जीवन को सुखी और खुशहाल बनाने का मन्त्र

तोबा करें आलोचना,तुलना और छिद्रान्वेषण करने से

डा. जे.के.गर्ग
सुखी एवं खुशहाल जीवन के लिये हमारा व्यवहार सभी के लिये यानि इष्ट-मित्र, ,सहकर्मि ,पास-पड़ोसी चिर-परिचित, स्वजन-आत्मीयजन, बच्चें, बुजुर्ग, सहधर्मिणी के साथ मधुर और सोहार्दपूर्ण और स्नेहमय होना चाहिये | सोहार्दपूर्ण एवंस्नेहपूर्ण सुखी जीवन जीने के लिये हम सभी को कुछ सर्वमान्य बातों को अपनी दिनचर्या में अपनाना होगा |

कभी भी किसी की भी दूसरों के साथ तुलना नहीं करें—–

ऐसा देखा गया कि जाने अनजाने में हम अपने लाडलों-बच्चो की अन्य लोगों से तुलना करते हुये कह देते हैं कि “ देखो फला आदमी ने तो सीमित साधनों एवं सुविधाओं के होते हुए भी इतनी अधिक सफलता प्राप्त कर ली, वो आपसे अध्ययन के अन्दर कोसों आगे है | फला इंसान खेलकूद के अन्दर भी सदेव इनाम जीतता है और दूसरी तरफ आपके पास सब सुख सुविधा एवं साधन होते हुए भी आपने कभी भी उल्लेखनीय कामयाबी को हासिल नहीं की है “ | शांत चित्त से चिन्तन-मनन करके विचार कीजिये कि क्या आप अपने लाड़लों या स्वजनों की अन्य के साथ तुलना करके उनका भला कर रहें हैं ? क्या आप उन्हें प्रोत्साहित कर रहें हैं या हतोत्साहित ? क्या आप उनके दिल में अनजाने में ही उनके अंत: स्थल में सकारात्मकता के स्थान पर नकारात्मकता के विनाशकारी बीज तो नहीं बो रहें हैं ? सर्वमान्य पालिंग के सिद्धांत के मुताबिक “ कभी भी दो इलेक्ट्रान अक्षरक्ष रूप में समान नहीं हो सकते हैं, उसी तरह दो इन्सान कभी भी अक्षरक्ष रूप से समान नहीं हो सकते हैं | आप माने या नहीं माने , सच्चाई तो यही है दो व्यक्तियों के मध्य तुलना करके हम उनके अन्तर्मन में नकारात्मकता ,इर्ष्या, डाह, द्वेष तथा कमजोरी के जानलेवा बीज ही बों रहें हैं | क्यों कि तुलना करने से उनके मन में जहाँ एक तरफ खुद के लिये हिनता की भावना उत्पन्न होगी वहीं दुसरी तरफ उनकी कार्य क्षमता पर विपरीत प्रभाव भी पडेगा | जिसके परिणाम स्वरूप आपके एवं उनके मध्य पारस्परिक सबधं ख़राब हो सकते हैं| सच्चाई तो यही है कि तुलना करने से भी कोई सार्थक अर्थ नहीँ निकलता है पर परस्पर अविश्वाश जरुर पनपता है तुलना करने की आदत की वजह से आपस में स्नेह की जगह मन मुटाव,या खीचतान पैदा होती है | सवाल पैदा होता है कि हमें क्या करना चाहिये ? इस समस्या का समाधान है कि आपस में तुलना करने के वनिस्पत जो जैसा है उसे उसी रूप में स्वीक्रत या अंगीकार करें, उनमें सकारात्मकता की भावना जाग्रत करने की कोशिश करें और उन्हें सतत प्रोत्साहित करते रहें जिससे वे अपनी कमीयों को दूर कर आत्मविश्वास के साथ अपनी योग्यता का सम्पूर्ण उपयोग कर सफलता हासिल कर सकें |

कभी भी दूसरों के काम में मीन मेक नहीं निकालें और उनके कामों का छिद्रान्वेषण करें ——-
बहुत लोगों को दूसरों के कामों मे मीन मेक निकालने, उनके कामों में टीका टिपण्णी करने में ही तात्कालिक खुशी और आनन्द मिलता है या यों कहें कि मीन मेक निकालना उनकी दिनचर्या का हिस्सा बन जाता है | अक्सर हमें यह सुनने को मिलता है कि फला आदमी ने अपनी बेटी की शादी का प्रबंध सही तरीके से नहीं किया था, खाने में यह कमी थी या वो कमी थी , उनकी कार्यशैली ही खराब है | उन्हें ऐसा करना चाहिये था या वैसा करना चाहिये था , पता नहीं वे कब सुधरेगें ? उनकी नीतियां ही दोषपूर्ण हैं | जरा सोचिये, मनन कीजिए कि क्या ऐसा कर आप अपने पारस्परिक और सामाजिक रिस्तों को मजबूत एवं मधुर बना रहें हैं अथवा रिस्तों को अपने ही हाथों से खराब कर रहें हैं, या उनमें कटुता उत्पन्न कर द्वेषपूर्ण बना रहें हैं ? सच्चाई तो यही है कि मीन मेक निकालने या छिद्रान्वेषण करने से ही परिवार,पास पडोस में लडाई-झगड़े होते हैं, सास-बहू,भाभी-ननद , जेठानी-देवरानी, पिता-पुत्र, पड़ोसी-पड़ोसी एवं दोस्तों के मध्य तकरार उत्पन्न होती है,अविश्वास –मनमुटाव पैदा होता है , नकारात्मकता पनपती है और परिवार विघटित हो जाते हैं ,सम्बंधो में माधुर्य-स्नेह, परस्पारिक विश्वास खत्म हो जाता है | इतना कुछ घटने के बावजूद भी हमें यह क्यों नहीं मानते हैं कि मीन मेक निकालने या छिद्रान्वेषण करने की हमारी आदत हमारे और उनके जीवन में जहर ही घोल रही है ? दूसरों के कामों में मीन मेक निकालने या छिद्रान्वेषण करने से आपके आपसी सम्बन्धों के अन्दर सोहार्द की जगह मनमुटाव उत्पन्न होगा , मन की दूरियां बढेगी , आपके और दुसरों के अंतर्मन के अन्दर मानसिक अशांति उत्पन्न होगी जिससे आप प्रसन्न रहने की जगह दुखी: और खिन्न रहेगे, आपकी पहचान समाज के भीतर मीन-मेक निकालने वाले इन्सान के रूप मे होने लगेगी जिससे लोग आपसे बात-चीत की चाह रक्खने के वनिस्पत आपसे कतराएंगे | आप समाज में अलग थलक पड़ जायगें | अब निर्णय आप को ही करना है कि आपको किस प्रकार की जिन्दगी जीनी है—खुशनुमा-खुशहाल , सोहार्दपूर्ण अथवा तनावपूर्ण ?

दूसरों के काम में मीन मेक निकालने या छिद्रान्वेषण करने के बजाय दूसरों को सकारात्मक तरगें भेजे और उनके साथ सोहार्दपूर्ण रिस्ते बनायें——-

हमें दूसरों के विचारों या मान्यताओं अथवा सोच का सम्मान करना होगा, वें जैसे हैं उसी रूप के अन्दर उन्हें दिल से अंगीकार करना होगा, इसके लिये यह कतई जरूरी नहीं है कि हम अपनी सोच का त्याग कर दें किन्तु हम अपनी सोच के साथ साथ दूसरों की सोच का भी सम्मान करते हुए उनकी सोच को भी स्वीकार करना होगा | हमें अपने कार्यों के जरिये दूसरों को सकारात्मक तरगें भेजनी चाहिए , हमारे द्वारा भेजी गई सकारात्मक तरगें / विचार उनकी नकारात्मक मनोव्रति में कमी करने और उनकी सकारात्मकता में व्रद्धी करने में सहायक होगी , ऐसा करने से आपके आपसी सम्बन्धों मजबूत बनेगें, मनमुटाव मिटेगा | कभी भी किसी की दुर्बलताओं / कमजोरियों/ बुरी आदतों के बारे ना तो बात करेगा या सोचेगा | अत” आप मीनमेक निकालने के बजाय उनकी अच्छी आदतों , अच्छे गुण,अच्छे विचारों की ह्रदय से सराहना करें,उन्हें उत्साहित करें,उनके पास आपकी सकारात्मक भावनाओं को भेजें |

अपने जीवन को सुखी और खुशहाल बनाने के वास्ते मीन मेक एवं छिद्रान्वेषण के स्थान पर दूसरों के कार्यों , उपलब्धियों का सम्मान कर उनके होसलें को बढायें , उनको दिल से सहमति प्रदान करें , ऐसा करने से निच्चय ही उनके दिल में आपके लिए भी सकारात्मक भावना उत्पन्न होगी और आप अच्छे सहयोगी बनेगें|

हमेशा दूसरों की आलोचना करने से बचें——–

सच्चाई तो यही है कि हमारी दूसरों की आलोचना करने की आदत ही हमारे मजबूत स्नेहमयी पारस्परिक रिश्तों को कमजोर करने में कुलहाडी का काम करती है | क्योंकि आलोचनाओं के जरिये हम दूसरों को सकारात्मक तरगों की जगह नकारात्मक तरगें भेजते हैं | अत: अच्छा तो यही होगा कि कभी भी किसी की दुर्बलताओं, कमजोरियों , बुरी आदतों के बारे में ना तो कोई बात करें करें और ना ही सोचें, इसके विपरीत उनकी अच्छी आदतों, अच्छे गुण , अच्छाईयों अच्छे विचारों की ह्रदय से सराहना करें, उन्हें उत्साहित करें एवं उनके पास आपकी सकारात्मक भावनाओं और सकारात्मक सोच को भेजें | आपके द्वारा भेजी गई सकारात्मक सोच अथवा सकारात्मक भावनायें उनकी आपके प्रति नकारात्मक मनोव्रति में कमी करने और उनकी सकारात्मकता में व्रद्धी करने में सहायक होगी | यही सकारात्मकता आपके आपसी संबधों को मजबूत बनायेगें जिससे आपके एवं दूसरों के जीवन की वाटिका में खुशीयों के सुगन्धित फूलों की महक ही उत्पन्न होगी और आपके और अन्य लोग खुश रहेगें अत: आलोचना करने के बजाय यथा संभव उनके अच्छे कामों एवं उपलब्धियों की सराहना या प्रसंसा उनके सामने सार्वजनिक रूप से करें और उनकी पीठ पीछे भी करें |

समायोजन, समझोता एवं एडजस्टमेंट करने की प्रवर्ती को अपनाये:—

जीवन में हमे समयानुसार दूसरों के विचारों-सोच-मनोभावों-सम्वेदनाओं- एवं संस्कारों, आदतों के साथ समायोजन एवं एडजस्टमेंट करना चाहियें यह तभी संभव है जब “जो जैसा है उसे उसी रूप में स्वीकार कर लें “ , यह संभव नहीं है कि दूसरा व्यक्ति आपके सभी विचारों से सहमति रक्खे क्योंकि उनके अपने विचार हो सकते हैं जो उनकी नजरों में सही हों, अत: आपको उनके विचारों का सम्मान करते हुए है वे जैसे हैं उसी रूप में उन्हें स्वीकार करना होगा | आपकी यही स्वीक्रति की प्रवर्ती आपको मानसिक रूप से स्थिर और मजबूत बनायेगी | कभी भी किसी से कोई अपेक्षा नहीं रक्खें ना ही किसी से कोई अपेक्षा करें क्योंकि अगर आपकी अपेक्षा उनके दुवारा पुरी नहीं हुई तो आप मानसिक रूप से अशांत हो जायगें और आपका मन व्यथित एवं दुखी हो जायगा साथ ही साथ आपके पारस्परिक सम्बन्ध भी खराब एवं तनाव पूर्ण हो जायगें |

इसीलिए अपने जीवन को सुखमय और सार्थक बनाने हेतु जीवन में तीन आदतें यथा तुलना (कम्पेरिजन), छिद्रान्वेषण (क्रिटिकल) एवं आलोचना(क्रिटिसीजम) को छोड़ कर उनके स्थान पर तीनप्रवतीयों यथा स्वीक्रति(अप्रूवल), सहमति (असप्तेंस) एवं सराहना (एप्रिसियेसन) को अपनायें | जीवन में इस मूल मन्त्र को कार्य रूप दें कि “ में हमेशा जो जेसा है उसे उसी रूप में स्वीकार करूगां, उनकी आलोचना नहीं करूंगा,उनके काम में मीनमेक नहीं निकालूँगा,उनकी किसी से तुलना नहीं करूगां “ |

डा. जे.के. गर्ग

सन्दर्भ—-विभिन्न पत्र-पत्रिकायें, बहिन शिवानी के प्रवचन, मेरी डायरी के पन्ने, Visit Our Blog—gargjugalvinod. blogspot.in

error: Content is protected !!