स्वामी श्री हिरदाराम जी की गाली निहाल कर देती थी

अगर हमें कोई गाली दे तो स्वाभाविक रूप से हमें बुरा लगता है। गुस्सा आता है। मगर क्या आप यह मान सकते हैं कि कोई आपको गाली दे और आप खुश हो जाएं, आल्हादित हो जाएं। जी हां, अजमेर में एक ऐसी महान हस्ती गुजरी है, जिनकी गाली खा कर आदमी खुश हो जाता था। उनकी गाली को प्रसाद के रूप में लेता था। चंद लोगों को ही पता है कि वह शख्सियत थी स्वामी श्री हिरदाराम जी। वे अपने किस्म के अनूठे संत थे। सहज, सरल, अलमस्त, अत्यंत दयालु, आडंबर से कोसों दूर, प्रसिद्धि व सम्मान की तनिक भी चाह नहीं। निःस्वार्थ भाव से प्राणी मात्र की सेवा ही उनकी साधना थी। उनका एक जुमला प्रसिद्ध है- बूढे, बच्चे और बीमार, हैं परमेश्वर के यार, करें भावना से इनकी सेवा, पाएंगे लोक परलोक में सुख अपार।
पुष्कर में एक छोटे से आश्रम में रहते थे, जिसे हिरदारामजी की कुटिया कहा जाता है। अकाल के दौरान उनकी प्रेरणा से जीव सेवा समिति ने अजमेर जिले में सैकडों प्याऊ खोली थीं। अभाव ग्रस्त गांवों में टैंकरों से पानी की टैंकर सप्लाई किए गए। उनकी ही प्रेरणा से दयाल वीना डायग्नोस्टिक सेंटर व पागारानी हॉस्पीटल संचालित हैं। उनकी स्मृति में अजमेर में हर साल निःशुल्क नेत्र चिकित्सा शिविर और यूरोलॉजी कैम्प आयोजित होते हैं। बैरागढ भोपाल में उनके नाम से जनसेवा के बीसियों प्रोजेक्ट संचालित हैं। ऐसी महान हस्ती के अनुयाइयों के अनूठे अनुभव हैं। वे उनकी कृपा पाने को आतुर रहते थे। उनके आदेश की पालना को तत्पर रहते थे। उनके आशीर्वाद से अनेक श्रद्धालुओं के जीवन परिवर्तित हो गए। अगर वे किसी को सहज भाव में गाली दे देते तो वह अपने आपको धन्य समझता था। ऐसे अनेक प्रसंग हैं कि जिन को उन्होंने गाली दे कर पुकारा वह मालामाल हो गया, निहाल हो गया। कैसी अनूठी कीमिया रही होगी। किसी पर कृपा बरसाने का अनोखा तरीका।

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