परहेज और प्राणायाम से अस्थमा का निदान प्रभावी

अजमेर, 1 मई( )। शुद्ध और प्रदूषण मुक्त वातावरण चाहिए तो सभी को खुद से पहल करनी होगी। सभी का छोटा-छोटा सहयोग पूरे नगर और प्रदेश को प्रदूषण मुक्त बना सकता है। साथ ही निरोगी और स्वस्थ रहने में स्वयं का व दूसरों का सहायक हो सकता है।
अतिरिक्त चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी अजमेर डाॅ सम्पत जोधा ने मंगलवार को मित्तल हाॅस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर अजमेर में ‘प्रदूषण एवं अस्थमा एक परिचय’ विषय पर आयोजित सेमिनार में अध्यक्षीय उद्बोधन देते हुए यह विचार रखे। उन्होंने देश की राजधानी दिल्ली के वातावरण प्रदूषण की स्थिति को अस्थमा एवं श्वास रोगियों के समक्ष साझा करते हुए प्रदूषण मुक्त वातावरण के लिए स्वयं ही जागरूक होने की सलाह दी।
सेमिनार का आयोजन विश्व अस्थमा दिवस एवं 29 वें सड़क सुरक्षा सप्ताह के अवसर पर किया गया था। सेमिनार की मुख्य अतिथि यातायात पुलिस उप अधीक्षक प्रीति चैधरी ने मित्तल हाॅस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर की ओर से सामाजिक सहभागिता में स्वास्थ्य जागरुकता शिविरों के आयोजन की पहल को सराहनीय बताया। सहायक नाजिम दरगाह डाॅ मोहम्मद आदिल ने श्वास व अस्थमा रोगी होने से बचाव के लिए परहेज को प्राथमिकता देने का सुझाव दिया। साथ ही चिकित्सकीय जांच व परामर्श को नियमित बनाए रखने की सलाह दी। सेमिनार में जिला यातायात अधिकारी प्रकाश टहलियानी, आटोरिक्शा यूनियन अजमेर के अध्यक्ष करण सिंह, यातायात पुलिस अजमेर के उपनिरीक्षक प्रेम प्रकाश आदि भी उपस्थित थे।
सेमिनार के मुख्य वक्ता मित्तल हाॅस्पिटल के श्वास एवं अस्थमा रोग विशेषज्ञ डाॅ. प्रमोद दाधीच ने बताया कि अस्थमा या दमा फेंफड़े का रोग है। जिसमें श्वास नलियों में सूजन व सिकुड़न आने से श्वास क्रिया में व्यवधान होता है और श्वास लेने में तकलीफ होती है, फिर धीरे धीरे शरीर में आक्सीजन की कमी रहने लगती है। डाॅ दाधीच ने बताया कि मरीज अपना निदान अपने लक्ष्णों के आधार पर करने लगता है जो कि गलत हैं। उन्होंने फेंफड़ों के कार्यक्षमता की जांच (स्पायरोमिट्री) द्वारा कराई जाकर रोग के स्तर के आधार पर इन्हेल्ड थैरेपी का निर्धारण करने की सलाह दी। डाॅ दाधीच ने कहा अस्थमा का मूल ईलाज श्वास के द्वारा ली जाने वाली दवा ही होती है मसलन इन्हेलर्स, रोटाहेलर्स, टर्बूहेलर्स आदि। नए डिवाइस फेंफड़े में अधिक दवा पहुंचाते हैं जिनके लम्बे इस्तेमाल के बावजूद भी कम दुष्प्रभाव के साथ रोग के प्रभावी उपचार में अधिक फायदा होता है।
डाॅ दाधीच ने जानकारी दी कि अस्थमा के अटेक में होने वाली मृत्यु दर 33 प्रतिशत है लिहाजा मरीज एलर्जिक कारकों से बचें जिससे अस्थमा का अटेक आने की संभावना रहती हैं। उन्होंने बताया कि अस्थमा की तकलीफ होने पर पूर्व में रिलीवर का इस्तेमाल किया जाता था। परन्तु अब जीना गाइडलाइन द्वारा अस्थमा का ईलाज स्मार्ट थैरेपी द्वारा किया जाता है। एलर्जिक अस्थमा के लिए ऐंटीआईजीई थैरेपी व पुराने अस्थमा के लिए ब्रोंकियल थर्मोप्लास्टी अस्थमा के नए ईलाजों में काफी कारगर हैं।
शिविर में सवा सौ से अधिक रोगियों ने जांच व परामर्श लाभ पाया। शिविर में ब्लड शुगर की जांच, कम्प्यूटर द्वारा फेफड़ों की स्पायरोमिट्री जांच, स्मोक चेक मीटर द्वारा फेफड़ों की जांच व पल्मोनोलाॅजिस्ट की परामर्श, डायटीशियन द्वारा खान-पान संबंधित सलाह तथा फिजीयोथैरेपिस्ट द्वारा श्वास रोगों से संबंधित योगा प्रणायाम एवं प्रोजक्टर द्वारा श्वास रोगों की जानकारी निःशुल्क प्रदान की गई। शिविर में पंजीकृत रोगियों के लिए चिकित्सक की ओर से निर्देशित अन्य जांचों पर 25 प्रतिशत एवं प्रोसीजर्स पर 10 प्रतिशत की छूट का लाभ भी दिया गया।
शिविर के प्रारम्भ में मित्तल हाॅस्पिटल के वाइस प्रेसीडेंट श्याम सोमानी से सभी अतिथियों का स्वागत किया। जनसम्पर्क प्रबन्धक सन्तोष गुप्ता ने अतिथियों का परिचय कराया व सेमिनार के विषय पर प्रकाश डाला। इस अवसर पर डायटीशियन नौशीना खान, वरिष्ठ जनसम्पर्क अधिकारी युवराज पाराशर, नितेश भारद्वाज का सराहनीय योगदान रहा।

संतोष गुप्ता/प्रबंधक जनसम्पर्क/9116049809

error: Content is protected !!