अजमेर। सूफी संत हजरत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती का 801 वां उर्स का शुक्रवार को कुल की रस्म के साथ समापन हो गया। दरगाह स्थित महफिल खाने में कुल की महफिल हुई जिसकी सदारत ख्वाजा साहब के वंशज एवं सज्जादानशीन दीवान सैय्यद ज़ैनुल आबेदीन अली खान परम्परागत रूप से की।
दरगाह दीवान के सचिव एवं सैय्यद नसीरूद्दीन चिश्ती ने बताया कि शुक्रवार को प्रातः महफिल खानें में कुरआन ख्वानी की जाकर पौने ग्यारह बजे हजरत अमीर खुसरो द्वारा लिखित आज रंग है री मां रंग है……… से कुल की महफिल का आगाज हुआ और इसमें देश की विभिन्न खानकाहों के सज्जादानशीन, सूफी, मशायख सहित जायरीने ख्वाजा अकीदत के साथ मोजूद रहे। कुल की महफिल में दरगाह की प्रथम चोकी के कव्वालों द्वारा रंग और बधावे के अलावा फारसी व हिन्दी में सूफीमत के प्रर्वतकों द्वारा लिखे गऐ कलाम पेश किये। दोपहर सवा बारह बजे मोरूसी फातेहाखां जुबैर अहमद व करीम अली द्वारा संदल और पान के बिड़ों पर फातेहा पढ़ी। साढे बारह बजे शाहजहानी नौबत खाने से शादियाने बजाकर कुल का ऐलान किया गया और तोपें दागी गई। पारम्परिक रस्म के तहत दरगाह कमेटी की और से मोरूसी अमले रकाबदार हुसैन खां ने दरगाह दीवान को खिलअत पहनाया और दस्तारबंदी की। महफिल खाने से दीवान सैय्यद ज़ैनुल आबेदीन अली खान अपने परिवार के साथ आस्ताने शरीफ में कुल की रस्म अदा करने गऐे उन्होने जन्नती दरवाजे से आस्ताना शरीफ में प्रवेश किया उनके दाखिल होने के बाद जन्नती दरवाजा बंद कर दिया गया। आस्ताने में कुल की रस्म हुई जिसमें फातेहा पढ़ी जाकर मुल्क में अमन चैन ओर खुशहाली की दुआ की गई। आस्ताने में दरगाह दीवान साहब की दस्तारबंदी की गई। कुल की रस्म सम्पन्न करके दीवान साहब आस्ताने से खानकाह शरीफ पहुंचे जहां कदीम रस्म के मुताबिक अमला शाहगिर्द पेशां मौरूसी अमले की दस्तारबंदी की। इस अवसर पर देशभर से आऐ कलंदरों (फकीर) दाग़ोल की रस्म अदा की जिनके सरगिरोह और खलिफाओं की दस्तारबंदी भी दीवान साहब द्वारा की गई।
दरगाह दीवान ने जिला प्रशासन व पुलिस प्रशासन सहित खादिमों की संस्था अंजुमन के पदाधिकारियों को 801 वे उर्स की मुबारकबाद देते हुऐ उर्स के सफल आयोजन एवं जायरीनों के लिये बेहतर इन्तेजामात और मजहबी रस्मों में साकारात्मक सहयोग के लिये धन्यवाद दिया।
-सैय्यद नसीरूद्दीन चिश्ती
सचिव एवं जांनशीन
दरगाह दीवान अजमेर