ललिता शर्मा को पी.एच.डी. उपाधि

Lalita Sharmaअजमेर। महर्षि दयानन्द सरस्वती विश्वविद्यालय ने ललिता शर्मा व्याख्याता हिन्दी राजकीय महाविद्यालय अजमेर को डॉक्टरेट की उपाधि प्रदान की है। उन्होने अपना शोध कार्य ‘नासिरा शर्मा के साहित्य में सामाजिक चेतना’ विषय पर डॉ. राजेश कुमार शर्मा, वरिष्ठ व्याख्याता हिन्दी, राजकीय महाविद्यालय अजमेर के निर्देशन में पूर्ण किया।
जानी मानी साहित्यकार नासिरा शर्मा ने अंतर्धर्मीय विवाह अपना पूरा बचपन अजमेर में बिताने वाले प्रो. रामचन्द शर्मा के साथ किया अतः उनका अजमेर से गहरा सम्बन्ध है। शोध प्रबंध में बताया गया है कि नासिरा शर्मा की रचनाएं समाजोपयोगी जीवन मूल्यों की स्थापना की दृष्टि से बेजोड़ है।
इसके अन्तर्गत समाज में चुनौतियाँ बनकर खड़ी निर्धनता, अशिक्षा, बेरोजगारी, दलगत राजनीति, कामकाजी महिलाओं की समस्या, बिगड़ती कानून व्यवस्था, सामाजिक व पारिवारिक विघअन, अनैतिकता, संस्कृति की खोखली होती जड़ोंका यथार्थ, स्वार्थपरता, समाज के दोहरे मापदण्ड आदि समस्याओं को विवेच्य साहित्य के संदर्भ में रेखांकित कर उनके व्यावहारिक समाधान को खोजने का प्रयास किया गया है।
समाज में युद्ध हिंसा, साम्प्रदायिक धर्मोन्माद, घृणा, ईर्ष्या, द्वेष, आदमी की निहायत संवेदनशून्य होती प्रकृति, शोरगुल और आपाधापी के बीच पसरी बर्बरता और पाशविकता आज के समय के ऐसे कटु यथार्थ है। जिनमें मनुष्य अपनी इंसानियत को बचाए रखने हेतु निरन्तर संघर्षरत है। शोध प्रबन्ध इस हेतु आवश्यक स्वस्थ मानसिकता के विकास की दिशा में एक प्रयास है।
वर्तमान में दिन प्रतिदिन तीव्रगति से परिवर्तनशील परिस्थितियाँ नवीन जीवन-मूल्यों की उत्पत्ति के लिए उत्तरदायी है। मूल्य संक्रमण के इस दौर में आवश्यक संतुलित दृष्टिकोण को उभारना भी इस शोध प्रबन्ध का उद्देश्य है।
जीवन की जद्दोजहद के बीच रिश्तों की अहमियत, पर्यावरण व जल की ज्वलंत समस्या के समानान्तर रिश्तों की प्यास का मार्मिक अंकन, स्वार्थ के सम्मुख तार-तार होते रिश्ते, बढ़ते वृद्धाश्रम, टूटते परिवार, सिसकती मानवता जैसे समसामयिक सामाजिक सरोकारों द्वारा समय की नब्ज को टटोलने का प्रयास भी किया गया हैं।
प्रस्तुत शोध में ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की भावना से प्रेरित भारतीय संस्कृति के समन्वयात्मक पहलू को उजागर किया गया है, जो उस सच्चाई का प्रतिनिधित्व करता है जिसे समूची मानक जाति ने समय-समय पर महसूस किया है। यह उदात्त भावना उस तालिबानी सोच का भी प्रतिकार करती है जिससे आज सम्पूर्ण मानवता भयाक्रान्त है।
शोध प्रबंध में इस बात पर भी जोर दिया गया है कि इलेक्टॅªानिक मीडिया के इस युग में विवेच्य साहित्य पर निर्मित धारावाहिक, फीचर फिल्म आदि समाज और राष्ट्र के हित में उपयोगी संदेश को समाज तक पहुंचाने के सशक्त माध्यम हो सकते है। वहीं रचनाओं को पाठ्यक्रम में समुचित स्थान देना भी मूल्य पटक शिक्षा प्रदान कर सुयोग्य नागरिक तैयार करने की दिशा में उठाया गया अहम कदम साबित होगा। अंत में इस शोध प्रबंध को आलोच्य साहित्य रूपी भव्य प्रासाद के एक गकाक्ष को खोलने के समाज बताते हुए विषय में निहित शोध की अनेक संभावनाओं को भी चिन्हित किया गया है।
ललिता शर्मा
व्याख्याता, राजकीय महाविद्यालय,
अजमेर (हिन्दी विभाग)
मो. 9828137593, 9928549737
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