जो ठाकुरजी के गीतों को भाव से गाता है वो भव पार हो जाता है

a1अजमेर। लक्ष्मीनारायण मंदिर हाथीभाटा, अजमेर में वृंदावन के विख्यात कथावाचक भागवत भ्रमर आचार्य मयंक मनीष की समधुर वाणी द्वारा गत 17 जुलाई से चल रही भागवत कथा में छठे दिन श्रीमद्भागवत कथा में ठाकुर जी का रास पंच अध्याय का वर्णन करते हुए कहा कि महारास में पांच अध्याय है उनमें गाये जने वाले पंच गीत भागवत के पंच प्राण है जो भी ठाकुर जी के इन पांच गीतों को भाव से गाता है वो भवपार हो जाता है। उन्हें वृंदावन की भक्ति सहज ही प्राप्त हो जाती है। कथा में भगवान का मथुरा प्रस्थान, कंस का वध, महर्षि संदीपनी के आश्रम में विद्या ग्रहण करना। कालयवन का वध, उधव गोपी संवाद, उधव द्वारा गोपियों को अपना गुरू बनाना, द्वारिका का स्थापना एवं रूकमणी विवाह के प्रसंगों का संगीमय भावपूर्ण पाठ किया। आचार्य मयंक मनीष ने श्रीकृष्ण का संदेष लेकर उधव का बृज में जाने का वर्णन किया। उधव जी जो भगवान के मित्र एवं मंत्री दोनों थे को बुलाया और अपने माता पिता, सखा एवं गोपियों को प्रसन्न एवं वियोगरहित रहने का उपाय करने को कहा – मात ताता की प्रीति अति, गौअन युत ब्रजगेह। जतन किये बिसरेै नहीं, बजनारिन कौ नेह।। मातु पिता की क्या कमी, आती उनको याद। यषुमति धीरज ना धरै, करती घोर विषाद।। इस प्रकार भगवान गोविन्द के दूत उद्धवजी के गोकुल में आने पर गोपियां लोक-लाज छोड कर वहां बैठी रहीं। उनमें से कोई एक गोपी प्रभु-मिलन का ध्यान करती हुई एक भ्रमर को वहा उडता हुआ देखकर उसे अपने प्रियतम का दूत मानकर कहने लगी कि हरे भ्रमर। अरे कपटी के सखा! त्ू मेरे चरणों की ओर न बढ, क्योंकि तेरा सर्वांग भगवान की वनमाला की केषर से रंगा हुआ है। किन्तु यादवों की सभा में इस बात पर तो हंसी होती ही होगी कि उन्होंने तेरे जैसे को अपना दूत बना रखा है। एक कली कोै रस गहै, फिर तू बढै अगर। ऐसे स्वारथ-रम रह्यौ, तब प्रभु हू अनुदार।। रे षट्पद! अक्रूर से तू क्या कम है क्रूर। उसने तोडा ह्दय तू मन को करता चूर।। प्रेम दीवानी हम भईं बिसरौ अपनौ गात। मन वाणी संयत नहीं निकसै टेढी बात।। ज्ञान ध्यान जप हम नहिं जानें। हरि को ही निज सर्वस मानें।
a2इस प्रकार सन्तप्त हुई गोपियों का विरह ताप भगवान के सन्देष से कुछ दूर हो गया एवं उद्धव जी का भी प्रेम के आगे ज्ञान का अभिमान चकनाचूर हो गया और उन्होंने आगे रूकमणी विवाह क प्रसंग में कहा कि कृष्ण ने रूक्मणी जी का संदेंष सुनकर हंसते हुए कहा कि मेरा मन भी रूक्मणी में आसक्त हो रहा है, इसलिये जैसा भी होगा मैं उसे अवष्य ले आऊंगा। राजा भीष्मक यह सुनकर कि बलराम कृष्ण दोनों भाई विवाहोत्सव देखने के उद्देष्य से आए हैं उनके पास पहुंचकर स्वागत सत्कार किया एवं उच्च स्थान पर ठहराया। उधर रूक्मणी जी माता अम्बिकाजी के समक्ष उपस्थित हुई और उन्हें प्रणाम कर कृष्ण को पति रूप में पाने की कामना करनी लगी। पूजन कर जब वह मन्दिर से बाहर निकली तभी प्रभू ने रूक्मणी जी को अपने पथ पर चढ़ाकर सबके देखते-देखते हरण कर लिया। कल कथा के अन्तिम दिन कथा के विश्राम के पष्चात सायं 6.00 बजे श्रीमद्भागवत जी की भव्य शोभयात्रा हाथीभाटा मंदिर से आरम्भ होगी।
वासुदेव मित्तल
9828471117

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