कभी भी कायदे कानून की अवहेलना नहीं होने दी
जब शास्त्रीजी उत्तर प्रदेश में ग्रह मंत्री थे, तब एक दिन शास्त्री जी की मौसी के लड़के को एक प्रतियोगिता परीक्षा में बैठना पड़ा। उसे कानपुर से लखनऊ जाना था। गाड़ी छूटने वाली थी, इसलिए वह टिकट नहीं ले सका। लखनऊ में वह बिना टिकट पकड़ा गया। उसने शास्त्री जी का नाम बताया। शास्त्री जी के पास फ़ोन आया। शास्त्री जी का यही उत्तर था, “हाँ है तो मेरा रिश्तेदार ! किन्तु आप नियम का पालन करें।” यह सब जानने के बाद मौसी नाराज़ हो गई। एक बार उनका सगा भांजा I.A.S की परीक्षा में सफल हो गया, परन्तु उसका नाम सूची में इतना नीचे था कि चालू वर्ष में नियुक्ति का नंबर नहीं आ सकता था, बहन ने अपने भाई से उसकी नियुक्ति इसी वर्ष दिलाने को कहा, अगर शास्त्री जी जरा सा इशारा कर देते तो उसे इसी वर्ष नियुक्ति मिल सकती थी। परन्तु शास्त्रीजी का सीधा उत्तर था, “सरकार को जब आवश्यकता होगी, नियुक्ति स्वतः ही हो जाएगी।” निसंदेह शास्त्रीजी ईमानदारी की साक्षात् मूर्ती थे। नियमों के पालन में उन्होंने कभी भी अपने नाते-रिश्तेदारों का भी पक्ष नहीं लिया, जबकि कई मर्तबा उनके अधीनस्थ अधिकारी, उनके रिश्तेदार की नियम विरुद्ध भी सहायता करने को तैयार थे |
नैतिकता के आधार पर छोड़ दिया था मंत्री पद
1956 में तमिलनाडू के अरियालपुर में हुई रेल दुर्घटना की नेतिक जिम्मेवारी लेते हुए शास्त्रीजी ने रेलवे मंत्री का पद छोड़ दिया था | क्या हम वर्तमान समय मंत्रियों से ऐसे आचरण की अपेक्षा रख सकते हैं? कदापि नहीं |