अजमेर कांग्रेस में सिंधी लीडरशिप अभिषप्त

यह बात दकियानूसी लग सकती है, अंध विष्वास सी प्रतीत हो सकती है कि कांग्रेस में सिंधी लीडरषिप अभिषप्त है। लेकिन धरातल का सच है कि कांग्रेस के सिंधी नेता या तो उभर नहीं पा रहे, या फिर परेषानी में रहे। पूर्ण रूप से खिल नहीं पाए। कुछ की तो भ्रूण हत्या ही हो गई। आपको खयाल में होगा कि ब्यावर निवासी आचार्य भगवान देव बिना मजबूत जातीय आधार के भी अजमेर के सांसद तो बन गए, मगर दिल्ली के जाने के बाद अजमेर लौट ही नहीं। हालांकि हाईकमान के बहुत नजदीक रहे, योगाचार्य के रूप में प्रतिश्ठित हुए, मगर वहीं के हो कर रह गए। इस सिलसिले में किषन मोटवानी तनिक कामयाब रहे, अजमेर को बीसलपुर परियोजना दिलवाई, मगर काबिना मंत्री बन कर प्रभावषाली स्थिति में आए और उनसे बहुत उम्मीदें जागीं, तो लकवे से ग्रस्त हो गए। एक अध्याय अधूरा ही समाप्त हो गया। तत्कालीन मुख्यामंत्री अषोक गहलोत की मेहरबानी रही कि बीमार होने के बावजूद मंत्री बना कर रखा। इसी प्रकार भगवान दास रामचंदानी प्रदेष स्तर पर उभरे, मगर कम वय में ही अलविदा कर गए। जमीन से जुडे नानकराम जगतराय के रूप में एक ऐसा विधायक मिला, जिसके लिए अषोक गहलोत ने कहा कि कांग्रेस को एक सौ एक नानकराम चाहिए। उपचुनाव का छोटा कार्यकाल जीया, मगर उसके बाद टिकट कट गया। निर्दलीय चुनाव लड कर अपना राजनीतिक भविश्य समाप्त कर बैठे। नरेन षहाणी भगत को टिकट तो मिला, मगर नानकराम ने बगावत करके उन्हें हरवा दिया, जिसके परिणाम स्वरूप वासुदेव देवनानी का जन्म हुआ, जो आज तक लगातार विधायक बन रहे हैं, पूरे पांचवें चुनाव तक धरती पकडे हुए हैं। कांग्रेस के लिए कोई चांस ही नहीं। षहाणी को नगर सुधार न्यास का अध्यक्ष बनाया गया, मगर कथित राजनीतिक साजिष के चलते भ्रश्टाचार के मामले में पद छोडना पडा। एक दौर ऐसा था, जब हरीष मोतियानी, रमेष सेनानी, राजकुमारी गुलाबानी जैसे नेता तेजी से उभरे, मगर टिकट हासिल नहीं कर पाए। आज हाषिये पर धकेल दिए गए हैं। संभावनाएं समाप्त हो गई हैं। एडवोकेट अषोक मटाई व मीरा मुखर्जी दावेदारी के खाते में ही अपना नाम दर्ज करवा पाए। भगवान दास रामचंदानी के राजनीतिक षिश्य हरीष हिंगोरानी ने सामाजिक स्तर पर लोकप्रियता तो हासिल की, मगर टिकट उनके लिए भी सपना ही रहा। बहुत उर्जावान राजस्थान सिंधी अकादमी के पूर्व अध्यक्ष डॉ लाल थदानी जब तक सरकारी नौकरी में थे, टिकट के प्रबल दावेदारों में उनकी गिनती होती थी, मगर रिटायर होते होते थक गए।
अजमेर दक्षिण के प्रत्याषी रहे हेमंत भाटी के परम मित्र होटल षोभराज वाले लक्ष्मण सतवानी उर्फ कालू भाई को सचिन पायलट टिकट देना चाह रहे थे, मगर खुद कालू भाई ने ही रूचि नहीं ली।
अजमेर के राजनीतिक आकाष में यकायक उभरे किषनगढ निवासी दीपक हासानी अपनी चमक से दमदार उपस्थिति दर्ज तो करवा पाए, मगर परषेप्षन यह रहा कि उन्हें टिकट का आष्वासन दे कर धोखा दे दिया गया। युवा व आकर्शक व्यक्तित्व के धनी नरेष राघानी ने टिकट के लिए एडी चोटी का जोर लगा दिया, टिकट पाने के सारे संभावित रास्ते नाप लिए, कोई कमी न छोडी, दावेदारी के कायदे व बारीकियों में कदाचित सबसे अधिक आगे रहे, मगर सफलता हाथ नहीं लगी। अब विमुख हो कर पत्रकारिता कर रहे हैं। बाकी बचीं पार्शद रष्मि हिंगोरानी अब कतार में खडी हैं, मगर कद खडा नहीं कर पा रहीं। पूर्व पार्शद सुनिल मोतियानी की जद्दोजहद इसी किस्म की रही। रेलवे कर्मचारी नेता मोहन चेलानी ने पिछले चुनाव में राजनीतिक कदमताल तो की, मगर षिद्दत की कमी नजर आई। इसी प्रकार अषोक मामा, दिलीप सामतानी व षिव कुमार भागवानी बिल्ली के भाग्य का छींका टूटने का इतजार कर रहे है। कुल जमा आज स्थिति यह है कि कांग्रेस में सषक्त सिंधी लीडरषिप की कमी है। कांग्रेस हाईकमान किसी को टिकट के लायक ही नहीं समझ रहा।
उसे यह तथ्य भी समझ में नहीं आ रहा कि लगातार गैर सिंधी को टिकट दिए जाने के कारण अजमेर के दोनों सीटें भाजपा की झोली में जा रही हैं।

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