नेताजी के प्रेरणादायक नारे : तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा

j k garg

जन जन के नायक महान स्वतन्त्रता सेनानी नेता जी कहते थे कि राष्ट्रवाद मानव जाति के उच्चतम आदर्शों सत्यमशिवमसुन्दरम से प्रेरित होना चाहिये | उन्होंने हमें अपने जीवन में सदेव आगे बढ़ते रहने की प्रेरणा दी थी चाहे हमारा सफर कितना ही भयानककष्टदायी दुखी और बदतर हो |  सुभाष बोस  ने हमें संदेश दिया था कि सफलताहमेशा असफलता के स्‍तंभ पर खड़ी होती है |जो अपनी ताकत पर भरोसा करते हैंवो आगे बढ़ते हैं किन्तु उधार की ताकत वाले घायल हो जाते हैं नेताजी ने बतलाया कि मेरा अनुभव है कि हमेशा आशा की कोई न कोई किरण आती हैजो हमें जीवन से दूर भटकने नहीं देती नेताजी बार बार बोलते थे कि  अन्याय और अपराध को सहना और गलत के साथ समझौता करना है सबसे बड़े पाप हैंभारतीयों का कर्तव्य है कि हम अपनी स्वतंत्रता का मोल अपने खून से चुकाएं | हमें अपने बलिदान और परिश्रम से जो आज़ादी मिलेहमारे अन्दर उस आजादी की रक्षा करने की ताकत होनी चाहिए एक सैनिक के रूप में आपको हमेशा तीन आदर्शों को संजोना और उन पर जीना होगा ये आदर्श हैं सच्चाईकर्तव्य और बलिदान |  जो सिपाही हमेशा अपने देश के प्रति वफादार रहता हैजो हमेशा अपना जीवन बलिदान करने को तैयार रहता हैवो सिपाही अजेय है अगर तुम भी अजेय बनना चाहते हो तो इन तीन आदर्शों को अपने ह्रदय में समाहित कर लो |

  नेताजी अक्सर कहते थे कि सफलता हमसे दूर जरुर हो सकती है किन्तु वह दिन अधिक दूर नहीं जब हम भी सफल होंगे |  याद रखिये कि जीवन में सफलता का आना अनिवार्य ही है  | नेताजी के मुताबिक  मां का प्यार सबसे गहरा और है स्वार्थ रहित होता है | माँ के प्यार को मापने का कोई पैमाना हो नहीं सकता है  मां की ममता और प्यार को किसी भी तरह से मापा नहीं जा सकता नेताजी ने हमको समझाया कि  हमारे देश की प्रमुख समस्याएं गरीबीअशिक्षाबीमारीकुशल उत्पादन एवं वितरण सिर्फ समाजवादी तरीके से ही की जा सकती है |

आजाद हिन्द फौज के प्रणेता क्रांतिकारी  जन नायक सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी, 1897 को कटक के निवासी जानकीनाथ बोस प्रभावती के यहाँ हुआ था | सुभाष 14  लड़के लड़कियों  में से नौवीं संतान थे। उनकी प्रारंभिक शिक्षा कटक में रेवेनशा कॉलेजिएट स्कूल में  हुई | उन्होंने कलकत्ता यूनिवर्सिटी से 1919 में बीए की परीक्षा  प्रथम श्रेणी से पास की थी इस परीक्षा में उन्हें  यूनिवर्सिटी में उन्हें दूसरा स्थान मिला था |1920 की आईसीएस परीक्षा में उन्होंने चौथे स्थान मिलासुभाष का मन अंग्रेजों के अधीन काम करने का नहीं था  इसलिए उन्होंने ICS से एक साल के भीतर 22 अप्रै 1921 को त्यागपत्र दे दिया क्योंकि उनके दिल अंग्रेजों की गुलामी और भारत माता का आजाद करने का जुनून था |  गुरुदेव  रवीन्द्रनाथ  की सलाह के अनुसार भारत वापस आने पर वे सर्वप्रथम बंबई गये और गांधीजी से मिले। वहाँ 20 जुलाई 1921 को गांधी जी और सुभाष के बीच पहली मुलाकात हुई। बहुत जल्द ही सुभाष देश के एक महत्वपूर्ण युवा नेता बन गये।  नेहरूजी के साथ सुभाष ने कांग्रेस के अंतर्गत युवाओं की इण्डिपेंडेंस लीग शुरू की। 1928 में जब साइमन कमीशन  भारत आया तब कांग्रेस ने उसे काले झंडे दिखाये। कोलकाता में सुभाष ने इस आंदोलन का नेतृत्व किया। साइमन कमीशन को जवाब देने के लिये कांग्रेस ने भारत का भावी संविधान बनाने का काम आठ सदस्यीय आयोग को सौंपा।  मोतीलाल नेहेरू  इस आयोग के अध्यक्ष बनाये गये सुभाष बाबू को इस आयोग का सदस्य बनाया गया|  1930 में जब कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में  लाहौर में हुआ तब इस अधिवेशन  के अन्दर  तय किया गया कि  भारत में 26 जनवरी का दिन स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जायेगा।

अपने सार्वजनिक जीवन में सुभाष को कुल 11 बार कारावास का दण्ड मिला । सबसे पहले उन्हें 16 जुलाई 1921 में छह महीने के लिये क्रष्ण मन्दिर जाना पड़ा । 1930 में सुभाष कारावास में ही थे कि चुनाव में उन्हें कोलकाता का महापौर चुना गया। इसलिए सरकार उन्हें रिहा करने पर मजबूर हो गयी। वे जब कलकत्ता महापालिका के प्रमुखख अधिकारी बने तो उन्होंने कलकत्ता के रास्तों का अंग्रेजी नाम हटाकर भारतीय नाम पर कर दिया |1934 ई. में सुभाष अपना इलाज कराने के लिए ऑस्ट्रिया गए थे | उस समय उन्हें अपनी पुस्तक टाइप करने के लिए एक टाइपिस्ट की जरूरत थी | उन्हें एमिली शेंकल नाम की एक टाइपिस्ट महिला मिली | उन्होंने  से सन् 1942 में बाढ़ गस्टिन नामक स्थान पर हिन्दू रीति रिवाज के अनुसार  एमिली शेंकल से विवाह किया। एमिली शेंकल से उनको पुत्री रत्न की प्राप्ति हुई जिसका नाम अनीता रक्खा | सुभाष ने उसे पहली बार तब देखा जब वह मुश्किल से चार सप्ताह की थी। 1938 में हरिपुरा अधिवेशन  में कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए चुना गया । इस अधिवेशन में सुभाष का अध्यक्षीय भाषण बहुत ही प्रभावी हुआ। । 3 मई 1939 को सुभाष ने कांग्रेस के अन्दर ही फॉरवर्ड ब्लाक के नाम से अपनी पार्टी की स्थापना की। कुछ दिन बाद सुभाष को कांग्रेस से ही निकाल दिया गया। बंगाल की भयंकर बाढ़ में घिरे लोगों को उन्होंने भोजन, वस्त्र और सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाने का साहसपूर्ण काम किया था | समाज सेवा का काम नियमित रूप से चलता रहे इसके लिए उन्होंने ‘युवक-दल’ की स्थापना की |

द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरानअंग्रेज़ों के खिलाफ लड़ने के लियेउन्होंने जापान के सहयोग से आज़ाद हिन्द फ़ौज का गठन किया था उनके द्वारा दिया गया जय हिन्द का नारा भारत का राष्ट्रीय नारा बन गया है। उन्होंने भारतवासियों को “तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आजादी दूंगा” का नारा दिया था जो आज भी हमारे मन मस्तिष्क में गूंज रहा है 

21 अक्टूबर 1943 को सुभाष बोस ने आजाद हिन्द फौज के सर्वोच्च सेनापति की हैसियत से स्वतन्त्र भारत की अस्थायी सरकार बनायी जिसे जर्मनी, जापान, फिलीपींस, कोरिया, चीन, इटली, मान्छेको और आयरलैंड समेत 11 देशों ने मान्यता दी। जापान ने अंडमान व निकोबार द्वीप इस अस्थायी सरकार को दे दिये। सुभाष उन द्वीपों में गये और उनका नया नामकरण किया। जुलाई 1944 को उन्होंने रंगून रेडियो स्टेशन से महात्मा गांधी के नाम एक प्रसारण जारी किया जिसमें उन्होंने इस निर्णायक युद्ध में विजय के लिये उनका आशीर्वाद और शुभकामनाएँ माँगीं इस भाषण के दौरान नेताजी ने गांधीजी को राष्ट्रपिता कहा तभी गांधीजी ने भी उन्हे नेताजी कहातभी से उन्हें नेताजी कहा जाने लगा । नेताजी ने कहा था कि हमारा कर्तव्य है कि हम अपनी स्वतंत्रता का मोल अपने खून से चुकाएं हमें अपने बलिदान और परिश्रम से जो आज़ादी मिलेहमारे अन्दर उसकी रक्षा करने की ताकत होनी चाहिए सुभाष बाबू ने कहा था याद रखिए सबसे बड़ा अपराध अन्याय सहना और गलत के साथ समझौता करना है |नेताजी कहा करते थे कि एक सैनिक के रूप में उनको आपको हमेशा सच्चाईकर्तव्य और बलिदान जेसे तीन आदर्शों को संजोना और उन पर जीना होगा |
23 अगस्त 1945 को टोक्यो रेडियो ने बताया कि सैगोन में नेताजी एक बड़े बमवर्षक विमान से आ रहे थे कि 18 अगस्त को ताइहोकू हवाई अड्डे के पास उनका विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया। विमान में उनके साथ सवार जापानी जनरल शोदाई, पायलट तथा कुछ अन्य लोग मारे गये। नेताजी गम्भीर रूप से जल गये थे। उन्हें ताइहोकू सैनिक अस्पताल ले जाया गया जहाँ उन्होंने अंतिम श्वास ली और नेताजी पंच महाभूतों में विलीन हो गये। सितम्बर के मध्य में उनकी अस्थियाँ संचित करके जापान की राजधानी टोक्यो के रेगोंजी मंदिर में रख दी गयी भारतीय महालेखाकार से प्राप्त दस्तावेजों के अनुसार नेताजी की मृत्यु 18 अगस्त 1945 को ताइहोकू के सैनिक अस्पताल में रात्रि ग्यारह बजे हुई थी।

आजाद हिन्द फौज के माध्यम से भारत को अंग्रेजों के चंगुल से आजाद करने के नेताजी का प्रयास हालांकि प्रत्यक्ष रूप में सफल नहीं हो सका था किन्तु  उनका दूरगामी परिणाम हुआ। सन् 1946  के नौसेना का विद्रोह   इसका जीता जागता प्रमाण है। नौसेना विद्रोह के बाद ही ब्रिटेन को विश्वास हो गया कि अब भारतीय सेना के बल पर भारत में शासन नहीं किया जा सकता और भारत को स्वतंत्र करने के अलावा उनके पास कोई दूसरा विकल्प नहीं बचा।

आजाद हिन्द फौज को छोड़कर विश्व-इतिहास में ऐसा कोई भी दृष्टांत नहीं मिलता जहाँ तीस-पैंतीस हजार युद्धबंदियों ने संगठित होकर अपने देश की आजादी के लिए ऐसा प्रबल संघर्ष छेड़ा हो।

सुभाष चंद्र बोस के उनके संघर्षों और देश सेवा के जज्बे के कारण ही महात्मा गांधी ने उन्हें देशभक्तों का देशभक्त कहा था | नेताजी मानते थे कि जिस व्यक्ति के अंदर ‘सनक’ नहीं होती वो कभी महान नहीं बन सकता | लेकिन उसके अंदर, इसके अलावा भी कुछ और होना चाहिए |

आजाद हिंद सरकार के 75 साल पूर्ण होने पर साल 2018 मे पहली बार किसी प्रधानमंत्री ने 15 अगस्त के अलावा लाल किले पर तिरंगा फहराया।  प्राप्त सूचनाओं के मुताबिक नेताजी के 125 वें जन्मदिवस के उपलक्ष में भारत सरकार 2022 के गणतंत्र दिवस समारोह का शुभारंभ 24 जनवरी के बजाय 23 जनवरी से करने की योजना बना रही है |जन जन के दुलारे नेताजी का जन्मदिन देश में पराक्रम दिवस के रूप में मनाया जाता है | जन जन के दुलारे नेताजी के 23 जनवरी 2025 को  राष्ट्र उन के 128  वें जन्म दिन पर उनके श्री चरणों में श्रद्धा सुमन अर्पित करता है |

डा. जे. के. गर्ग

पूर्व संयुक्त निदेशक कालेज शिक्षा जयपुर

error: Content is protected !!