर ब्रटिश शासकों के विरुद्ध स्थाई घ्रणा की शपथ ली थी यद्धपि मैसूर ने ३० साल के लम्बे अंतराल तक अंग्रेजों से संघर्ष किया परन्तु सीमित साधनों के कारण मैसूर को परास्त होना पडा ! मैसूर के पतन से अँगरेज़ की शक्ती में काफी व्रद्धी हुई ” !
कालमार्क्स के यह जुमले कर्नाटक भाजपा के नेताओं के गाल पर एक तमंचा है चूंकी इन जुमलों से यह साबित होता है कि टीपू की जंग सिर्फ और सिर्फ भारत माता की हिफाज़त के लिए की गयी जंग थी यदी उसे सत्ता का ही विस्तार करना होता तो वह भी निजाम और मराठों की तरह अँगरेज़ से संधी कर लेता और ३० बरसों तक कंही हिन्दुस्तान को आज़ाद कराने की जंग नहीं लड़ता और जो अपने राष्ट्र से इतनी बेलोस मोहब्बत करता हो वह उसकी प्रजा से किस दर्जे का प्रेम करता होगा यह भाजपा के संकीर्ण सोच के नेताओं की समझ नहीं आयेगा !
हाँ टीपू क्रूर था ,निर्दयी था अत्याचारी था लेकिन सिर्फ अँगरेज़ के लिए ,भारत माता को गुलामी की जंजीरों में जकड़ने वालों के लिए शायद इसीलिए अहिंसा के देवता मोहनदास करमचंद गांधी ने पहली बार हिंसा का समर्थन करते हुए अपने अखबार “यंग इंडिया ” में २३ जनवरी १९३० को लिख दिया था कि “ शेर की एक दिन की ज़िन्दगी लौम्डी के सौ सालों की ज़िंदगी से बहतर है ” बापू यही नहीं रुके , टीपू के मन में अँगरेज़ के खिलाफ धधकते हुए हिंसात्मक लावे की सरहाना करते हुए बापू ने आगे लिखा कि “उसकी (टीपू की ) शान में कही गयी एक कविता की यह पंक्तियाँ याद रखे जाने योग्य हैं ““खुदाया , जंग के खून बरसाते बादलों के नीचे मर जाना ,लज्जा और बदनामी की ज़िंदगी जीने से बहतर है ”” ! अहिंसा की मूरत बापू की कलम से लिखे गए यह जुमले क्या राष्ट्र प्रेम के लिए टीपू की हिंसात्मक कार्यवाही का समर्थन नहीं करते हैं !
लेकिन यह जुमले वह लोग नहीं समझ सकते जिनके अजदाद का नाम ढूँढने से भी जंग-ए-आज़ादी की तारिख में नहीं मिलता और बापू के जुमले बता रहे हैं कि एक राष्ट्र भक्त ही दुसरे राष्ट्र भक्त की कुर्बानियों और जज्बातों को समझ सकता है ! बापू के इन जुमलों को समझने के लिए नज़रों पर साम्प्रदायिकता का चश्मा नहीं बल्की दिल में राष्ट्र प्रेम का होना लाजमी है !
मैं तारिख के तथ्यों पर जमीं हुई इस धूल को उडाती इस सरपट दौडती कलम को इस सच पर रोकना चाहता हूँ कि मोदी जी आप अपनी पार्टी के बेलगाम और बदजुबान नेताओं की वाणी पर जल्द से जल्द लगाम लगा लीजिए वरना वोह दिन दूर नहीं जब सर पर कफन बाँध कर भारत माँ के सपूतों की एक फ़ौज मात्रभूमी की हिफाज़त में अपनी जान न्योछावर करने वालों के अपमान से विचलित होकर अगर उठ खडी हुई तो सत्ता के सिंहासन की धज्जियां उड़ा देगी !
मोदी जी आप अपने स्वयं के और भाजपा नेताओं के मन में उदारता पैदा करो चूंकी किसी मज़हब की टोपी को ठुकराकर,सबका साथ सबका विकास का नारा मात्र देने से महान नहीं बना जाता ! महान बनने के लिए क्या करना होता है उसके लिए मैं टीपू सुल्तान की एक उदारवादी मिसाल के साथ अपनी कलम को विराम देता हूँ कि मई २०१४ को मध्य लन्दन में स्थित क्रिस्टी नीलाम घर में टीपू सुलतान की एक अंगूठी नीलाम की गयी इस एक मात्र सोने की अंगूठी की कीमत एक व्यक्ती ने एक करोड़ ४२ लाख ८७ हजार २६५ रूपये अदा की इतनी बड़ी कीमत टीपू की महानता का ऐलान करती है यह कीमत न सिर्फ टीपू की महानता को दर्शाती है बल्की उसकी उदारता की एक ऐसी मिसाल है जिसे सुनकर कर्नाटक भजपा के नेताओं तुम्हारा सर शर्म से झुक जाएगा चूंकी यह अंगूठी गौरे अँगरेज़ ने १७९९ में श्री रंगापट्टीनम में शहीद टीपू के हाथ से उतारी थी और इस अंगूठी पर मर्यादा पुरुषोत्तम राम का नाम लिखा हुआ था ! निलामे के पश्चात लंदन के क्रिस्टी नीलाम घर ने यह उल्लेख किया कि “ यह अदभुत है कि महान मुस्लिम योद्धा हिन्दू देवता के नाम वाली अंगूठी पहने हुआ था ” !
मैं मुल्क के अवाम से पूछना चाहता हूँ कि यह कैसा अन्याय है कि मुस्लिम टोपी का विरोध करने वाले मोदी तो धर्मनिरपेक्ष और अपनी ज़िंदगी की आख़री सांस भारत माँ को आज़ाद कराने के लिए राम नाम की अंगूठी पहन कर लेने वाला टीपू सुलतान हिन्दू विरोधी ! यह कैसे दोहरे मापदंड है ?
समझ यह नहीं आता कि आखिर क्यूँ भाजपा नेता माँ भारती को गुलामी की जंजीरों से आज़ाद करने वालों के खिलाफ हैं ? यह मैं नहीं कह रहा बल्की खुद भाजपा नेता अपनी कार्यपद्धती तथा वाणी से यह बात खुल्लम खुलला बयान कर रहे हैं ! पहले मो अली जौहर को फिर बापू को और अब टीपू को अपनी नफरत का निशाना बनाकर आखिर क्या साबित करना चाहता है ! यह भारत माता की जय जय कार करने वाले यह लोग इसका जवाब मुल्क जानना चाहता है !
मैं सोचता था कि बिहार की पराजय के पश्चात शायद मोदी जी और उनके समर्थक जन भावनाओं और आकांक्षाओं को समझ सकेंगे और नफरत की सियासत झोड़ कर नए भारत के निर्माण के लिए अपनी कार्य शैली में परिवर्तन लायेंगे लेकिन बिहार चुनाव परिणामों के महज़ एक दिन बाद ही जब टीपू के जन्म दिन के समरोह के खिलाफ कर्नाटक भाजपा ने उग्र प्रदर्शन किया तो यह साबित हो गया कि यह लोग धर्मनिरपेक्षता,एकता,सदभावना,प्रेम,मोहब्बत और शांती को कायम नहीं रहने देना चाहते ! मैं दीपावली के इस पावन अवसर पर मुल्क की अवाम को बताना चाहता हूँ कि यह लोग जो उपरोक्त शब्दों को भी नफरत की निगाह से देखते हैं वह मुल्क को कभी भी सम्रद्ध और शक्तीशाली नहीं बनना देना चाहते हैं ! यह जानते हुए कि दहकते हुए मुल्कों ने आज तक विकास की कोई परिभाषा नहीं लिखी है तब हम हमारे मुल्क को दहका कर किस तरह विकास की इबारत लिख सकेगे !

1 thought on “राम नाम की अंगूठी पहन कर लेने वाला टीपू सुलतान हिन्दू विरोधी !”

  1. ज़नाब पहले ककुछ आसान से सवाल का जबाब दे।

    1. बताये की असहिष्णुता का ढिंढोरा वाले बिहार चुनाव के बाद
    चुप क्यों
    2. क्या पुरस्कार लौटाने वाले कलाकार कांग्रेस समर्थक थे क्योंकि कांग्रेस दर्शन सम्पादक को हटाने पर विरोध स्वरूप पुरस्कार नही लोटाये।

    3. क्या मोदी राज़ में शिया मुस्लिम नमाज़ी पर गोली चलने की घटना हुई है क्या

    4. कश्मीर में हिन्दू मरे बलात्कार हुआ उस समय चुप्पी और अख़लाक़ पर इतना हंगामा क्यों

    5. ओवेसी श्री राम का अपमान करता तब चुप्पी और अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता का तर्क और मोहम्मद साहब के बारे में कमलेश तिवारी का बोलने को पर हंगामा क्यों

    6. 80% हिन्दुओ के भगवान को PK द्वारा अपमानित करना और फिर भी यहां शान से रहने वाला आमिर खान किस मुस्लिम देश को सुरक्षित समझता है। क्योकि जहां तक नॉलेज है की सभी मुस्लिम देश में भांडो को बहुत कमतर आंकते है।

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