सोनिया की तारीफ के पुल बाँधे शरद यादव ने


देश के प्रमुख विपक्षी गठबंधन के संयोजक शरद यादव ने सत्तारूढ़ संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन के विरुद्ध काफ़ी तीखा रुख़ अपना रखा है. वह किसी भी मुद्दे पर सरकार को ढील देने के पक्ष में नहीं दिख रहे. सरकार को आगे भी घेरने के लिए विपक्ष की रणनीति पर बात की एनडीए संयोजक और जनता दल-यू के अध्यक्ष शरद यादव से.

गुरुवार के बंद के बाद क्या होगा?

गुरुवार के बन्द से पहले हमने दो बंद और किए थे. मनमोहन सिंह ऐसे व्यक्ति हैं जो विदेशी बाज़ार के अलावा दूसरी कोई चीज़ के बारे में नहीं सोचते हैं. इसमें ग़लती विपक्ष की है. सोनिया गाँधी को पूरा देश (नेता) मान गया था. देश की सबसे बड़ी पार्टी सोनिया गाँधी को (नेता) मान गई थी. हम कौन होते हैं ये कहने वाले कि वो इस देश में कब आईं. वो बैठतीं तो ढाई या तीन साल रहतीं, अच्छी होती तो रहतीं, बुरी होती तो हट जातीं.

क्या आप कह रहे हैं कि सोनिया गाँधी के विदेशी मूल का मुद्दा ग़लत था?

मैं ये कह रहा हूँ कि देश की जनता ने उन्हें जनादेश दे दिया. ये सच है ना.

तो क्या सोनिया गाँधी को प्रधानमंत्री बनना चाहिए था?

बिल्कुल. अगर वो प्रधानमंत्री होतीं तो आज ये स्थिति नहीं होती, क्योंकि उन्हें पार्टी चलानी है. मनमोहन सिंह ने एक बार लोकसभा का चुनाव लड़ा और हार गए. उन्होंने तो कॉर्पोरेशन का चुनाव भी नहीं लड़ा. सोनिया गाँधी प्रधानमंत्री होतीं तो बिल्कुल बेहतर होता. देश इस तरह गड्ढे में नहीं जाता. पी चिदंबरम, मोंटेक सिंह और प्रधानमन्त्रि को हटाए बिना देश नहीं चल सकता. ये लोग देश को जानते ही नहीं हैं. ये लोग अमरीका और यूरोप के लोगों के अंदाज़ में अंग्रेज़ी बोलते हैं.

कई लोग सरकार के फ़ैसलों के पक्ष में भी हैं.

अंग्रेज़ों ने 250 साल राज किया. उन्होंने तोते छो़ड़ दिए हैं. आज़ादी के बाद इन्हीं तोतों का राज है. भाषा जानना बहुत अच्छी चीज़ है. चीन के लोग भी अंग्रेज़ी बोलते हैं लेकिन वो चीनी अंदाज़ में अंग्रेज़ी बोलते हैं. यहाँ ब्रिटेन के विश्वविद्यालयों में पढ़े हुए लोगों का राज है. ये मुट्ठी भर लोग हैं लेकिन देश को पकड़े हुए हैं.

ताज़ा राजनीतिक हालात का आप कैसे आकलन करते हैं?

सरकार ने 25 करोड़ लोगों के पेट पर ताला लगाया है. ये हमला ईस्ट इंडिया कंपनी से 10 गुना बड़ा है. चीन और हिंदुस्तान का बाज़ार यूरोप के बाज़ार से बहुत बड़ा है. भारत का बाज़ार सदियों में विकसित हुआ है और सदियों की चीज़ को आप बदलना चाहते हैं. क़रीब 25 करोड़ लोग खुदरा व्यापार से रोज़ी-रोटी कमाते हैं. मनमोहन सिंह ने जब परमाणु सौदे पर हस्ताक्षर किए थे तो कम्युनिस्ट पार्टी ने उसका विरोध किया था. पैसे देकर सरकार बची थी नहीं तो उसी समय चली जाती. जनता जब खड़ी होती है तो इंदिरा गाँधी जैसी बड़ी ताक़त भी हार जाती है.

लेकिन क्या इंदिरा गाँधी की बात पुरानी नहीं हो चली? क्या प्रदर्शनों से कुछ भी हासिल हो पाता है?

इतिहास हमेशा पुराना ही होता है. इंदिरा जी ने इमरजेंसी लगाई, लेकिन उन्होंने चुनाव भी करवा दिए. उनके चुनाव करवाने से वो हार भी गईं. हम उनसे तुलना इसलिए कर रहे हैं क्योंकि उन्होंने तो मात्र दो साल के लिए आज़ादी छीनी थी. खेती के बाद खुदरा व्यापार रोज़गार का सबसे बड़ा साधन है. खुदरा व्यापार में सात प्रतिशत दुकान वाले हैं और बाक़ी टोकरी वाले, रेड़ी-पटरी वाले और सड़क पर सामान बेचने वाले हैं. हमें जीतने और हारने की परवाह नहीं है.

आप किस आधार पर कहते हैं कि खुदरा व्यापार में विदेशी निवेश हानिकारक है?

हम आँखों-देखी बोलते हैं. हम पोथी देखकर नहीं बोलते हैं. आँखों देखी बोलना सच के सबसे क़रीब होता है.

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने समर्थन के मुद्दे को विशेष राज्य का दर्जा दिए जाने से जोड़ा है.

नीतीश कुमार 35 सालों से मेरे साथ हैं. उनके टीवी के बयान पर मैं कुछ नहीं कहूँगा. सूरज इधर से उधर निकल सकता है, लेकिन जेडी-यू, नीतीश कुमार और शरद यादव कांग्रेस के साथ नहीं जाने वाले. हाँ, साझा तो सबके साथ हो सकता है. अभी नहीं हो सकता है एफ़डीआई लगाने के बाद.

 

 

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