दूषित खान-पान से परहेज और डाक्टर की सलाह से बचाव संभव
मित्तल हाॅस्पिटल में लगा निःशुल्क गैस्ट्रोएण्ट्रोलाॅजी परामर्श शिविर
बच्चों व बड़ों में लीवर, आँत, पेनक्रियास, गाॅल ब्लेडर व पेट संबंधित रोगियों ने पाया लाभ
अजमेर, ब्यावर, किशनगढ़, मेडता सिटी, नागौर से आए अनेक रोगी
अजमेर, 18 नवम्बर( )। मित्तल हाॅस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर, अजमेर में रविवार, 18 नवम्बर को लगे निःशुल्क गैस्ट्रोएण्ट्रोलाॅजी परामर्श शिविर में अनेक बड़ों व बच्चों ने लाभ उठाया। शिविर में लीवर, आँत, पेनक्रियास, गाॅल ब्लेडर व पेट संबंधित सभी तरह के रोगों से पीड़ित निःशुल्क परामर्श लाभ लेने पहुंचे। इनमें अजमेर, ब्यावर, किशनगढ़, मेड़तासिटी, नागौर से आए पुरुष, महिलाएं, युवा व बच्चे एवं वृद्ध शामिल थे।
मित्तल हाॅस्पिटल के गैस्ट्रोएण्ट्रोलाॅजिस्ट डाॅ मनोज कुमार व पीडियाट्रिक गैस्ट्रोएण्ट्रोलाॅजिस्ट डाॅ प्रियंका उदावत ने रोगियों को निःशुल्क परामर्श दिया।
शिविर में यह जानकारी उभर कर आई कि इन दिनों युवा वर्ग में लीवर संबंधित व बच्चों में सीलियक रोग इन दिनों बढ़ रहा है। ऐसा दूषित व अनियंत्रित खान-पान के कारण है। सही समय पर चिकित्सकीय सलाह एवं आवश्यक जांचों से इनका उपचार किया जा सकता है। देर होने पर रोगी को गंभीर नुकसान संभव है।
मित्तल हाॅस्पिटल के गैस्ट्रोएण्ट्रोलाॅजिस्ट डाॅ. मनोज कुमार ने बताया कि युवा वर्ग में मोेटापा और लम्बे समय तक शुगर के कारण हुए फेटी लीवर में 20 प्रतिशत मरीजों को लीवर सिरोसिस होने की संभावना होती है। हेपेटाइटिस बी व सी से संबंधित लीवर सिरोसिस पीड़ित बढ़े हैं। लीवर सिरोसिस के कारण लीवर का साइज सिकुड़ जाता है इससे लीवर काम करना बंद कर देता है। इसका प्रभाव गुर्दे पर पड़ता है, इन दिनों दूषित खान-पान होने से पीलिया के मरीज भी काफी देखे जा रहे हंै। डाॅ. मनोज ने बताया कि ऐसे रोगियों को पेट में दर्द रहता है, पेशाब पीला आता है, पेट में पानी भर जाता है, रोगी बहकी-बहकी बाते करने लगता है, रोगी को उल्टी, कभी कभी खून की उल्टी भी होती है। समय पर डाक्टर की सलाह और सोनोग्राफी, दूरबीन से आंत की जांच, लीवर की जांच आदि कर इसका उपचार किया सकता है। उन्होंने बताया कि आजकल आंतों में अल्सर एवं कोलाइटिस के मरीज भी अधिक देखे जा रहे हैं। इसमें मरीज को दस्त होते हैं एवं मल के साथ खून आता है। ऐसे रोगी सामान्य एंटीबायोटिक से ठीक नहीं होते। रोगियों की आंतों की जांच कर उपचार किया जा सकता है।
पीडियाट्रिक गैस्ट्रोएण्ट्रोलाॅजिस्ट डाॅ प्रियंका उदावत ने बताया कि सीलियक बीमारी ( गेहूं से एलर्जी) पीड़ित बच्चों में ग्लूटेन नामक प्रोटीन पचाने की क्षमता नहीं होती। सीलियक एक गंभीर आॅटोइम्यून डिसआॅर्डर है, जो आनुवंशिक रूप से अतिसंवेदनशील बच्चों में हो सकता है। ताजा आकड़ों के अनुसार उत्तर भारत में प्रति सौ में एक बच्चा इस बीमारी से जूझ रहा है। 1970 से पहले यह बीमारी 10 हजार में 3 को हुआ करती थी, यह चिंता का विषय है। उन्होंने बताया कि अभी तक जो भी कारणों का अनुमान लगाया जा रहा है उनमें बढ़ता हुआ एंटीबायोटिक उपयोग, वेस्टर्न डाइट, बार-बार वायरल इन्फेक्शन, पर्यावरण में अनियमित परिवर्तन, फल, सब्जियों व अनाज में कीटनाशक का बढ़ता उपयोग आदि कारण संभव है जिसकी वजह से आंत गेहूं के प्रति अतिसंवेदन शील हो जाती है।
डाॅ उदावत ने बताया कि सीलियक पीड़ित बच्चे इलाज भी ले रहे होते हैं किन्तु अभिभावक उनके खान-पान में अपेक्षित ध्यान नहीं दे पाते और सूक्ष्म मात्रा में ग्लूटेन उनके शरीर में जाता रहता है जिसकी वजह से छोटी आंत में खराबी और सूजन हो जाती है। नतीजतन पोषक तत्वों का अवशोषण कम हो जाता है और इलाज के बावजूद भी बच्चा कुपोषित रहने लगता है या कहें कि बच्चे का अपेक्षित विकास नहीं हो पाता है। शरीर में न्यूट्रीशियन, कैल्शियम, विटामिन और आयरन की कमी होना शुरू हो जाती है। पीड़ित को पेट दर्द रहता है, थकान व कमजोरी बनी रहती है, लीवर व आंतों में सूजन होती है, चिड़चिड़ापन रहने लगता है।
उन्होंने बताया कि इस बीमारी में सही समय पर इलाज एवं खान पान का विस्तृत निरीक्षण बेहद जरूरी है जिससे बच्चे का सही विकास हो सके व वह स्वस्थ जीवन जी सके।
निदेशक मनोज मित्तल के अनुसार मित्तल हाॅस्पिटल में पेट व आँत की एण्डोस्कोपिक (दूरबीन द्वारा) जांच, काॅलोनोस्कोपी, पित्त की नली की पथरी निकालना (ईआरसीपी) आदि सेवाएं उपलब्ध हैं। शिविर में पंजीकृत रोगियोें को निर्देशित जांचों पर 25 प्रतिशत तथा आॅपरेशन व प्रोसीजर्स पर 10 प्रतिशत की छूट सात दिवस तक प्रदान की जाएगी।
सन्तोष गुप्ता
जनसम्पर्क प्रबन्धक/9116049809