नरसी मेहता और नानी बाई का मायरा कथा

जीवन में आने वाली कठिनाइयां उनके समाधान का तरीका भी बताती है:श्री पुष्करदास जी महाराज
गौ माता की सेवा से पापों का क्षरण;माँ अनादि सरस्वती
श्री पुष्कर गौ आदि पशुशाला द्वारा लोहागल रोड स्थित गौशाला में नरसी मेहता और नानी बाई का मायरा कथा
पशु वह है जो पशुता से बंधा
कथा वही है जो हमारी व्यथा को मिटाये
सारे दान इंसान को पुण्य का भागी बनाते हैं

pushkar dasअजमेर। सुविख्यात संत एवं कथावाचक श्री पुष्करदास जी महाराज ने कहा कि जीवन में आने वाली कठिनाइयां उनके समाधान का तरीका भी बताती है। एक मनुष्य को कठिनाइयों की जरूरत होती है क्योंकि तभी वह सफलता का आनंद ले सकता है। मुश्किलें केवल बेहतरीन लोगों के हिस्से में आती हैं क्यूंकि वो लोग ही उसे बेहतरीन तरीके से अंजाम देने की ताकत रखते हैं। एक निराशावादी को हर अवसर में कठिनाई दिखाई देती है जबकि एक आशावादी को हर कठिनाई में अवसर दिखाई देता है। मनुष्य की किसी भी समस्या का समाधान स्वयं उसी मनुष्य के पास है जिसकी वह समस्या है। अगर समस्या है तो उसका समाधान भी अवश्य होगा। इसलिए हमें अपनी समस्या का हल स्वयं पूरे लगन और निष्ठा के साथ ढूढना चाहिए। यही हमारी समस्या का समाधान है और तभी हम उसे दूर भी कर पाएंगे।
श्री पुष्कर गौ आदि पशुशाला समिती की ओर से लोहागल रोड स्थित गौशाला में चल रही भक्त नरसी मेहता और नानी बाई का मायरा कथा के द्वितीय दिवस सोमवार को संत श्री पुष्करदास जी महाराज ने दौरान कहा कि मनुष्य पशु नहीं है। पशुता का अर्थ बताते हुए सतश्री ने कहा कि पशु वह है जो पशुता से बंधा है। मनुष्य को उसके उद्देश्य का भान होना चाहिए, तब ही वह पाप और पुण्य की समझ को अपने भीतर विकसित कर सकता है। दैनिक जीवन में कर्म करते समय, हम उन कर्मों का फल पुण्य एवं पाप के रूप में भोगते हैं । पुण्य एवं पाप हमें अनुभव होनेवाले सुख और दुख की मात्रा निर्धारित करते हैं । अतएव यह समझना महत्त्वपूर्ण है कि पापकर्म से कैसे बचें । वैसे तो अधिकांश लोग सुखी जीवन की आकांक्षा रखते हैं; परन्तु जिन लोगों को आध्यात्मिक प्रगति की इच्छा है, वे यह जानने की जिज्ञासा रखते हैं कि क्यों मोक्षप्राप्ति के आध्यात्मिक पथ में पुण्य भी आवश्यक हैं । उन्होंने जातिवाद, क्षेत्रवाद आदि से ऊपर उठकर हिन्दुवाद और हिंदुत्व की भावना को प्रबल करने पर बल दिया। जाग्रति ही ज्ञान है और मूर्च्छा ही अज्ञान है।
सोमवार की कथा में विशेष रूप से उपस्थित योग और साधना की उपासक माँ अनादि सरस्वती ने कहा कि गौ माता की सेवा से पापों का क्षरण होकर पुण्यों का उदय होता है। गौ सेवा करने से सभी समस्याओं का समाधान हो जाता है। उन्होंने महीने में कम से कम चार दिन गौ सेवा करने का आह्वान करते हुए कहा कि गौ माता सनातन धर्म की पूर्णता प्राप्त होती है। भक्ति सुगम, सरस और सरल है। भक्ति मूल्य नहीं चाहती। सच्चा भक्त सुख या दुःख में कभी विचलित नहीं होता। उन्होंने चैतन्य महाप्रभु की स्नदर्भ देते हुए बताया कि मुश्किलों का सामना करने से वे दूर होंगी, भागने से समस्या दूर नहीं होती। भगवन को जब भक्त को दर्शन देने होते हैं, तब वे स्वयं ही प्रकट होकर दर्शन दे देते हैं। भक्त के ऊपर काल के नियम लागु नहीं होते। आज के समय में भक्ति दुर्लभ है। जब से तर्क आ गया तब से हमारी व्यवस्थाओं में भी विघटन आ गया। माता पिता की सेवा करने वालों पर कभी कोई संकट नहीं आते।
कथा आयोजन समिति के लक्ष्मी नारायण हटूका ने बताया कि संत श्री पुष्करदास जी महाराज ने कहा कि कथा वही है जो हमारी व्यथा को मिटाये। सत्संग वही है जो हमारी पीड़ा को दूर करे। भजन करने से हमारा अहंकार कम होता है। संतों की दृष्टि में सभी सामान हैं। ईश्वर को सदैव अपने साथ महसूस करो। प्रभु की याद से सभी सुख प्राप्त हो सकते है। मनुष्य सभी वस्तुओं और सुखों से ऊब सकता है परन्तु प्रभु की याद से कभी नहीं ऊब सकता। हर सुख एक सीमा में है, परन्तु परमात्मा का सुख असीम और अनंत है। भगवन ने परिवार और साधन मनुष्य की सुविधा के लिए दिए हैं, परन्तु मनुष्य अपना अधिकार जताना आरम्भ कर देता है, तब वह दुखी हो जाता है। मनुष्य ममता और मोह में इतना खो चूका है कि उसे कुछ सूझ ही नहीं रहा।
संत श्री पुष्करदास जी महाराज ने कहा कि अन्नदान, वस्त्रदान, विद्यादान, अभयदान और धनदान, ये सारे दान इंसान को पुण्य का भागी बनाते हैं। किसी भी वस्तु का दान करने से मन को सांसारिक आसक्ति यानी मोह से छुटकारा मिलता है. हर तरह के लगाव और भाव को छोड़ने की शुरुआत दान और क्षमा से ही होती है। दान एक ऐसा कार्य है, जिसके जरिए हम न केवल धर्म का ठीक-ठीक पालन कर पाते हैं बल्कि अपने जीवन की तमाम समस्याओं से भी निकल सकते हैं। आयु, रक्षा और सेहत के लिए तो दान को अचूक माना जाता है। जीवन की तमाम समस्याओं से निजात पाने के लिए भी दान का विशेष महत्व है. दान करने से ग्रहों की पीड़ा से भी मुक्ति पाना आसान हो जाता है। जिस इंसान को दान करने में आनंद मिलता है, उसे ईश्वर की असीम कृपा प्राप्त होती है क्योंकि देना इंसान को श्रेष्ठ और सत्कर्मी बनाता है।
संत श्री पुष्करदास जी महाराज ने कहा कि संतों के साथ बहुत-सी कथाएँ जुड़ी रहती हैं। नरसी मेहता के संबंध में भी ऐसी अनेक घटनाओं का वर्णन मिलता है। इनमें से कुछ का उल्लेख स्वयं उनके पदों में मिलने से लोग इन्हें यथार्थ घटनाएं भी मानते हैं। उन दिनों हुंडी का प्रचलन था। लोग पैदल-यात्रा में नकद धन नहीं ले जाते थे। किसी विश्वस्त और प्रसिद्ध व्यक्ति के पास रुपया जमा करके उससे दूसरे शहर के व्यक्ति के नाम हुंडी (धनादेश) लिखा लेते थे। नरसिंह मेहता की गरीबी का उपहास करने के लिए कुछ शरारती लोगों ने द्वारका जाने वाले तीर्थ यात्रियों से हुंडी लिखवा ली, पर जब यात्री द्वारका पहुंचे तो श्यामल शाह सेठ का रूप धारण करके श्रीकृष्ण ने नरसिंह की हुंडी का धन तीर्थयात्रियों को दे दिया।
कथा के दौरान संत श्री पुष्करदास जी महाराज ने साज की मधुर धुन पर राधा कृष्ण नाम संकीर्तन के पश्चात सांवरिया तेरी याद महा सुखदायी, मन लगो मेरो यार फकीरी में में, हरी गुण गाय ले रे तेरा जब तक सुखी है शरीर, आया रे आया आया म्हारे संत पावणा आया, दाता एक राम सारी दुनिया, वैष्णव जन तो तेने कहिये जे पीर परायी जाने रे, कीर्तन की है रात बाबा आज थाने आनो है आदि भजन भी प्रस्तुत किये जिस पर कथा प्रांगण मे उपस्थित श्रद्धालु भाव विभोर होकर नृत्य करने लगे। सोमवार को मुंबई निवासी शिवराज गोयल द्वारा दो ट्रॉली हरा चारा गौशाला की गायों को खिलाया गया।
सोमवार की कथा का शुभारम्भ ग्रन्थ पूजन से हुआ। कथा आयोजन समिति के सदस्यों शंकरलाल बंसल, ओमप्रकाश मंगल, अशोक पंसारी, जगदीश कांकाणी, किशनचंद बंसल, लक्ष्मीनारायण हटूका, चतुर्भुज अग्रवाल, ईश्वर चंद्र अग्रवाल, कृष्णकांत शाह तथा सर्वेश्वर अग्रवाल ने कथा पूजन किया और संत श्री पुष्करदास जी महाराज ने का चरणवन्दन किया। मंच संचालन उमेश गर्ग ने किया।

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