जीवित व्यक्ति की मूर्ति बनाकर उसकी पूजा करना बेढंगा कार्य है उसके स्थान पर उनकी शिक्षाओं और सद्गुणों को अपनायें
‘भैया, तुम कैसी बातें कर रहे हो? जीवित व्यक्ति की मूर्ति बनाकर उसकी पूजा करना बेढंगा कार्य है।’ इस पर वहां मौजूद लोगों ने कहा, ‘बापूजी हम आपके कार्यों से बहुत प्रभावित हैं। गांधीजी बोले ”आप मेरे किस कार्य से प्रभावित हैं?’ यह सुनकर सामने खड़ा एक युवक बोला, ‘बापू, आप हर कार्य पहले स्वयं करते हैं, हर जिम्मेदारी को अपने ऊपर लेते हैं और अहिंसक नीति से शत्रु को भी प्रभावित कर देते हैं। आपके इन्हीं सद्गुणों से हम बहुत प्रभावित हैं।’गांधीजी ने कहा, ‘यदि आप मेरे कार्यों और सद्गुणों से प्रभावित हैं तो उन सद्गुणों को आप लोग भी अपने जीवन में अपनाइए। तोते की तरह गीता-रामायण का पाठ करने के बदले उनमें वर्णित शिक्षाओं का अनुकरण ही सच्ची पूजा-उपासना है। इस तरह उन्होंने अपनी पूजा रुकवाई।
अपनी गलतियों को कैसे सुधारें
बात उन दिनों की है जब कलकत्ता में हिन्दू – मुस्लिम दंगे भड़के हुए थे। ऐसी स्थिति में गाँधी जी वहां पहुंचे और एक मुस्लिम मित्र के यहाँ ठहरे। उनके पहुचने से दंगा कुछ शांत हुआ लेकिन कुछ ही दोनों में फिर से आग भड़क उठी। तब गाँधी जी ने आमरण अनशन करने का निर्णय लिया और 31 अगस्त 1947 को अनशन पर बैठ गए। इसी दौरान एक दिन एक अधेड़ उम्र का आदमी उनके पास पहुंचा और बापूजी से बोला” मैं तुम्हारी मृत्यु का पाप अपने सर पर नहीं लेना चाहता, लो रोटी खा लो।” और फिर अचानक ही वह रोने लगा, ”मैं मरूँगा तो नर्क जाऊँगा!”“क्यों ?”, गाँधी जी ने शालीनता से पूछा। उस आदमी ने कहा ”क्योंकि मैंने एक आठ साल के मुस्लिम लड़के की जान ले ली।” ”तुमने उसे क्यों मारा ?”, गाँधी जी ने पूछा। ”क्योंकि उन्होंने मेरे मासूम बच्चे को जान से मार दिया।” आदमी रोते हुए बोला।
गाँधी जी ने कुछ देर सोचा और फिर बोले,” मेरे पास एक उपाय है।” आदमी आश्चर्य से उनकी तरफ देखने लगा। ”उसी उम्र का एक लड़का खोजो जिसने दंगों में अपने माता-पिता खो दिए हों, और उसे अपने बच्चे की तरह पालो, लेकिन एक चीज सुनिश्चित कर लो कि वह एक मुस्लिम होना चाहिए और उसी तरह बड़ा किया जाना चाहिए।” गाँधी जी ने अपनी बात ख़तम की।
डा. जे. के. गर्ग