संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद और श्रीलंका

keshav ram singhalमैंने अपने पिछले लेख ‘श्रीलंकाई मुद्दा – सामरिक और राजनैतिक मज़बूरियों के साथ भारत सरकार’ में लिखा भी था कि भारत में भी राजनैतिक माहौल गर्मा गया है, देखना है कि भारत सरकार का रुख क्या रहता है. भारत सरकार को सामरिक और राजनैतिक मज़बूरियों के साथ मानव अधिकारों के संतुलन के लिए उचित निर्णय लेना होगा और यह ध्यान भी रखना होगा कि श्रीलंका से हमारे रिश्ते खराब ना हों. आगे का कार्य बहुत ही महत्वपूर्ण है कि एक ऐसा स्वीकार्य समाधान आम सहमति से तैयार किया जाय, जिसे श्रीलंका सरकार लागू करने के लिए तैयार और सक्षम हो. यह बहुत ही मुश्किल कार्य है. अन्तिम मसौदा जो भी हो भारत सरकार को श्रीलंका की संप्रभुता की पुष्टि के साथ प्रस्ताव के समर्थन में वोट करना होगा, ऐसी संभावना लगती है.

जैसी आशा थी भारत ने अमरीकी प्रस्ताव के समर्थन में वोट दिया, पर जैसा कि डीएमके ने माँग की थी कि भारत को अमेरिकी प्रस्ताव में संशोधन करते हुए उसे और सख्त बनाना चाहिये, भारत ने ऐसा कोई संशोधन पेश नहीं किया. संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कौंसिल ने गुरुवार को अमेरिकी समर्थित संकल्प प्रस्ताव पारित कर दिया. भारत सरकार ने श्रीलंका में अनावश्यक दखलंदाजी से बचने के लिए कोई संशोधन प्रस्तुत नहीं किया. भारत सरकार का मानना है कि भारत एक पड़ोसी देश होने के कारण श्रीलंका में होने वाली घटनाओं से पूरी तरह अछूता  नहीं रह सकता और श्रीलंका सरकार पर लग रहे मानवाधिकार उल्लंघन के आरोपों की निष्पक्ष और स्वतन्त्र जाँच कराये जाने की आवश्यकता बताई. ‍संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार तमिल अलगाववादियों के साथ गृह-युद्ध में दसियो हजार लोगों की मौत हो गयी. संयुक्त राष्ट्र पैनल का यह मानना है कि गृह-युद्ध में दोनों पक्षों ने युद्ध-अपराध और मानवाधिकारों के विरुद्ध अपराध किए हैं. अब इस बात की अत्यन्त जरूरत है कि श्रीलंका और उसके अल्पसंख्यक तमिलों के बीच की खाई को समाप्त किया जाए. श्रीलंका सरकार के प्रतिनिधि ने प्रस्ताव का विरोध किया और कहा कि श्रीलंका सरकार हमेशा मानवाधिकार परिषद के साथ मिलकर काम करती रही है. वे ऐसा कुछ भी नहीं चाहते है जो उन्हें गले के नीचे तक मजबूर करे. आपसी सम्मान की आवश्यकता है. श्रीलंका सरकार ने तर्क देते हुए कहा कि उसने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद की सिफारिशों को अपने स्तर पर लागू किया है और कर रहा है. पर आलोचकों का कहना है कि श्रीलंका द्वारा संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद की सिफारिशों को धीमी गति से लागू किया गया.

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के पारित प्रस्ताव में ऐसी कोई बात नहीं दिखती जिसे मानने में श्रीलंका को अब आपत्ति होनी चाहिए. अब श्रीलंका सरकार के लिए आत्म-मंथन करने का समय है और उसे सरकार और अल्पसंख्यक तमिलों के बीच की खाई को समाप्त कराने का सार्थक प्रयास करना चाहिये.

– केशव राम सिंघल
(लेखक राजनीति विज्ञान के स्नातकोत्तर हैं तथा 1975 में श्रीलंका की यात्रा कर चुके हैं.)

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