समर्थता के बाहर जाकर चाह करना दु:ख का कारण

DSC_0120मदनगंज-किशनगढ़। मुनि पुंगव सुधासागर महाराज ने कहा कि व्यक्ति अपनी स्वयं की जिंदगी में कुछ वो करना चाहता है और वो पाना चाहता है। जो उसके समर्थ के बाहर है। व्यक्ति का यह सबसे बड़ा विक पॉइंट है। व्यक्ति इतना खाना चाहता है जो पाचन शक्ति से बाहर है और प्रकृति कहती है कि तुम उतना ही खाओं जितनी तुम्हारी पाचन शक्ति है। ये उद्गार मुनि श्री ने आर.के. कम्यूनिटी सेन्टर में गुरूवार को प्रवचन के दौरान कहे। मुनिश्री ने कहा कि ऐसा भाव कभी स्वयं की मुर्खता से आता है तो कभी दूसरों को देखकर आता है। हर क्षेत्र में स्थिति यहीं है। जितनी कुवत्त नहीं है उससे ज्यादा इच्छाएं पाल रखी है। ऐसे व्यक्ति कभी सुखी नहीं रह सकते है। यहीं मूल कारण दु:खी होने का है। मुनिश्री ने कहा कि जब घर में मेहमान आते है या महाराज का चौका लगता है। तो हमारी भारत की यह संस्कृति है कि हम हमारी हैसियत से ज्यादा उनकी आव भगत करते है, उनके खाने के लिए विभिन्न व्यंजन बनाने के लिए अपनी ताकत लगा देते है। उनके सामने गरीबी नहीं अमीरी दिखाते है। भले ही हम दो दिन भूखे रह जाए। हम जब कभी रिश्तेदार के यहां जाते है तो खाली हाथ नहीं जाते है। यहीं वह लक्षण है जो आपको एक दिन अमीरी तक जरूर पहुंचाएगा। उन्होंने कहा कि भगवान के सामने जाओं तो कभी गरीब बनकर नहीं अमीर बनकर जाओ। भगवान से कभी मांगो नहीं मंदिर में चढ़ा कर आओ। ऐसा किया तो कभी तुम्हारें जीवन में गरीबी प्रवेश नहीं करेगी।
मुनिश्री ने कहा कि जिस घर में सब पुरूषों के बाद महिलाएं भोजन करती है वो अन्नपूर्णा हाथ हो जाता है। वह जितना भोजन परोसती जाएगी उतना भोजन अपने आप बढ़ता जाएगा। कभी कमी नहीं आएगी। उन्होंने कहा कि मुनियों को आहार दान भूखे रहकर क्यों दिलाया जाता है? इस पर मुनिश्री ने कहा कि खा-पीकर महाराज को आहार दिया तो तुम्हारे यहां दरिद्रता बढ़ेगी। और भूखे रहकर पहले महाराज को आहार दिया तो तुम्हारी दरिद्रता खत्म होकर तुम्हारी अमीरी बढ़ेगी। ये एक रहस्य है। तुमको भूखे रहकर आहार दिलाना जैन दर्शन का उद्देश्य नहीं है। तुमने पहले खा लिया फिर जो बचा वो महाराज व मेहमान को मत खिलाओ, पहले महाराज व मेहमान को खिलाओ फिर जो बचे वो तुम खाओगे तो उसका नाम है प्रसाद। इसके बाद भोजन पावन हो जाता है पवित्र हो जाता है। मुनिश्री ने कहा कि जो व्यक्ति नौकर के द्वारा कार्य करने पर समय बचाकर धर्म क्षेत्र में देते है। वे जाकर ऐसे चक्रवती बनते है कि पानी का गिलास उठाकर भी नौकर देता है। मुनि श्री ने कहा कि सभी एक दूसरे से हर काम में प्रतिस्पर्धा रखते है किन्तु दान देने में कोई होड़ नहीं करता है। अगर अमीरी चाहिए तो दान देने में होड़ करो।
ये रहे श्रावक श्रेष्ठी
श्री दिगम्बर जैन धर्म प्रभावना समिति के मीडिया प्रभारी विकास छाबड़ा के अनुसार प्रात: अभिषेक एवं शांतिधारा, चित्र अनावरण, दीप प्रज्जवलन, शास्त्र भेंट, पाद प्रक्षालन, सायंकालीन आरती एवं वात्सल्य भोज पुण्यार्जक का सौभाग्य प्रकाशचंद, विजयकुमार अभिषेक काला परिवार को मिला।
ये रहे उपस्थित थे
इस अवसर पर राकेश पहाडिय़ा, निरंजन बैद, एम.के. जैन, राकेश पाटनी, दिनेश पाटनी कमल बैद, देवेन्द्र झांझरी विनय झांझरी, सुभाषचंद चौधरी, राहुल पाटोदी, प्रमोद दोषी, महेन्द्र पाटनी, चेतन पाण्डï्या, सुशिल गंगवाल, गौरव पाटनी, विकास पाटनी, अभिषेक गंगवाल, हेमंत झांझरी, मुकेश पापडीवाल, जितेन्द्र पाटनी, निर्मल बाकलीवाल, प्रदीप गंगवाल, रमेश गंगवाल, निर्मल छाबड़ा, ज्ञानचंद पाटनी, विजय गंगवाल, हेमन्त छाबड़ा, सुशील काला, महेश कासलीवाल, राहुल गंगवाल, पंकज गंगवाल, अशोक कासलीवाल, जानू चौधरी आदि मौजूद थे।

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