स्वामीजी के मुताबिक़ विनम्रता से किसी भी जटिल परिस्थिति को हल्का किया जा सकता है और प्रेम के धागे को टूटने से बचाया जा सकता है। स्वामी विवेकानंद के मन में हमेशा अपने आपसे यह सवाल करते थे कि क्या सच में भगवान है? रामकृष्ण जी ने उनके इस प्रश्न के उत्तर में कहा, “हाँ, मैंने भगवान को देखा है ठीक वैसे ही जैसे अभी मैं तुम्हें देख रहा हूँ। भगवान तो हर जगह व्याप्त है, बस तुम्हें उन्हें देखने के लिए वो दृष्टि चाहिए” | अपने गुरु की बात सुनकर उनको विश्वास हो गया कि ईशवर है | स्वामीजी ने अपना सारा जीवन अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस देव को समर्पित कर दिया | रामक्रष्ण जी ने अपनी महा समाधि लेने पूर्व अपने शिष्य नरेन्द्र को अपने सीने से लगाकर कहा आज मेने अपनी सारी साधना और सिद्धियां को तुम्हें सुपुर्द कर दिया और में खाली हो गया हूँ |