दीपदान और हूकार कवि सम्मेलन

महाराणा प्रताप जयंती अवसर पर देशभक्ति से ओत्र प्रोत्र ‘‘हूकार अखिल भारतीय कवि सम्मेलन’’ नौसर घाटी स्थित महाराणा प्रताप स्मारक पर आयोजित किया गया। इस कवि सम्मेलन में भक्ति भाव और ओजस्वी जैसी रचनाएं कवियों द्वारा प्रस्तुत की गई। कवि सम्मेलन में लखिमपुर खीरी के आशीष अनल, अजमेर के रासबिहारी गौड़, कानपुर के डॉ. सुरेश अवस्थी, उदयपुर की वीणा सागर और भीलवाड़ा के योगेन्द्र शर्मा अपनी कविताओं के माध्यम से सभी श्रोताओं में देशभक्ति रस और ओजस्वी रस को जाग्रत किया। सम्मेलन से पूर्व स्मारक पर दीपदान भी किया जायेगा। अजमेर विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष शिव शंकर हेडा के नेतृत्व में यह कार्यक्रम आयोजित किया गया। संयोजक सोमरत्न आर्य और सहसंयोजक सुनील जैन ने व्यवस्थाऐं देखी। इस अवसर पर विधायक भागीरथ चौधरी, दैनिक नवज्योति के दीन बन्धु चौधरी पूर्व जिला अध्यक्ष पूर्ण शंकर दशोरा, राजस्थान धरोहर संरक्षण एवं प्रोन्नोति प्राधिकरण के सदस्य कंवल प्रकश किशनानी, राम किशन प्रजापति आदि उपस्थित थे।
शिव शंकर हेड़ा ने कहा कि महाराणा प्रताप के जीवन का सबसे बडा संदेश मातृभूमि की सेवा करना है। अजमेर में महाराणा प्रताप स्मारक पर्यटन स्थल के साथ-साथ युवा पीढी के लिए बडी प्रेरणा का स्त्रोत है। महापुरूषों का जीवन लोगांें के लिए मार्ग प्रशस्त करता है। राज्य की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने इस स्मारक का उदघाटन कर लोगों को सुपुर्द किया। इस तरह के स्मारक सिर्फ पूर्वजों का स्मरण करना ही नहीं है बल्कि पीढियों को गौरवशाली इतिहास से जोडना भी है। उनके शोर्य की गाथा लोगों तक पहुंचाने के लिए हर साल इस तरह का उत्सव मनाया जाएगा।
आशीष अनल ने कहा कि अगर चाहने से भारत विश्व गुरू बन जाये, अगर चाहने से सोना धरेया अपने पर फिर फैलाये अगर चाहे तो अमर तिरण अम्बर तक ठहरा जाये सूरज स्वर्णिम किरणों से खुद वंदनवार सजा जाए। कानपुर से आये डॉ सुरेश अवस्थी, ने श्रोताओं को सुनाया जिंदगी का बही खाता प्रेम से भरो साहिब। अपने आप से ही सही कुछ तो डरो साहिब। चाहते जो हो वक्त- ऑडिटर से फाइल ओके अपनी काम दिल का, दिमाग से मत करो साहिब। रास बिहारी गौड़ ने अपनी कविता में युद्ध बहुत देखे हैं यहां युद्धों की परिपाटी ने त्याग का तप समझायाहमको हल्दी घाटी ने इतिहास में अमर हुए बलिदानी फलीभूत मिला धन्य धन्य वह धरा जिसे प्रताप सा सपूत मिला। वीणा शर्मा सागर ने श्रोताओं की चाहत पर मेरे भाई और बेटों ने तो भारती की सब सीमायें उबलते रक्त से ही धोई हैं शूरता को जन्म देती हर एक कोख यहाँ माताओं ने वीरता की फ़सलें ही बोई हैं नवब्याहतायें तन्हाई में सिसकती हैं चूंदड़ी के पल्ले मुँह में ठूँस ठूँस सोई हैं आँखे तरसी हैं जब भाई का मुँह देखने को बहनें मूर्ति को राखी बांध बांध रोई हैं यह सुनाया। योगेन्द्र शर्मा भीलवाड़ा ने अपने कविता पाठ में कहा कि रू रण का लक्ष्य विजय होता है लाशों का व्यापार नहीं। गीदड़ के बदले सिंहों की की कुर्बानी स्वीकार नहीं। बूंदाबांदी नहीं चाहिए ओलों की बरसात करो। अगर चले सीमा पर गोली गोलों की बरसात करो।

जितेन्द्र मिततल
प्रचार प्रमुख
मो. 9828528512

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