अब बताओ कौन कहता है फुरसत नहीं,
बहुत वक़्त से सोच रहा था वो शायद,
कि घर में मेरी कोई करता इबादत नहीं,
आजकल सभी को याद कर लेता हूँ बिन कहे,
अब मत कहना मुझे कि याद की ज़रूरत नहीं,
निकलना मत बाहर अपने आशियाने से दोस्तों,
बिमारी के इस कहर में कहीं भी शराफ़त नहीं,
सबकी खुशी के सिवा मैंने उससे कुछ मांगा हो,
वो जानता है “पाठक” को किसी से नफ़रत नहीं।
त्रिवेन्द्र कुमार “पाठक”