तो राजस्थान के भाजपा नेताओं ने भजनलाल शर्मा को मुख्यमंत्री के तौर पर स्वीकार नहीं किया।

25 में से 10 सीटों पर बढत बताती है कि कांग्रेस की रणनीति सफल रही। पर अशोक गहलोत अपने बेटे वैभव को नहीं जितवा सकें।
किरोड़ी मीणा का मंत्री पद से इस्तीफा तय। भाजपा में और भी बड़े बदलाव होगें।

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एस.पी.मित्तल
2023 में राजस्थान के साथ ही मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव हुए थे। इन तीनों राज्यों में भाजपा ने जीत दर्ज की। चूंकि 2019 के लोकसभा चुनाव में इन तीनों राज्यों में सभी सीटों पर भाजपा की जीत हुयी थी इसलिए इस बार भी दावा किया गया कि भाजपा सभी सीटों पर चुनाव जीतेगी। मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में तो भाजपा का यह दावा कामयाब रहा, लेकिन राजस्थान में खोखला साबित हो गया। मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ की तरह राजस्थान में भी विधानसभा चुनाव के बाद भाजपा ने मुख्यमंत्री के तौर पर नया चेहरा दिया। पहली बार विधायक बने भजनलाल शर्मा को मुख्यमंत्री बनाकर सभी पुराने भाजपा नेताओं को चौका दिया। लेकिन 4 जून को घोषित लोकसभा के परिणाम बताते है कि राजस्थान में भाजपा के नेताओं ने भजनलाल शर्मा के तौर पर मुख्यमंत्री को स्वीकार नहीं किया है। यह सही है कि राजस्थान में जातीय समीकरण हावी रहे, लेकिन 25 में से 10 संसदीय क्षेत्रों में कांग्रेस की बढ़त बताती है कि भाजपा के मुकाबले में कांग्रेस की रणनीति सफल रही है। मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा के गृह जिले भरतपुर में भी भाजपा को हार का सामना करना पड़ा है। करौली, धौलपुर को पूर्व सीएम वसुन्धरा राजे का प्रभाव वाला माना जाता है। राजे धोलपुर राजघराने की महारानी है। लेकिन फिर भी इस संसदीय क्षेत्र से कांग्रेस के प्रत्याशी भजनलाल जाटव की जीत हुयी है। इसमें कोई दो राय नहीं कि लोकसभा चुनाव के परिणाम कांग्रेस का उत्साह बढ़ाने वाले हैं। गत दो बार से कांग्रेस को सभी 25 सीटों पर हार का सामना करना पड़ रहा था, लेकिन इस बार 10 सीटों पर बढ़त बताती है कि राजस्थान में कांग्रेस ने उल्लेखनीय प्रदर्शन किया है। इसमें पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट रही की मेहनत भी रही है। जहां तक पूर्व सीएम अशोक गहलोत का सवाल है तो वह जालौर – सिरोही संसदीय क्षेत्र से अपने पुत्र वैभव गहलोत को भी चुनाव नहीं जितवा सके है। वैभव गहलोत की घर और कांग्रेस और अशोक गहलोत के लिए निराशाजनक है। मजे की बात तो यह है कि नतीजों के बाद गहलोत ने नरेन्द्र मोदी की सलाह दी है कि वे प्रधान मंत्री पद से अपना नाम वापस ले ले। यानि जो नेता अपने पुत्र को नहीं जितना सका वह नरेन्द्र मोदी को सलाह दे रहा है। कांग्रेस ने चुनाव में तीन छोटे दलों से गठबंधन किया था। नागौर में आरएलपी के हनुमान बेनीवाल, सीकर में सीपीएन के अमराराम चौधरी और बांसवाड़ा में भारत आदिवासी पार्टी के उम्मीदवार राजकुमार रौत को समर्थन दिया। कांग्रेस का यह प्रयोग भी सफल रहा। इसी प्रकार कांग्रेस ने चूरू से भाजपा के मौजूदा सांसद राहुल कस्वा को ही उम्मीदवार बनाया। कस्वा भी चुरू से चुनाव जीत गए है। भाजपा को झालावाड़, जयपुर शहर, कोटा जयपुर ग्रामीण, राजसमंद, भीलवाड़ा, अलवर, चित्तौड़, उदयपुर पानी, बीकानेर, अजमेर आदि में जीत मिल रही है तो कांग्रेस को दौसा, करौली-धौलपुर, भरतपुर, गंगानगर, चुरू में जीत मिल रही है।

भाजपा में बदलाव
लोकसभा के नतीजों से प्रतीत होता है कि राजस्थान में भाजपा में बड़ा बदलाव होगा। केबिनेट मंत्री किरोड़ी लाल मीना ने तो इस्तीफे की घोषणा भी कर दी है। किरोड़ी ने चुनाव प्रचार के दौरान कहा था कि यदि दौसा से भाजपा 2 प्रत्याशी कन्हैयालाल मीणा की हार हो जाती है तो वे मंत्री पद से इस्तीफा दे देगें जानकार सूत्रों के अनुसार किरोड़ी को पता था कि दौसा में भाजपा की हार होगी। चूंकि किरोड़ी कॅबिनेट मंत्री बनने के बाद भी संतुष्ट नहीं थे इसलिए उन्होंने इस्तीफे की घोषणा कर दी। भाजपा के नेता भी मानते है कि लोकसभा चुनाव में वरिष्ठ नेताओं की उपेक्षा की गई। पूर्व सीएम वसुन्धरा राजे के साथ-साथ पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनियां, प्रतिपक्ष के पूर्व नेता राजेन्द्र राठौड़ जैसे नेताओं को प्रचार की मुख्यधारा से अलग रखा गया। पुनियां को तो हरियाणा का प्रभारी बनाकर राजस्थान से बाहर भेज दिया गया। माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में राजस्थान भाजपा में बड़ा बदलाव होगा।

केन्द्रीय मंत्री तीसरे नम्बर पर
बाड़मेर-जैसलमेर संसदीय क्षेत्र से भाजपा उम्मीदवार और केन्द्रीय मंत्री कैलाश चौधरी तीसरे नम्बर पर रहे हैं। यहां कांग्रेस के उम्मेदाराम बेनीवाल ने जीत दर्ज की है। दूसरे स्थान पर निर्दलीय उम्मीदवार रविन्द्र भाटी रहे है। केन्द्रीय मंत्री का तीसरे स्थान पर रहना भाजपा के लिए निराशाजनक है। यह बात अलग है कि तीन केन्द्रीय मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत, भूपेन्द्र यादव, अर्जुनराम मेघवाल ने क्रमशः जोधपुर, अलवर और बीकानेर से जीत दर्ज कर ली है।

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