नई दिल्ली । असम के कारवी आंगलन इलाके के धनश्री गांव की रहने वाली 11 वर्षीय पुष्पा के सामने ही उग्रवादियों ने उसके पिता व भाई को गोलियों से छलनी कर दिया था। वर्ष 2009 में आतंकवादियों के इस हमले में वह किसी तरह से बच तो गई, लेकिन उसकी जिदंगी में दूर-दूर तक अंधेरे के सिवा कुछ नहीं बचा था। महज तीन साल में ही पुष्पा ने दिल्ली में राज्यस्तरीय एथलीट प्रतियोगिता में गोल्ड मेडल जीतकर हौसले की कहानी गढ़ डाली।
इसी तरह से त्रिपुरा के रहने वाले 12 वर्षीय जय के पिता भी उग्रवादी हिंसा के शिकार हो गए थे। मां अब भी वहीं रिफ्यूजी कैंप में है, लेकिन सातवीं कक्षा का छात्र जय अब जिंदगी की बाधाओं से पार पाना सीख गया है। यही कारण है कि वह अपने वर्ग में 90 फीसद से अधिक अंक प्राप्त कर रहा है। रानीबाग के आर्य गुरुकुल में निशुल्क शिक्षा ग्रहण कर रहे पुष्पा व जय तो बानगी भर हैं।
यहां असम, त्रिपुरा, नागालैंड, उड़ीसा, मध्य प्रदेश व राजस्थान आदि राज्यों के उग्रवाद व प्राकृतिक आपदा के शिकार 146 ऐसे बच्चे हैं जो राष्ट्रीय ही नहीं, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा चुके हैं। 21 लोगों की टीम गुरुकुल को चला रही है। इन्हें अब तक सरकारी स्तर पर कोई सहायता तो नहीं मिली है, बावजूद परोपकार की भावना व बेसहारा बच्चों को शिक्षित कर समाज की मुख्यधारा में लाने के मकसद से अपने कार्यो को निस्वार्थ भाव से अंजाम दे रहे हैं।
गुरुकुल में बच्चों को हर तरह के खेलों का प्रशिक्षण दिया जाता है। हॉकी, बेसवॉल, फुटबॉल व बैडमिंटन आदि खेलों में बच्चों को विशेष प्रशिक्षक प्रशिक्षण देते हैं। इस कारण बच्चे लगातार बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं। गुरुकुल संचालन समिति से जुड़े जेके खट्टर का कहना है कि सरकार की ओर से बच्चे को कोई मदद नहीं मिल रही। अगर शिक्षा व खेल में सरकार थोड़ी मदद बच्चों के लिए करती है तो बच्चों को आगे बढ़ने का और मौका मिल सकेगा।