साहित्य अकादमी की नाट्यलेखन कार्यशाला सम्पन्न

sophia natya karyashalaअजमेर/जो लोग दुःखी, शोकाकुल, श्रम से थके हुए या विरक्त हैं नाटक उन सबको विश्रांन्ति देने का काम करता है। आचार्य भरतमुनि के इस कथन का उल्लेख करते हुए विख्यात रंगकर्मी अशोक राही ने कहा कि नाटक का उद्देश्य मनोरंजन के साथ-साथ कहीं समाज को दिशा देने का भी होता है। उन्होंने कहा कि नाटक लिखने के लिए विषय के साथ सकारात्मक दृष्टि होना भी आवश्यक है। नाटक संवाद प्रधान होते हैं और फिल्म दृश्य प्रधान। प्रत्येक पात्र की अपनी भाषा होती है। रंगीली भानुमति और खेजड़ी की बेटी के दृश्यों का अभिनेयतापूर्वक पाठ करते हुए राही ने युवा रचनाकारों को समाज की विकृतियों के प्रति जागरूक करने के लिए नाटकों के प्रयोग पर बल दिया। वे राजस्थान साहित्य अकादमी द्वारा युवापीढ़ी में साहित्य के प्रति अभिरूचि जाग्रत करने और नये रचनाकारों को प्रोत्साहित करने की दृष्टि से मंगलवार 9 जनवरी 2018 को सोफिया कॉलेज में आयोजित नाटक विधा पर केन्द्रित ‘रचनात्मक लेखन कार्यशाला एवं प्रतियोगिता‘ मेे नाट्यविधा विशेषज्ञ के रूप में बोल रहे थे।
मुख्य अतिथि मदस विश्वविद्यालय के शिक्षा विभाग के डीन प्रो नगेन्द्र सिंह ने कहा कि शिक्षा का संबंध समझ, कर्म, साधना, सुधार और परिवर्तन से है। रचनात्मक लेखन, खासकर नाट्यलेखन का संबंध मानव की समझ से लेकर सामाजिक परिवर्तन लाने तक होता है। नाटक से व्यक्तित्व का विकास तो होता ही है यह जीवन के अनुभवों से समझने की क्षमता भी उत्पन्न करता है। विशिष्ट अतिथि उपेन्द्र शर्मा ने कहा कि दैनन्दिनी घटनाओं में दिख रहे विषयों को उजागर करने में नाटक, लघुफिल्मों का बखूबी उपयोग किया जा सकता है। यदि युवामन में कहीं भाव उमड़ते हैं तो उन्हें अभिव्यक्त अवश्य करना चाहिए। सोशल मीडिया पर भी रचनात्मक लिखते रहने से भी लेखन का अभ्यास होता है। मनपूर्वक लिखा जाए तो लेखन सुकून देता है। अध्यक्षीय उद्बोधन में प्राचार्य सिस्टर पर्ल ने जीवन में उत्कृष्टता पाने के लिए अच्छी शिक्षा के साथ-साथ लेखन जैसी रचनात्मक गतिविधियों के महत्व बताते हुए अकादमी के इस प्रयास को सार्थक कदम बताया। इस अवसर पर अकादमी अध्यक्ष इन्दुशेखर तत्पुरूष का संदेश भी पढ़कर सुनाया गया।
प्रारंभ में कार्यशाला संयोजक डॉ पूनम पाण्डे ने कार्यशाला के उद्देश्य के बारे में बताते हुए अतिथियों का परिचय दिया। प्रथम सत्र में 120 छात्राओं को नाट्यलेखन का विधिवत प्रशिक्षण देते हुए कला व सौंदर्यबोध शिक्षा के समन्वयक डॉ आयुष्मान गोस्वामी ने बृजभाषा के रोचक प्रसंगों को सुनाते हुए कहा कि नाटक छुपी हुई प्रतिभा को उजागर कर दूसरों तक अभिव्यक्त करने का प्रभावी माध्यम है और यह निर्णय लेना सिखाता है। शिक्षा में नाटक का प्रयोग करके अध्यापन को रूचिकर बनाया जा सकता है। प्रख्यात रंगकर्मी एवं राजस्थान साहित्य अकादमी सदस्य उमेश कुमार चौरसिया ने नाट्यलेखन के शिल्प के बारे में बताते हुए कहा कि नाटक के संवादों में कम शब्दों में अधिक कहने की प्रखरता होनी चाहिए। डॉ शमा खान ने नाटक को सामाजिक संवेदनाओं और भावनाओं की अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम बताते हुए कहा कि नाट्याभ्यास जीवन कौशल भी सिखाता है। हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ सुनीता सियाल ने आभार अभिव्यक्त किया और व्याख्याता डॉ अनीता सखलेचा ने कार्यक्रम का संचालन किया। अभियन्ता संदीप पाण्डे का विशेष सहयोग रहा। इस अवसर पर मुम्बई फिल्म उद्योग से जुड़े अजमेर के कलाकार प्रकर्ष गुंजल की लघु फिल्म ‘मुकाम‘, उपेन्द्र शर्मा की ‘हर स्माइल‘ और ‘लड़की जात‘ तथा उमेश कुमार चौरसिया द्वारा निर्देशित ‘बूढ़ी काकी‘ का प्रदर्शन भी किया गया। छात्राओं ने तालियों की गड़गड़ाहट से इन्हें सराहा।
श्रेेष्ठ लघु नाटकों को मिला पुरस्कार
दूसरे सत्र में प्रतिभागी विद्यार्थियों ने कार्यक्रम स्थल पर ही विविध विषयों पर लघु नाटक लिखे। इनका त्वरित मूल्यांकन करने के उपरान्त सुमन अख्तर के नाटक ‘नशा‘ को प्रथम, आशीमा अरूण के नाटक् ‘फादर और मॉन्स्टर‘ को द्वितीय, हानिया खातून के नाटक ‘अंधविश्वास‘ को तृतीय तथा दिव्या जैन के ‘वोट की कीमत‘, कीर्ति प्रभा के ‘उड़ान‘ और रूपल गहलोत के ‘रवि की पेंटिंग‘ नाटक को प्रोत्साहन पुरस्कार से पुरस्कृत किया गया। इन्हें प्रमाणपत्र, पुरस्कार और पुस्तकें भेंट की गईं।
डॉ पूनम पाण्डे
संयोजक
संपर्क-9828792720

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