अन्ना आन्दोलन के प्रति काँग्रेसनीत गठबंधन का जैसा रवैया रहा है तथा बाबा रामदेव के आन्दोलन के प्रति भी उसकी जो संवेदनहीनता रही है। क्या उसे किसी भी प्रकार से उचित ठहराया जा सकता है। अन्ना ने राजनीति की राह पकड़ी और बाबा रामदेव ने विपक्षी गठबंधन को विरोध के लिए तैयार किया। सरकार का यह कहना कि दोनों ही आन्दोलन राजनीति से प्रेरित हैं। इस मसले पर काँग्रेस नीत सरकार से कुछ प्रश्न स्वभाविक हैं। क्या इस देश में सामाजिक व्यवस्था को सुधारने का अधिकार समाज के पास है। क्या इस देश की अर्थव्यवस्था को सुधारने का दायित्व अर्थशास्त्रियों को दिया गया है। क्या इस देश की सभी समस्याओं को सुधारने का अधिकार उन विशेषज्ञों के पास है जिनके पास अनुभव है। क्या हम नहीं जानते कि हमारे देश का शिक्षा मंत्री एक पांचवी पास व्यक्ति भी हो सकता है जो बड़े बड़े कुलपतियों और शिक्षाविदों की नियुक्ति अपने विवेक से करता है। तो क्या इन सामाजिक अव्यवस्था को सुधारने के लिए राजनीति का दरवाजा नहीं खटखटाना होगा। यदि सरकार को इसमें राजनीति नजर आती है तो क्या देश में व्यवस्थाओं की पुनर्रचना नहीं होनी चाहिए। भारत की सरकार केवल राजकोष, दण्ड व्यवस्था और सीमाओं की सुरक्षा का कार्य करे बाकी कार्य श्रेष्ठ गुणी जनों पर नहीं छोड़ा जाना चाहिए। सरकार केवल निगरानी मात्र करे और उन गुणीजनों के कार्य के मार्ग में आने वाली बाधाओं को दूर करने का कार्य यदि सरकार करती है तो मैं यह गारंटी देता हूँ कि देश में कोई भी आन्दोलन सरकार के खिलाफ नहीं होगा। कई देशों में ऐसी व्यवस्था है कि सामाजिक समितियों द्वारा यह निर्धारित होता है कि बजट में किसी भी आधारभूत व्यवस्था के लिए कितना धन सुनिश्चित हो और उस धन का किस ढंग से उपयोग हो। यदि ऐसा होता है तो भारत में सच्चे अर्थों में लोकतंत्र आएगा तथा भ्रष्टाचार भी नहीं रहेगा और ना ही भ्रष्टाचारी।
-स्वतंत्र शर्मा
This is way better than a brick & mrtoar establishment.