मित्तल हॉस्पिटल में बिना चीरा, बिना बेहोश किए ‘डिस्क डिकम्प्रेशनÓ सर्जरी

मरीज के तीन बार दिल्ली और मुम्बई में हो चुके थे ओपन ऑपरेशन

मरीज जीवनसिंह चौहान को मित्तल हॉस्पिटल से छुट्टी देने से पूर्व जांचते  न्यूरो सर्जन डॉ. सिद्धार्थ वर्मा।
मरीज जीवनसिंह चौहान को मित्तल हॉस्पिटल से छुट्टी देने से पूर्व जांचते न्यूरो सर्जन डॉ. सिद्धार्थ वर्मा।
मरीज जीवनसिंह चौहान के ऑपरेशन के दौरान स्थिति।
मरीज जीवनसिंह चौहान के ऑपरेशन के दौरान स्थिति।
अजमेर 24 मई। कमर दर्द, पैर में दर्द, पंजे में कमजोरी के कारण उठने-बैठने और चलने की तकलीफ उठा रहे एक रोगी को मित्तल हॉस्पिटल अजमेर ने मात्र पैंतालीस मिनट में राहत पहुंचा दी । यह सब संभव हुआ मित्तल हॉस्पिटल के ब्रेन व स्पाइन रोग विशेषज्ञ डॉ. सिद्धार्थ वर्मा द्वारा ‘ट्रान्सफोरमिनल एण्डोस्कोपिक डिस्क डिकम्प्रेशनÓ (अर्थात एण्डोस्कोप द्वारा डिस्क का ऑपरेशन) तकनीक के जरिए की गई सर्जरी से।
चंदवरदाई नगर, ब्यावर रोड अजमेर निवासी 45 वर्षीय जीवन सिंह चौहान को गत छह माह से उठने, बैठने, चलने में तकलीफ थी। कमर में दर्द और बाएं पैर में दर्द रहने से एक माह से तो उनका जीना दुश्वार हो रखा था। बाएं पंजे में कमजोरी आ गई थी। बकौल जीवनसिंह वह एयरफोर्स से गत मार्च में ही सेवानिवृत्त होकर घर लौटे थे। उन्हें पूर्व में भी यह तकलीफ रही है। वर्ष 1996 में पहली बार जब यह तकलीफ हुई तब वे दिल्ली एयरफोर्स में सेवारत थे वहीं उनका उपचार हुआ, ओपन सर्जरी के जरिए दर्द का निवारण कर दिया गया। दोबारा चार साल बाद यही पीड़ा हुई। उन दिनों वह मुम्बई में तैनात थे। लिहाजा फिर से उनका मुम्बई में ही उपचार हुआ और इस बार भी उन्हें ओपन सर्जरी से गुजरना पड़ा। तीन साल बाद वर्ष 2013 में ऐसा ही फिर हुआ। चिकित्सकों ने उनके रीढ़ की हड्डी में ओपन सर्जरी कर उन्हें फिर दर्द से राहत दिला दी।
तीन साल गुजरे नहीं कि वे इस बार फिर से वही दर्द की पीड़ा के साथ उठने-बैठने और चलने में तकलीफ महसूस करने लगे। इस बार वे अजमेर अपने घर में थे। जीवनसिंह ने बताया कि चूंकि भूतपूर्व सैनिकों के लिए मित्तल हॉस्पिटल अजमेर उपचार के लिए अधिकृत है यह जानकर वे यहां न्यूरो सर्जन डॉ. सिद्धार्थ वर्मा के सम्पर्क में आए। डॉ. वर्मा ने आवश्यक जांच के बाद उन्हें ट्रांसफोरमिनल एंडोस्कोपिक सर्जरी की सलाह दी। जीवन सिंह ने बताया कि डॉ. वर्मा की सलाह पर वे 19 मई को मित्तल हॉस्पिटल में भर्ती हुए थे ऑपरेशन के पश्चात उन्हें 23 मई को छुट्टी दे दी गई। अब उन्हें चलने, उठने, बैठने में किसी तरह का दर्द नहीं है। जीवन सिंह ने बताया कि उन्हें मात्र 45 मिनट की सर्जरी के बाद ही दर्द से पूरी तरह राहत मिल गई ।

चौथी बार ओपन ऑपरेशन जोखिम भरा होता-
मित्तल हॉस्पिटल के न्यूरो सर्जन डॉ. सिद्धार्थ वर्मा ने बताया कि मरीज की तीन बार ओपन सर्जरी हो चुकी थी। चौथी बार ओपन सर्जरी करना जोखिम भरा हो सकता था। इसीलिए उन्हें ट्रांसफोरमिनल एंडोस्कोपिक सर्जरी की सलाह दी गई। डॉ. वर्मा ने बताया कि इस सर्जरी में मरीज को बिना बेहोश किए, बिना चीरफाड के डिस्क निकाली जाती है व नसों का दबाव हटाया जाता है। इस सर्जरी में कोई टांका भी नहीं लगता है और खून चढ़ाने की भी कोई जरूरत नहीं पड़ती है। डॉ. वर्मा ने बताया कि इस तरह की सर्जरी में मरीज की रिकवरी भी जल्दी होती है। सर्जरी के बाद चाहे तो मरीज उसी दिन ही छुट्टी लेकर घर जा सकता है। डॉ. वर्मा का मानना है कि प्रदेश में संभवतया यह पहली सर्जरी है। उन्होंने बताया कि ट्रांसफोरमिनल एंडोस्कोपिक सर्जरी के लिए मरीज मुम्बई, अहमदाबाद, दिल्ली ही जाया करते थे। यह सर्जरी अब अजमेर में भी संभव है।

आम बोलचाल में कहते हैं सियाटिका दर्द-

लो बैक पेन व कमर दर्द एक ऐसी समस्या है जिससे अमूमन लोग अपने जीवन में कभी ने कभी रू-ब-रू हो ही जाते हंै। इसके बढऩे पर दर्द पैरों में आना शुरू हो जाता है जिसे सियाटिका कहते हैं, अभी तक इसके लिए आराम, दवाइयां, फिजियोथैरेपी आदि की सलाह दी जाती थी और सफल न होने पर सर्जरी का उपाय ही शेष रहता था। डॉ. वर्मा ने बताया कि कमर दर्द और सियाटिका के लिए ट्रान्सफोरमिनल इपिड्यूरल इन्जेक्शन न्यूक्लियोप्लास्टी और बढ़े हुए अथवा लम्बे समय से पीडि़त के लिए ट्रान्सफोरमिनल एण्डोस्कोपिक डिस्क डिकम्प्रेशन सर्जरी बेहद कारगर उपाय है।
– सन्तोष गुप्ता
प्रबंधक जनसंपर्क
मित्तल हॉस्पिटल,अजमेर

error: Content is protected !!