तन मन धन का सदुपयोग करें – संत मनोहर लाल

केकड़ी:- मन के हारे हार है मन के जीते जीत,तन को धन को खर्च कर ठीक किया जा सकता है, धन को मेहनत कर इकट्ठा किया जा सकता है और अगर मन दूषित है तो मन के रोग कभी ठीक नहीं हो सकते इसलिए तन, मन और धन का सदुपयोग करें। उक्त उद्गार कोटा से आए ज्ञान प्रचारक संत मनोहर लाल निरंकारी ने बणजारा मोहल्ला स्थित राजकमल भवन पर आयोजित सत्संग के दौरान व्यक्त किये।
मण्डल प्रवक्ता राम चन्द टहलानी के अनुसार संत मनोहर लाल ने कहा कि अपने सतगुरु पर पक्का यकीन करें क्योंकि सद्गुरु किसी भी के परदे नहीं उछालता है सबको परदापोष बनाकर रखता है और वहीं देख कर अनदेखा भी कर देते हैं।सद्गुरु ही परमात्मा का ज्ञान कराते हैं सारा संसार असत्य है सत्य केवल एक परमात्मा है,संसार एक मुसाफिर खाना है सबको अपना-अपना पार्ट अदा करके चले जाना है इसलिए किसी को दुख नहीं सुख देने का प्रयास करें,तोड़ने का नहीं जोड़ने का काम करें,रिश्ते तोड़े नहीं कायम रखने का प्रयास करें, बिगड़ने बिगाड़ने का नहीं सुधरने सुधारने का काम करें तो जीवन में आनंद ही आनंद है क्योंकि इंसान जीवन में जितना भी छल कपट कमाता है आवश्यकता से अधिक धन इकट्ठा करता है साथ नहीं जाना है एक सुई भी साथ नहीं जाती है इसलिए धन का इकट्ठा करना तब है जब है जब उसका सदुपयोग हो धर्मार्थ के परमार्थ के काम आएं क्योंकि संसार के सब सुख साधन यहीं छोड़ जाना है जाना केवल एक परमात्मा का नाम धन है इसलिए चलते-फिरते, उठते-बैठते,खाते-पीते परमात्मा का चिंतन,मनन,सत्संग,सेवा सिमरन करते रहना चाहिए। सत्संग से विवेक जागृत होता है पारस लोहे को सोना बनाता है पर सद्गुरु आप सामान बनाते हैं इसलिए सत्संग में सतगुरु के,संतो के,महापुरुषों के आये वचनों का लाभ लेना चाहिए अपने जीवन में अपनाना चाहिए जिससे जीवन में सुंदरता आती है।
सत्संग के दौरान मोहित,सानिया,सिल्की,लवीना,जया,दिव्या, नमन विधि संगीता आशा अशोक नरेश वंश प्रशांत इशिता आदि ने गीत विचार प्रस्तुत किए संचालन ऋशिता जेठवानी ने किया

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