संत शिरोमणि गुरु रविदास

प्रस्तुतिकरण—-डा.जे.के.गर्ग
सच्चाई यही है कि संत रविदास जी के 40-41 पद गुरु ग्रन्थ साहब में मिलते हैं जिसका सम्पादन गुरु अर्जुन सिंह देव ने 16 वीं सदी में किया था | दादूपंथी की पञ्च वाणी परंपरा में भी गुरु रविदास जी की बहुत सी कविताये, दोहे औरसूक्तियां शामिल है। गुरु रविदास का मानना था कि समाज में सामाजिक स्वतंत्रता का होना सबसे जरुरी है। गुरु रविदासजी ने अपने समकालीन समाज में छुहाछूत,जाति प्रथा, लिंग भेद एवं सामाजिक भेदभाव को दूर करने के लियेअथक प्रयास किये थे | गुरु रविदास ने वैश्विक बंधुता, सहिष्णुता, पड़ोसियों के लिये प्यार और देशप्रेम का पाठ पढ़ाया । उन्होंने अपने आचरण तथा व्यवहार से यह सिद्ध कर दिया है कि मनुष्य अपने जन्म तथा व्यवसाय के आधार परमहान, छोटा अथवा बड़ा नहीं होता है। गुरु रविदासजी का मानना था कि “विचारों की श्रेष्ठता, समाज के हित की भावना से प्रेरित कार्य तथा सद्व्यवहार जैसे गुण ही मनुष्य को महान बनाने में सहायक होते हैं “ । राजस्थान केचित्तौड़गढ़ जिले में मीरा के मंदिर के आमने एक छोटी छत्री है जिसमे मान्यताओं के मुताबिक रविदासजी के पदचिन्ह स्थापित है। कई इतिहास कार एवं विद्वान रविदास जी को मीरा बाई का गुरु भी मानते है। उन्होंने लोगों को संदेश दिया कि “ईश्वर ने इंसान बनाया है ना कि इंसान ने ईश्वर बनाया है” अर्थात इस धरती पर सभी को भगवान ने बनाया है और सभी के अधिकार समान है। इस सामाजिक परिस्थिति के संदर्भ में, संत गुरु रविदास जी ने लोगों को वैश्विक भाईचारा और सहिष्णुता का ज्ञान दिया।

डा. जे.के.गर्ग
संत रविदास के जन्म को छह से ज्यादा सदियाँ बीत जाने के बाद भी उनके उपदेश , दोहे आज भी मानव मात्र के कल्याण के लिये जरूरी है | मन चंगा तो कठौती में गंगा | ब्राह्मण मत पूजिए जो हो वे गुणहीन पूजिए चरण चंडाल के जो होवे गुण प्रवीन | बाभन कहत वेद के जाये, पढ़त लिखत कछु समुझ न आवत । मन ही पूजा मन ही धूप ,मन ही सेऊँ सहज सरूप। इन्हीं दोहों में जीवन की सच्चाई छिपी हुयी है |

निसंदेह रविदास जी ने साधु-सन्तों की संगति से पर्याप्त व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त किया था। उनका पैतृक व्यवसाय जूते बनाने का था और उन्होंने इसे सहर्ष अपनाया। वे अपना काम पूरी लगन तथा परिश्रम से करते थे और समय से काम को पूरा करने पर बहुत ध्यान देते थे।

रैदास नाम से प्रसिद्ध संत रविदास का जन्म सन् 1388 (इनका जन्म कुछ विद्वान 1398 में हुआ भी बताते हैं) को बनारस में हुआ था। रैदास कबीर के समकालीन हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार माघ माह की पूर्णिमा के दिन गुरु रविदास जयंती मनाई जाती है। 19 फरवरी 2019 के दिन रविदास जी की 642 वीं जयंती मनाई जा रही है। बताया जाता है कि गुरु रविदास का जन्‍म माघी पूर्णिमा के दिन वाराणसी के सीर गोवर्धन में हुआ था। आज उनके जन्‍म स्‍थल पर एक भव्‍य मन्दिर स्‍थ‍ित है और उनकी जयंती के मौके पर यहां तीन दिन तक उत्सव मनाया जाता है। संत रविदास को रायदास और रुहिदास भी कहा जाता है । उनके पिता रघ्घू या राघवदास तथा माता का नाम करमा बाई था। उनकी पत्नी का नाम लोना उनके विजयदास थे वहीं रविदासिनी उनकी बेटी थी।

अपने बचपन से ही रविदास जी परोपकारी और दयालु थे और दूसरों की सहायता करना उनका स्वभाव बन गया था। साधु-सन्तों की सहायता करने में उनको विशेष आनन्द मिलता था। रविदास साधू संतों को अपने हाथ से बने जूते मुफ्त में ही दे दिया करते थे | । रविदास के अनूठे व्यवाहर से व्यथित और खिन्न होकर उनके पिता ने उन्हें और उनके परिवार को घर से निकाल दिया था |

रविदासजी मानने थे कि राम, कृष्ण,शिव, करीम, राघव आदि सब एक ही परमेश्वर के विविध नाम हैं। उन्होनें कहा “जो आदमी घमंड के बिना विनम्रता से काम करता है वो ही जीवन में सफल रहता है “, जैसे कि विशालकाय हाथी शक्कर के कणों को चुनने में असमर्थ रहता है जबकि लघु शरीर की चींटी इन कणों को सरलतापूर्वक चुन लेती है। इसी प्रकार अभिमान तथा बड़प्पन का भाव त्याग कर विनम्रतापूर्वक आचरण करने वाला मनुष्य ही ईश्वर का भक्त हो सकता है।

वाराणसी में श्री गुरु रविदास पार्क है जो नगवा में उनके यादगार के रुप में बनाया गया है जो उनके नाम पर “गुरु रविदास स्मारक और पार्क” बना है | वाराणसी में पार्क से बिल्कुल सटा हुआ उनके नाम पर गंगा नदी के किनारे लागू करने के लिये गुरु रविदास घाट भी भारतीय सरकार द्वारा प्रस्तावित है | वाराणसी के लंका चौराहे पर एक बड़ा गेट है जो इनके सम्मान में बनाया गया है। ज्ञानपुर जिले के निकट संत रविदास नगर है जो कि पहले भदोही नाम से था अब उसका नाम भी संत रविदास नगर है।

अनेकों लोग मानते हैं कि गुरु रविदास को अद्धभुत सिद्धिया प्राप्‍त थीं। कुछ मान्यताओं के मुताबिक बचपन में एक बार उनके एक प्र‍िय मित्र की मृत्‍यु हो गई थी। सब लोग इसका शोक मना रहे थे। लेकिन जैसे ही रामदास ने करुण हृदय से दोस्‍त को पुकारा तो वह जीवित होकर उठ बैठा।

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