योग के मार्ग से देवत्व का प्रकटीकरण संभव

IMG_9292स्व के विस्तार तथा योग मार्ग के अनुसरण से ही व्यक्ति में देवत्व का प्रकटीकरण संभव है। स्वामी विवेकानन्द के अनुसार प्रत्येक आत्मा एक अव्यक्त ब्रह्म है जिसे राजयोग, कर्मयोग, भक्ति योग तथा ज्ञान योग किसी भी साधन अथवा अनेक साधनों के संयोग से प्रकट किया जा सकता है। यह ऋषियों द्वारा जीवन जीने का एक प्रामाणिक मार्ग है जो एकांगी न होकर एकात्म हैं तथा यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान एवं समाधि तक सभी अष्टांगों का नियमित अभ्यास करने से व्यक्ति ईश्वर तक बन सकता है।
उक्त विचार विवेकानन्द केन्द्र कन्याकुमारी अजमेर विभाग के विभाग प्रमुख डॉ. स्वतन्त्र शर्मा ने पांच बंगला, आदर्श नगर, अजमेर रोड ब्यावर पर चल रहे युवा कौशल्य योग सत्र के चतुर्थ दिन व्यक्त किए। उन्होंने बताया कि योग के आठ अंगों के अनुष्ठान से चित्त की अशुद्धि का क्षय होता है तथा ज्ञान शक्ति प्रदीप्त होती जाती है जिससे चित्त में विवेक की ख्याति प्राप्त होती है। अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य एवं अपरिग्रह के विभिन्न आयामों का विस्तृत विवेचन करते हुए डॉ. शर्मा ने कहा कि किसी भी जाति, देश काल अथवा समय में इन पंचव्रतों का पालन आवश्यक है तथा व्यक्तिगत निःश्रेयस की प्राप्ति से समाज का अभ्युदय भी संभव है।
आज के अभ्यासों में शिथलीकरण का अभ्यास विवेकानन्द केन्द्र के योग प्रमुख रविन्द्र जैन ने कराया तथा अर्द्धकटिचक्रासन, पाद हस्तासन तथा अर्द्धचक्रासन के अभ्यास भी कराए गए। नगर प्रमुख कैलाश नाथ शर्मा ने बताया कि इस अवसर पर नगर सह प्रमुख नरेन्द्र सिंह गहलोत, देवेन मनानी, कपिल जालवाल, करण, हरी भी उपस्थित थे।
(कैलाश नाथ शर्मा)
नगर प्रमुख – ब्यावर

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