आचार्य विद्यासागर महाराज की 47 वी दीक्षा जयंती धूमधाम से मनाई

4मदनगंज-किशनगढ़। संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर महाराज की 47 वी दीक्षा जयंती मंगलवार को वात्सय वारिधि आचार्य वर्धमानसागर महाराज ससंघ सान्निध्य एवं आदिनाथ दिगम्बर जैन पंचायत एवं सकल दिगम्बर जैन समाज के तत्वावधान में मनाई गई। सिटी रोड स्थित आदिनाथ दिगम्बर जैन मंदिर में आयोजित कार्यक्रम में आचार्य वर्धमानसागर महाराज ने कहा कि आज का परम पावन दिन गुरू की स्मृति के साथ उनकी आराधना करने का दिन है। विद्याधर तो आकाश में गमन करते है। आचार्यश्री ने कहा कि किशनगढ में विद्याधर नही आए थे। वे तो जिज्ञासु वृति लेकर परम आनन्द के साथ गुरूवर ज्ञानसागर महाराज के आनन्द हेतु आए थे। उन्हे तो आचार्य ज्ञानसागर महाराज से लेना था और आचार्यश्री किशनगढ में विराजमान थे इसलिये व किशनगढ आए थे। प्यास लगती है तो प्यासा कुए को खोजते हुए उसके पास चला जाता है। विद्याधर अपने ज्ञान की प्यास बुझाने हेतु आचार्य ज्ञानसागर के पास चले आए। प्रतिभा के धनि विद्याधर ने अपने शतत पुरूषार्थ से गुरू से समर्थ ज्ञान व संयम धारण किया। उन्होने जितना कर सकते थे उतना पुरूषार्थ किया। समयसार ग्रंथो को कितनी बार भी पढा जाए कम है। आचार्यश्री ने कहा कि आचार्य विद्यासागर महाराज ने कहा कि गुरूदेव ने समस्त ज्ञान देने के बाद एक बार समयसार का ज्ञान दिया वह मेरे जीवन में उतर गया तो मैने गुरूवर के चरणों मुनि दीक्षा धारण कर ली। आचार्य वर्धमान सागर महाराज ने कहा कि ज्ञान व ज्ञान का उत्कृष्ट फल तो चारित्र को धारण करना है। उन्होने गुरूदेव के जाने के बाद अपने संयम की आभा से चारित्र के आभामण्डल से ज्ञान के प्रकाश से नई पीढी को प्रकाशित करने का प्रत्यन किया। उनके उपदेश, संयम की आभा और चर्या ने नई पीढी के नौजवानों को आकर्षित किया। उन्होने अपनी साधना का रिकॉड बनाया है। शरद पुर्णिमा को उनका जन्म हुआ। शरद पुर्णिमा का चांद पुर्ण व शीतल होता है। शरद पुर्णिमा के प्रकाश में विद्याधर ऐसे प्रकाशित हुए कि जगत के मुल रूपी ग्रहों को थोडकर अवतेश्वर बन गए। पुरूषार्थशील व्यक्तित्व को जन जन में स्थापित किया और उनके पुरूषार्थ की आभा आज जिन शासन को प्रभावित व प्रकाशित कर रही है। पद लिहारियों का मिलन आसान नही है। आचार्यश्री ने कहा कि इच्छा व अभिलाषा है। अभिलाषा के अनुरूप प्रसंग व अवसर के साथ पुर्ण होगा। हमारा मिलन तो तीन बार हो चुका है। वह मिलन तो आग था। उस समय तो गुरूओ का मिलन हुआ था। अब दोनों आचार्यो परमेष्टीयों का मिलन देखने के लिए देश लालायित है। विद्याधर ने जिनशासन की प्रभावना कि है। उन्होने अपनी आत्मा को जिनशासन व तीर्थकरों की वाणी से प्रभावित किया है। आत्मा की प्रभावना के साथ जिनशासन की प्रभावना हो गई। हमे सिख लेनी चाहिए कि हम अपनी आत्मा को प्रभावित करे। अपनी आत्मा को परमात्मा बनाने का पुरूषार्थ करने की भावना प्रकट करे इसी मंगल कामना के साथ सभी को मंगल आशीर्वाद प्रदान किया। इससे पुर्व प्रात: श्रीजी का अभिषेक व शांतिधारा करने का सौभाग्य ताराचंद गंगवाल, दीपक रारा, दिनेश पाटनी को मिला। आचार्य वर्धमान सागर महाराज ससंघ के सानिध्य में नित्य नियम पुजन, विद्यासागर गुरूवर विधान पुजन एवं आचार्यश्री वर्धमान सागर महाराज का संगीतमय पुजन किया गया। संगीत की मधुर स्वर लहरियों पर श्रद्धालुओं ने भक्तिभाव से अघ्र्य समर्पित किए। विनयांजलि सभा में आदिनाथ पचायंत अध्यक्ष मूलचंद लुहाडिया, आर.के. मार्बल के अशोक पाटनी व प्राणेश बज सहित अनेक श्रद्धालुओं ने आचार्य विद्यासागर महाराज की जीवनी पर प्रकाश डाला। इस अवसर पर कंवरलाल पाटनी, तारांचद गंगवाल, भागचंद बोहरा, सुशीला पाटनी, शांता पाटनी, विनित पाटनी चेतनप्रकाश पाण्डया, चिरंजी लाल गोयल, पारसमल पाण्डया, राजीव गंगवाल, कैलाश पहाडिया, प्रकाश गंगवाल, नौरतमल जांझरी, दीपचंद चौधरी, कमल बैद, संजय जैन सहित अनेक गणमान्यजन मौजुद थे।
-राजकुमार शर्मा

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