न्यायालय के बाहर तय करने के प्रयास कभी सफल नहीं हो सकते

अजमेर 24 मार्च। बाबरी मस्जिद राम जन्मभूमि विवाद पर सूफी संत हजरत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती के वंशज एवं वंशानुगत सज्जादानशीन दीवान सैयद जैनुल आबेदीन अली खान ने कहा कि धार्मिक कट्टरता से किसी विवाद का हल नहीं निकल सकता है इसलिए सभी धर्मों को न्यायालय के फैसले मैं विवाद का हल तलाशना चाहिए क्योंकि इस मसले को न्यायालय के बाहर तय करने के प्रयास कभी सफल नहीं हो सकते।
दरगाह दीवान आबेदीन अपने पूर्वज सूफी संत हजरत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती के 806वें सालाना उर्स के समापन की पूर्व संध्या पर शनिवार को ख्वाजा साहब की दरगाह स्थित खानकाह (ख्वाजा साहब के जीवनकाल में बैठने का स्थान) में देश की प्रमुख दरगाह के सज्जादगान चिष्तिया खानकाहों के प्रमुख एवं धर्मगुरुओं की वार्षिक सभा को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि वर्तमान धार्मिक राजनीतिक और सांस्कृतिक ताकतें अयोध्या मसले पर एक व्यवहारिक समाधान नहीं निकाल पा रही हैं जिससे देश के सभी धर्मों के अनुयायियों में इस विवाद को लेकर एक संशय का माहौल है क्योंकि वर्तमान माहौल को देखते हुए सभी संप्रदाय के अधिकांश जागरूक नागरिक न्यायालय से बाहर किसी समाधान के लिए सहमत नहीं हो सकते हैं इसलिए आज की सभा में यह प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित किया जाना चाहिए कि देश के विकास और समृद्धि को ध्यान में रखते हुए राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद जैसे संवेदनशील मुद्दे का हल केवल सर्वोच्च न्यायालय में ही निहित है और देश के सभी धर्मों को मानने वाले धर्मावलंबियों को इस विवाद का हल निकालने के लिए न्यायालय के फैसले का इंतजार और सम्मान करना चाहिए।
उन्होंने कहा कि कट्टरपंथ किसी जटिल समस्या का समाधान नहीं होने देना चाहता है चाहे वह मुस्लिम धर्मावलंबी हो या हिंदू धर्म को मानने वाला हो। उन्होंने कहा कि दो धर्मों की आस्था से जुड़े इस मसले को न्यायालय से बाहर तय करने के प्रयास कभी भी सफल नहीं होंगे क्योंकि जहां हित जुड़े होते हैं वहां सर्वानुमति की कोई गुंजाइश नहीं होती। उन्होंने साफ तौर पर कहा कि देश को धार्मिक एवं राजनीतिक बयानबाजी से भी सावधान रहने की आवश्यकता है कि जो इस मसले के न्यायिक निस्तारण के बाद आतंकवाद से ग्रसित किसी मुल्क का हवाला देकर भारत जैसे शांतिप्रिय देश में अराजकता या ग्रह युद्ध होने जैसी कोरी कल्पनाओं की दलिलें देते हैं। देश की गंगा जमुनी तहजीब का अपना स्वर्णिम इतिहास है इस पर इतनी आसानी से आतंकवाद या गृह युद्ध जैसे हालात पनप नहीं सकते हैं।
दरगाह दीवान ने कहा कि मुल्क की नौजवान नस्लें अब विकास की और नजरें जमाई हुई हैं ऐसे में उन्हें धार्मिक कट्टरता में उलझाना देश के विकास उन्नति को बाधित करने जैसा होगा इस मुद्दे पर अब धार्मिक एवं राजनीतिक संगठनों को सियासत बंद कर देनी चाहिए क्योंकि सियासी बयानबाजी से वैमनस्य फैलने की आशंका रहती है इसलिए मौजूदा दौर मैं सियासी और मजहबी रहनुमाओं को भी इस संवेदनशील मसले के हल के लिए सर्वोच्च न्यायालय के फैसले पर यकीन करने की नीति का प्रचार किया जाना जरूरी है।
ख्वाजा साहब के जीवन काल में बैठकर उपदेश देने वाले इस स्थान खानकाह पर देश के विभिन्न प्रांतों की प्रमुख चिश्तिया दरगाहों से इस वार्षिक सभा में आए सज्जादगान धर्मगुरु चिश्तिया खानकाहों के प्रमुख पीरजादगान दो धर्मों को आपस में जोड़कर मोहब्बत का पैगाम देने वाले इस प्रस्ताव का स्वागत करते हुए इसे ध्वनिमत से पारित किया और कहा कि इस बात पर देश में सभी सज्जादगान सर्वानुमति बनाएंगे की बाबरी मस्जिद राम जन्मभूमि पर माननीय सर्वोच्च न्यायालय का जो भी फैसला आए उसे सभी संप्रदाय एवं वर्गों को स्वीकार करना चाहिए।
वार्षिक सभा में देशभर से आये धर्म प्रमुखों ने महिलाओं के अधिकार एवं सशक्तिकरण पर खुलकर चर्चा की दरगाह दीवान ने अपने संबोधन में कहा कि सभी धर्म शास्त्रों में महिलाओं के लिए एक समान सम्मान और अधिकारों की सफलता की वकालत की है सभी धर्मों में महिलाओं को सर्वोपरि बताकर जन्मदाता प्रथम गुरु का दर्जा देकर प्रकृति का संचालक तक कहा गया है वही पुरुष और महिलाओं के समान अधिकार और सम्मान का भी धर्म शास्त्रों में उल्लेख किया गया है। उन्होंने कहा कि जहां हिंदू धर्म में स्त्री को देवी के रूप बताया गया है, वहीं इस्लाम में भी महिलाओं को विशेष दर्जा देकर सम्मान दिया गया है हिंदू धर्म में पुरुषों को महिलाओं की सुरक्षा की जिम्मेदारी देकर कहीं मां तो कहीं जीवन संगिनी और बेटी के रूप बताकर विशेष स्थान दिया गया है वही इस्लाम धर्म मे महिलाओं को पुरा सम्मान दिया गया है। उन्होंने कहा कि वर्तमान परिवेश में इस पुरुष प्रधान समाज में स्त्री को निरीह कमजोर समझना मात्र मूर्खता ही कहा जाएगा जहां देश में विकास के नाम पर तमाम नई-नई तकनीकों को लाया जा रहा है और गांव भी शहर होते देखे जा रहे हैं महिलाओं के विकास के लिए बहुत तेजी से कदम उठाने की आवश्यकता है।
दीवान ने कहा कि सही मायनों में महिला सशक्तिकरण तभी हो सकता है जब समाज में महिलाओं के प्रति सोच में परिवर्तन लाया जा सके और उनके साथ उचित सम्मान, गरिमा, निष्पक्षता और समानता का व्यहार किया जाए। देश के ज्यादातर ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी सामंती और मध्ययुगीन दृष्टिकोण का वर्चस्व है और वहां महिलाओं को उनकी शिक्षा, विवाह, ड्रेस कोड, व्यवसाय एवं सामाजिक संबंधों इत्यादि में समानता का दर्जा नही दिया जाता हैं। हमें उम्मीद करना चाहिए कि जल्दी ही महिलाओं के सशक्तिकरण का प्रयास हमारे विशाल देश के प्रगतिशील एवं पिछड़े क्षेत्रों में भी किया जाएगा।
इस पारंपरिक आयोजन में देष प्रमुख चिष्तिया दरगाहों के सज्जादगान व धर्म प्रमुखों में शाह हसनी मियां नियाजी बरेली शरीफ, मोहम्मद शब्बीरूल हसन गुलबर्गा शरीफ कर्नाटक, अहमद निजामी दिल्ली, सैयद तुराब अली हलकट्टा शरीफ आध्रप्रदेष, सैयद जियाउद्दीन अमेटा शरीफ गुजरात, बादषाह मियां जियाई जयपुर, सैयद बदरूद्दीन दरबारे बारिया चटगांव बंगलादेष, सहित भागलपुर बिहार, फुलवारी शरीफ यु.पी., उत्तरांचल प्रदेष से गंगोह शरीफ दरबाह साबिर पाक कलियर के अलीषाह मियां, गुलबर्गा शरीफ में स्थित ख्वाजा बंदा नवाज गेसू दराज की दरगाह के के सज्जदानषीन नायब सज्जादानशीन सैयद यद्दुलाह हसैनी, दरगाह सूफी कमालुद्दीन चिष्ती के सज्जानषीन गुलाम नजमी फारूकी, नागौर शरीफ के पीर अब्दुल बाकी, दिल्ली स्थित दरगाह हजरत निजामुद्दीन के सैयद मोहम्मद निजामी, सहित देशभर के सज्जादगान मौजूद थे।

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