देश में बढ़ रही साक्षरता, तमाम जागरूकता और आधुनिकता के बावजूद आज भी बाल विवाह तेजी से हो रहे हैं। विशेषकर आखातीज पर राजस्थान में बड़े पैमाने पर बाल विवाह होते हैं। पुलिस व प्रशासन के तमाम इंतजाम व सरकार के प्रयास को धता बताते हुए बाल विवाह होते रहे हैं।
मार्च 2015 में जारी जनगणना 2011 के आंकड़ों अनुसार देश में 1.21 करोड़ लोग ऐसे हैं, जिनका बाल विवाह हुआ है। इसमें 51.57 लाख लड़कियां व 69.49 लाख लड़कों के बाल विवाह हुए। सर्वाधिक बाल विवाह वाले पहले 7 राज्यों में राजस्थान का तीसरा स्थान है। राजस्थान में 12 लाख 91 हजार 700 बाल विवाह हुए हैं। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (2005-06) के आंकड़ों अनुसार भारत में हर पांच में से 2 लड़कियों की शादी नाबालिग उम्र में होती है। वार्षिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2011-12 के अनुसार राजस्थान में अभी भी 2 से 11 बालिका का विवाह 18 वर्ष की कम उम्र में हो जाता है। नेशनल क्राइम रिकाॅर्ड ब्यूरो के आंकड़ों अनुसार देश में वर्ष 2011 में 113, 2012 में 169 व 2013 में 222 बाल विवाह के मामले दर्ज हुए। भारत में अब भी बाल विवाह के चलते सबसे ज्यादा प्रचलन में है। दुनिया को हर तीन में से एक बाल वधू भारत देश में है। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट अनुसार दक्षिण एशिया, उप सहारा अफ्रीका और भारत बाल विवाह के मामले में सबसे आगे है। दुनियाभर की बाल वधुओं में से करीब आधी (42 फीसदी) दक्षिण एशिया में है। इस समय दुनिया भर में 70 करोड़ ऐसी महिलाएं हैं जिनका विवाह 18 वर्ष से कम उम्र में कर दिया गया। करीब 25 करोड़ महिलाओं का विवाह तो 15 वर्ष से भी कम उम्र में हो गया था।
कच्ची उम्र में की गई शादी से लड़कियों के स्वास्थ्य पर भी गहरा आघात लगता है। वार्षिक स्वास्थ्य सर्वे 2010-11 के आंकड़ों अनुसार भारत में 15-19 वर्ष की 46 फीसदी विवाहित लड़कियां गर्भवती या मां बनी। यूनिसेफ चाइल्ड मैरिज इंफ्रेमेंशन शीट के मुताबिक अगर लड़की 20 साल से कम उम्र में मां बनती है तो 5 साल की उम्र तक बच्चों को मृत्यु का अंदेशा डेढ गुना बढ़ जाता है। बाल विवाहों के चलते बालिकाओं के जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव का अंदाजा उपरोक्त आंकड़ों से आसानी से लगाया जा सकता है।
सवाल ये है कि तमाम सरकारी प्रयासों के बाद भी इन बाल विवाहों को समय रहते रोका क्यों नहीं जाता। इसके पीछे भला क्या कारण हो सकता है। पुलिस प्रशासन की गहरी नींद या बाल विवाह करने वालों की दबंगता। अगर समाज के कुछ लोग यूंही पुलिस को ढेंगा दिखाकर ही खिल्ली उड़ाएंगे तो यूंही मासूमों को कराहें रस्मों के बोझ तले दबाई जाती रहेगी। और सरकार सिर्फ कागजी कार्रवाई करती हुई ही दिखाई देती रहेगी।
बहरहाल, बाल विवाह आज भी ज्वलंत समस्या के रूप में हमारे सामने हैं। यह अनादिकाल से चली आ रही है। सामाजिक चेतना के अभाव और कानून की शिथिलता के कारण इस सामाजिक कुरीति को बढ़ावा मिलता है। सामाजिक मान्यता मिलने के कारण इसे बढ़ावा मिला। इसी कारण इस कुप्रथा ने विकराल रूप धारण कर लिया। अशिक्षा एवं अंधविश्वासी समाज ने इस कुप्रथा को अपना लिया। बाल विवाह को बच्चों के अधिकारों का उल्लंघन भी माना गया है। जब तक बच्चे बालिग या समझदार न हो जाएं और अपने भले-बुरे की पहचान के योग्य नहीं हो जाएं, तब तक बाल विवाह नहीं करना चाहिए। यह भी वैज्ञानिक परिणामों से स्पष्ट है कि बाल विवाह से अच्छे स्वास्थ्य, पोषण, शिक्षा का अधिकार, खेलने-कूदने के अवसर हासिल नहीं होते। बाल विवाह को रोकने के लिए समाज में जन चेतना के प्रयास जरूरी हैं। कुछ दशकों से इस दिशा में किए गए प्रयासों का असर देखने को मिला है। शिक्षित समाज ने इस सामाजिक बुराई को समझा, पर ग्रामीण तबका आज भी बाल विवाह का पक्षधर है। इसे समझाने के लिए साम, दाम, दंड और भेद के जरिये बाल विवाह रोकने के प्रयास करना होंगे।

सवाल बाल अधिकारों की रक्षा का
29 अप्रैल को अक्षय तृतीया यानी आखा तीज है। इस दिन को विवाह के लिए शुभ मुहूर्त मानकर बड़े पैमाने पर विवाह संपन्न होते हैं। इस क्रम में अनेक बाल विवाह भी होते हैं। आखातीज को नजदीक आते देख सरकार व प्रशासन ने भी कमर कस ली है। मुस्तैदी से बाल विवाह रोकने की तैयारी कर ली गई है। अब तक सोया हुआ प्रशासन जाग उठा है। बाल विवाह को रोकने के लिए समाचार-पत्रों में बड़े-बड़े विज्ञापन दिए जा रहे हैं। ‘‘ बाल विवाह अपराध है‘‘ जैसे स्लोगन टीवी, अखबारों में सुनने को मिल रहे हैं। आखा तीज को नजदीक देखते हुए जोर-शोर से अभियान चलाए गए हैं। लेकिन कुछ समय बाद स्थितियां वैसी की वैसी हो जाएगी। बाल विवाह के लिए बदनाम राजस्थान फिर किसी सर्वेक्षण या अध्ययन रिपोर्ट में बाल विवाहों के मामले में पहले या दूसरे स्थान पर आ जाएगा।
बाबूलाल नागा
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( लेखक भारत अपडेट के संपादक हैं)