(जीवन के रंग, व्यंग्य के संग- 2)
गुटके को छुड़वाने के लिए मेरी पहली मुहिम
आप सब साथ दो मेरा
एक सार्वजनिक कार्यक्रम में मैं गया, पास मैं खड़े भाईसाहब काफी देर से कुछ ईशारा कर रहे थे मैं समझा नहीं
वो बोले – भाईसाहब करंट है क्या?
आपका बलराम – करंट! वो क्या
वह व्यक्ति – भाईसाहब, रोज़ तो फूल करंट (गुटका) ले कर निकलता हूं पर आज खत्म हो गया
आपका बलराम – मैं ना तो खाता हूं ना ही करंट खिलाता हूं आप जैसे बहादुर मैंने नहीं देखे पैकेट पर साफ स्वास्थ्य संबंधी चेतावनी व कैंसर के चित्र के बाद भी आप करंट लेने से बाज नहीं आते ।
अपने परिवार को इस कंरट से बचाये धीरे धीरे ही सही पर रोकने का प्रयास जरूर करें ।