विलक्षण प्रतिभा के धनी लोह पुरुष सरदार पटेल

dr. j k garg

लौह पुरुष सरदार पटेल के नेहरूजी जी बीच आत्मीयता और प्रेम के बावजूद उनके रिश्तों के बारे में भ्रामक और झूठा प्रचार आजकल जोर शोर से किया जा रहा है | नेहरूजी और पटेल के रिश्तो पर सबसे प्रामाणिक दस्तावेज इलाहाबाद के कांग्रेस नेता श्री श्याम कृष्ण पांडे जी के परिवार के पास 715 पन्नो की एक दुर्लभ किताब “नेहरू अभिनंदन ग्रन्थ” है | इस किताब को नेहरू-पटेल के रिश्तो पर सबसे प्रामाणिक दस्तावेज के रूप में माना जाता है | इसी किताब के अंदर 14 अक्टूबर,1949, को लिखा सरदार पटेल का एक पत्र का उल्लेख किया गया जिसमें सरदार लिखते है जवाहरलाल और मैं आज़ादी के सहयोद्धा है और बापू के समर्पित अनुगामी |चूंकि हम दोनों इतने गहरे मित्र रहे कि हमारा आपसी प्यार, विश्वास, समयके साथ बढ़ता गया ही गया| मैं आप लोगो को बता नही सकता कि जब हम एक दूसरे से दूर होते है तो एक दूसरे को कितना “याद” करते है | में हमारे परस्पर एक दुसरे दूसरे जानने और हमारी आपसी नजदीकियां, प्रगाढ़ता और हम में भाईयो जैसे स्नेह प्रेम को शब्दों के अंदर व्यक्त नही कर सकता | जवाहरलाल, जनता के आदर्श है और जनता के नेता एवँ नायक हैं | देश के प्रधानमंत्री को मेरी प्रसंशा` की कोई जरूरत ही नही है | वो तो एक खुली किताब है | इसी पत्र में सरदार लिखते है कि ये मेरा सौभाग्य है कि मैं जवाहरलाल को सलाह देता हूं | जवाहरात मेरी हर बात पर अमल करते है | कुछ आदमी मेरे और जवाहरलाल के बीच मतभेद की झूठी खबर फैलाते है..पर हमारा एक दूसरे के प्रति अटूट विश्वास है |
सरदार पटेल 1931 मे कांग्रेस के अध्यक्ष बने।

सरदार मानते थे कि पद की उनके दिल में कोई अहमियत नहीं है राष्ट्र हित और देश सेवा ही मेरे लिये सर्वोपरि है | सरदारपटेल ने कहा कि मुसलमान भाई अपनी जगह पर रहे, हिन्दू अपनी जगह पर रहें | जो जैसा चाहे अपना मजहब और धर्म को माने और उसका पालन करें | धर्म के नाम पर उनमें कोई झगड़ा मन मुटाव नहीं होना चाहिये | इस मुल्क में रहने वाला हर इन्सान सबसे पहिले वो हिन्दुस्तानी है| यहाँ कोई गेर नहीं है | गांधीजी की हत्याके बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को प्रतिबंधित करने का आदेश लोंह पुरुष पटेल ने ही दिया था |

आजादी के बाद भारत को एक एकीकृत राष्ट्र के निर्माण में सरदार का अमूल्य योगदान रहा जिसके समूचा देश उनको सदेव याद करेगा

उनके व्यक्तित्व की दृढ़ता, ईमानदारी और भाई-भतीजावाद के विरुद्ध उनके सख्त रवैये का भी संस्मरणों में वर्णन है।

उन्होंने लंदन से बैरिस्टर की पढ़ाई की और भारत लौटने पर अहमदाबाद में वकालत शुरू की।

युवावस्था में ही उन्होंने एक भ्रष्ट शिक्षक के विरुद्ध छात्रों का विद्रोह संगठित किया था। 1917 में अहमदाबाद नगर निगम में स्वच्छता आयुक्त के रूप में चुने जाने के साथ ही उनके सरकारी जीवन की शुरुआत हुई।

महात्मा गांधी के प्रभाव में आने के बाद उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया और खेड़ा संघर्ष में अपना पहला योगदान दिया।
बारडोली सत्याग्रह की सफलता पर वहां की महिलाओं ने उन्हें “सरदार” की उपाधि दी थी।
भारत के पहले गृहमंत्री के रूप में, उन्होंने लगभग 565 रियासतों को भारतीय संघ में एकीकृत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और जूनागढ़ तथा हैदराबाद जैसी रियासतों को भारत में शामिल कराया।
उन्हें अपने मजबूत और दृढ़ व्यक्तित्व के लिए जाना जाता था।
वह भाई-भतीजावाद के सख्त खिलाफ थे और उन्होंने अपने बेटे को भी उनसे दूर रहने की सलाह दी थी। वे सादा जीवन जीते थे और उनका व्यक्तित्व बहुत प्रभावशाली था, जिसमें एक गंभीर भाव-भंगिमा और सीधी-सादी लेकिन भेदने वाली आंखें शामिल थीं।
1948 के अंत तक उनके स्वास्थ्य में गिरावट आने लगी थी और वे चीजें भूलने लगे थे, साथ ही उन्हें सुनने में भी दिक्कत होने लगी थी।
सरदार पटेल वास्तव में अपने कर्तव्य के प्रति ईमानदार थे। उनके इस गुण का दर्शन हमें सन् 1909 की इस घटना से लगता है। वे कोर्ट में केस लड़ रहे थे, उस समय उन्हें अपनी पत्नी की मृत्यु का तार मिला तो भी उन्होंने अपने मुवक़िल के लिए सुनवाई चालू रखी।

सरदार पटेल के निधन के 41 साल बाद सन् 1991 में उन्हें देश के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से नवाजा गया। उनकी ओर से यह सम्मान उनके पौत्र विपिनभाई पटेल ने स्वीकार किया

सरदार पटेल: जिन्होंने राजाओं को ख़त्म किए बिना ख़त्म कर दिए रजवाड़े को भारत मे मिलाया।

जमोहन गांधी ने अपनी किताब पटेल में लिखा हैं कि 12 दिसंबर, 1950 को सरदार पटेल को वेलिंग्टन हवाईपट्टी ले जाया गया जहाँ भारतीय वायुसेना का डकोटा विमान उन्हें बंबई ले जाने के लिए तैयार खड़ा था. विमान की सीढ़ियों के पास वे गिर गये।

सरदार वल्लभभाई पटेल के राजनीतिक सचिव रहे वी. शंकर अपनी पुस्तक ‘सरदार पटेल के साथ मेरे संस्मरण’ में लिखते हैं, ‘महात्मा गांधी को यह उम्मीद थी कि जम्मू-कश्मीर भारत का हिस्सा बनेगा । सरदार ने बापू के इस सपने को पुरा किया।
नि:संदेह स्वतंत्र भारत के प्रथम उप प्रधानमंत्री व गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल भारतीय स्वाधीनता संग्राम के अग्रणी योद्धा व भारत सरकार के आधार स्तंभ थे। आजादी से पहले भारत की राजनीति में इनकी दृढ़ता और मजबूत इरादो ने उनको प्रथम पकन्ति का नेता बना दियादिय वर्ष 1917 के खेड़ा सत्याग्रह में अंग्रेज सरकार द्वारा लगाए गए अनुचित कर का सरदार पटेल के नेतृत्व में व्यापक विरोध हुआ। अंग्रेजों द्वारा किसानों पर अत्यधिक लगान का बोझ डालने के विरोध में सरदार पटेल ने आंदोलन का नेतृत्व किया।

सरदार वल्लभभाई पटेल की आकस्मिक देहांत के बाद नेहरू ने पार्टी के सांसदों से बोला सरदार हम सबके प्रिय नेता थे हमे उनके अधूरे काम पूरे करने है वे मेरे बड़े भाई थे। संयोग की बात है कि दोनों 75 वर्ष की आयु मे दिवगत हुए

सरदार वल्लभभाई पटेल भारत के पहले उप प्रधानमंत्री और गृह मंत्री थे, जिन्हें भारत के एकीकरण में उनके महत्वपूर्ण योगदान के लिए “लौह पुरुष” कहा जाता है। उनका जन्म 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात में हुआ था और 15 दिसंबर 1950 को उनका निधन हो गया। उन्होंने 562 से अधिक रियासतों को भारत में विलय करने में अहम भूमिका निभाई थी।
उन्हें प्यार से “सरदार” कहा जाता है, जिसका अर्थ “प्रमुख” होता है। उनकी मजबूत इरादों वाली शख्सियत के कारण उन्हें “लौह पुरुष” की उपाधि मिली।
सरदार पटेल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक प्रमुख नेता और महात्मा गांधी के सहयोगी थे। उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
बापू की ह्त्या के बाद उन्होंने आर एस एस पर प्रतिबन्ध लगा दिया था।

उन्होंने भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) की नींव रखी।
उन्होंने गोवा, दमन और दीव जूनागढ़ हेदराबाद क्षेत्रों को भी भारत का हिस्सा बनाने में योगदान दिया।

उनका जन्म गुजरात के नाडियाड में हुआ था और उन्होंने इंग्लैंड से वकालत की पढ़ाई पूरी की।
उन्होंने अपनी वकालत की शुरुआत अहमदाबाद में की और सार्वजनिक सेवा में अपना करियर शुरू किया।
उनकी पत्नी की मृत्यु के बाद, उन्होंने दोबारा शादी न करने का फैसला किया और पूरा जीवन भारत की सेवा में लगाया।
वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता थे, जिन्होंने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन और भारत के राजनीतिक एकीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
उनका जन्म लेवा पट्टीदार जाति के एक समृद्ध ज़मींदार परिवार में हुआ था। वे अपने पिता झवेरभाई पटेल एवं माता लाड़बाई की चौथी संतान थे

वल्लभभाई झावेरभाई पटेल ने
खेडा संघर्ष ,बारडोली सत्याग्रह आजादी के बाद देसी राज्यों का विलिनिकरन
. गांधीजी के निष्टावान अनुयाई थे। वे नेहरु को अपना नेता मानते थे।
राष्ट्र उनको उनकी 150 वी जयन्ती पर उनके चरणो मे नमन करता है।

डा जे के गर्ग
पूर्व संयुक्त निदेशक कालेज शिक्षा

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