26 जनवरी को मदरसों पर लहराएं तिरंगा

मालदा-पूर्णिया जैसे घटनाओं पर कांग्रेस चुप क्यों।
पद्मश्री मुजफ्फर हुसैन की दो टूक।

मुजफ्फर हुसैन
मुजफ्फर हुसैन
देश में उर्दू के प्रचार प्रसार के लिए बनी कॉन्सिल के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष, पत्रकार और पद्मश्री मुजफ्फर हुसैन ने कहा कि आगामी 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के अवसर पर देशभर के मदरसों पर तिरंगा फहराया जाना चाहिए। इसको लेकर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने जो आह्वान किया है, उस पर निश्चित तौर पर अमल होना चाहिए।
18 जनवरी को अजमेर में मीडिया से संवाद करते हुए पद्मश्री हुसैन ने कहा कि जब मदरसे सरकारी मदद से संचालित होते हैं तो फिर देश का राष्ट्रीय ध्वज लहराने में क्या एतराज है? हम सरकार की मदद से मदरसों के शिक्षकों के वेतन, फर्नीचर, भवन निर्माण, बिजली, पानी आदि की सुविधाएं तो लेते हैं और राष्ट्रीय ध्वज फहराने से इंकार करते हैं। तो इसे कभी भी देशहित में नहीं माना जाएगा। आप जिस देश में रहते हैं, उस देश के नियमों का पालन तो करना ही चाहिए। पूरी दुनिया में हिन्दुस्तान ऐसा मुल्क है, जहां मुसलामन पूरे मान सम्मान के साथ रह रहा है। इतनी स्वतंत्रता तो मुस्लिम राष्ट्रों में मुसलमानों को नहीं है। सच्चर कमेटी की सिफारिशों के लागू नहीं होने के संबंध में मुजफ्फर हुसैन ने कहा कि सिफारिश तो हिन्दू मुसलमानों में भेदभाव कराने वाली है। ऐसा नहीं होना चाहिए कि हिन्दुओं का हक छीनकर मुसलमानों को दे दिया जाए। जब आम हिन्दू और मुसलमान सुकून के साथ रहना चाहता हैं, तो फिर सच्चर कमेटी की रिपोर्ट की सिफारिशें लागू कर दोनों में भेदभाव क्यों किया जा रहा है? केन्द्रीय मानव संसाधन मंत्री स्मृति इरानी के बयान का समर्थन करते हुए हुसैन ने कहा कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी को अल्पसंख्यक होने का दर्जा नहीं मिलना चाहिए। जब देश के किसी भी शिक्षण संस्थान में मुसलमान प्रवेश ले सकते हैं तो फिर अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में सिर्फ मुसलमान ही क्यों प्रवेश लें?
फिल्म अभिनेता आमिर खान के असहिष्णुता वाले बयान पर हुसैन ने कहा कि कांग्रेस के शासन में सबसे ज्यादा फायदा आमिर खान ने ही उठाया है और अब लगता है कि आमिर खान कांग्रेस का कर्ज उतार रहे हैं। जो आमिर खान अपनी पत्नी को नहीं समझा सकता उसे भारत सरकार के प्रर्यटन विभाग के विज्ञापन करने का कोई अधिकार नहीं है। अच्छा होता कि आमिर खान भारत छोड़कर किसी मुस्लिम देश में चले आते और फिर बताते कि असहिष्णुता भारत में है या जिस मुस्लिम देश में वे रहे रहे है। हुसैन ने कहाकि बिहार चुनाव के दौरान जिन लोगों ने अपने अवार्ड लौटाए उनसे से 90 प्रतिशत मुसलमान थे। 10 प्रतिशत में वामपंथी लेखक, कलाकार, पत्रकार शामिल रहे। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि कांग्रेस ने किन लोगों को अवार्ड दिए। देश में जब जब भी गैर कांग्रेसी सरकार बनी, तब तब कांग्रेस को देश में असहिष्णुता का माहौल नजर आता है। असल में कांग्रेस के नेता सत्ता के बिना ऐसे छटपटा रहे हैं जैसे पानी के बिना मछली।
हुसैन ने कहा कि कांग्रेस के लोग घर वापसी के मुद्दे को लेकर आरएसएस पर हमला करते हैं। आखिर घर वापसी में बुराई क्या है? यदि हमारे पूर्वज हिन्दू रहेे और हम वापस हिन्दू संस्कृति को स्वीकर करना चाहते हैं तो इससे किसी को भी एतराज नहीं होना चाहिए। जब हम भारत को धर्म निरपेक्ष राष्ट्र कहते हैं,तब यदि मुसलमान वापस से हिन्दू धर्म स्वीकार करते हैं तो कुछ लोगों को एतराज क्यों होता है? मुस्लिम परिवारों में अनेक महिलाएं मिल जाएंगी जो अपनी मांग में सिंदूर लगाती हैं। आज जरूरत इस बात की है कि हिन्दू और मुसलमानों में समन्वय बने, लेकिन अफसोस है कि कट्टरपंथी लोग इस समन्वय को बिगाडऩे और तोडऩा चाहते हैं। कांग्रेस की राजनीति तो मुसलमानों पर ही केन्द्रीत रही है। कांग्रेस की इस नीति से ही आज कश्मीर मुस्लिम प्रदेश बनकर रह गया है। जो लोग धर्म निरपेक्षता के झंडाबरदार हैं, उन्हें बताना चाहिए कि कश्मीर में हिन्दू परिवार अपने घरों पर क्यों नहीं जा पा रहे हैं? जिस देश में एक प्रांत से हिन्दुओं को पीट-पीट कर भगा दिया गयाहो,उस देश में कुछ लोग असहिष्णुता की बात करते हैं। क्या कश्मीर से हिन्दुओं को भगाना असहिष्णुता नहीं है? हाल ही में जिस तरह पश्चिम बंगाल के मालदा और बिहार के पूर्णिया में मुसलमानों की भीड़ ने हिंसक घटनाएं की, उन्हें किसी भी स्थिति में उचित नहीं माना जा सकता है। यदि किसी नागरिक को किसी मुद्द ेपर एतराज है तो उसे शांतिपूर्ण तरीके से अपनी बात कहनी चाहिए। अफसोस तो यह है कि पश्चिम बंगाल और बिहार की राज्य सरकारें इस मुद्दे पर खामोश हैं, उन्होंने कहा कि भारत ने पहले ही विभाजन की त्रासदी झेली है, अब हमें ऐसा माहौल नहीं बनाना चाहिए जिससे हिन्दू और मुसलमान आमने-सामने हों। इस देश में जितना हिन्दुओं को हक है, उतना ही मुसलमानों को है, बल्कि कई मामलों में मुसलमानों के हक हिन्दुओं से ज्यादा हैं।

(एस.पी. मित्तल) (18-01-2016)
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