प्रदेश सरकार आंगनबाड़ी केन्द्रों के माध्यम से छः वर्ष तक के बच्चों और गर्भवती महिलाओं को पंजीरी बंटवाती है जिससे वे कुपोषण का शिकार होने से बचें। 7 महीने से लेकर 3 साल तक के बच्चों के लिए 120 ग्राम और 3 से 6 वर्ष तक के बच्चों के लिए 50 ग्राम तथा गर्भवती महिलाओं को 140 ग्राम प्रतिदिन के हिसाब से पंजीरी दिए जाने का प्रावधान है, लेकिन पूरे प्रदेश में शायद ही किसी आंगनबाड़ी केन्द्र पर ऐसा होता हो।
अधिकांशतः आंगनबाड़ी कार्यकत्रियाँ बालपुष्टाहार (पंजीरी) को बाजार में बेंच देती हैं। प्रदेश के सभी आंगनबाड़ी केन्द्रों पर महीने की 5, 15 व 25 तारीख को पंजीरी बांटने के निर्देश हैं, लेकिन अगर इसकी जाँच की जाए तो शायद ही नियमानुसार काम होता दिखेगा।
उदाहरण के तौर पर अम्बेडकरनगर जिले को ही ले लिया जाए तो यहाँ 9 विकासखण्डों में 9 परियोजनाएँ जबकि एक जिला मुख्यालय पर इस तरह कुल 10 परियोजनाएँ चल रही हैं, जबकि एक नवसृजित विकासखण्ड अभी इससे अछूता है। इन विकासखण्डों में 2 हजार 5 सौ 38 आंगनबाड़ी केन्द्र संचालित हैं। इन 10 परियोजनाओं के संचालन/पर्यवेक्षण के लिए 10 के सापेक्ष मात्र 5 सी.डी.पी.ओ. की तैनाती है।
बताया जाता है कि पुष्टाहार के नाम पर जिले में समन्वित बाल विकास परियोजना में जमकर भ्रष्टाचार का खेल खेला जा रहा है। यहाँ गर्भवती महिलाओं और बच्चों को पोषण देने के लिए स्थापित आंगनबाड़ी केन्द्र भ्रष्टाचार के पोषण केन्द्र बन गए हैं और भ्रष्टाचार की इस बहती गंगा में विभाग के निचले स्तर से लेकर उच्चस्तर के कर्मचारी/अधिकारी डुबकी लगा रहे हैं।
कुछ आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों ने दबे जुबान से बताया कि विभाग से बंटने वाला पंजीरी (पुष्टाहार) बहुत ही घटिया किस्म का होता है। इसे इंसान तो क्या जानवर भी नहीं खाते। कई कार्यकत्रियों ने बताया कि पुष्टाहार (पंजीरी) ब्लाक से उठाते समय हर बार उन्हें सी.डी.पी.ओ. को सुविधाशुल्क देना पड़ता है। ऊपर से नीचे तक जितने भी अधिकारी हैं, सबका उसमें हिस्सा बंधा हुआ है। फीडिंग से लेकर पुष्टाहार (पंजीरी) लाने तक हर काम के लिए सुविधाशुल्क (घूस) देना पड़ता है।
कार्यकत्रियों ने बताया कि हमारे पास भी पैसे नहीं रहते हैं क्योंकि महज 3000 रूपए प्रोत्साहन राशि मिलती है, इसलिए तमाम कार्यकत्रियाँ पंजीरी बेंचकर पैसा देती हैं। ऐसा करना उनकी मजबूरी है, क्योंकि वे कहती हैं कि अगर हम पैसा न दें तो पंजीरी नहीं मिलती या मिलती भी है तो कम, और इसकी सुधि लेने वाला कोई नहीं है। कुल मिलाकर यह विभाग पैसा पैदा करने की मशीन बन चुका है।
उच्च स्तर से लेकर निचले पायदान तक पैसा देने में पोषाहार बिक जाता है। ऐसे में इसका लाभ शायद ही किसी को मिल पाता हो। प्रदेश की राजधानी लखनऊ से जिले के हजारों लाभार्थियों के लिए लाखों की पंजीरी भेजी जाती है लेकिन यहाँ तक आते-आते लाभार्थियों की संख्या सिमटकर सैकड़ों में रह जाती है और सारी पंजीरी बाजार में चली जाती है।
अम्बेडकरनगर जनपद के रामनगर, जहाँगीरगंज, टाण्डा, अकबरपुर (बेवाना) विकास खण्ड क्षेत्रों में संचालित परियोजनाओं की हालत अत्यन्त शोचनीय बताई जाती है। इन क्षेत्रों की न्यायपंचायतों में आंगनबाड़ी केन्द्रों पर नियुक्त कार्यकत्री/सहायिकाओं की मनमानी से बच्चे व गर्भवती महिलाओं की जगह पशुओं को पंजीरी (पुष्टाहार) खिलाया जा रहा है। ऐसी खबरें बराबर मिलती रहती हैं परन्तु शिकायतों के बावजूद आई.सी.डी.एस. महकमें के जिम्मेदारों द्वारा कोई कार्रवाई न करके उल्टे पंजीरी विक्रेता कार्यकत्रियों व सहायिकाओं को इस कार्य के लिए और भी प्रोत्साहित किया जाता है। ये जिम्मेदार उनका नाम अपनी गुडबुक में दर्ज कर लेते हैं।
इस तरह ग्रास रूट लेबल पर करप्शन को और भी बल व बढ़ावा मिलता है। एक जिम्मेदार से जब इस सम्बन्ध में बात की गई तो उनका कहना था कि बहती गंगा में हाथ धोने से परहेज करने वाले को मोक्ष नहीं प्राप्त होता। बेहतर यह होगा कि मीडिया के लोग इस विभाग की कार्यप्रणाली को नकारात्मक न लेकर विभाग से मिलकर पंजीरी फांके और अपनी सेहत बनाए। भ्रष्टाचार इसी महकमें में नहीं है बल्कि यह पूरे देश में व्याप्त है, जिसे समाप्त करना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है। यह रक्तबीज की तरह निरन्तर बढ़ता ही जाएगा।
उल्लिखित क्षेत्रों से प्राप्त शिकायत के बारे में जब जिला कार्यक्रम अधिकारी से सम्पर्क किया गया तो उनका फोन नॉट रिस्पान्डिंग बताया। ऐसा एक ही बार नहीं बल्कि अनेको बार हुआ। उक्त अधिकारी के बारे में आगामी अंकों में हम खबर प्रकाशित करेंगे जिसमें उनका पक्ष, उनकी कार्यप्रणाली तथा उनके द्वारा विभागीय भ्रष्टाचार नियंत्रण हेतु उठाए गए कदमों के बारे तफ्सील से दिया जाएगा।
रीता विश्वकर्मा, पत्रकार, मो.नं. 8423242878, Wapp. No. 8765552676