पाठ्यक्रम का निर्माण विद्यार्थी के सम्पूर्ण व्यक्त्तिव के विकास को लक्ष्य बना कर हो

अजमेर 04 अगस्त। राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड एवं शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के संयुक्त तत्वावधान में विद्यालयीन शिक्षा का वर्तमान स्वरूप एवं भावी दिशा विषय पर आयोजित त्रि-दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला के दूसरे दिन शनिवार को शिक्षाविदों की राय थी कि पाठ्यक्रम का निर्माण विद्यार्थी के सम्पूर्ण व्यक्त्तिव के विकास को लक्ष्य मानकार किया जाना चाहिए। सम्पूर्ण राष्ट्र में विद्यालय शिक्षा का पाठ्यक्रम एक समान होना चाहिए। पाठ्यपुस्तकों की सामग्री मूल्यपरक और देश गौरव बढ़ाने वाली होनी चाहिए। भले ही देश में अलग-अलग प्रान्तों की अपनी भाषा है परन्तु प्राथमिक शिक्षा मातृभाषा में होनी चाहिए। शिक्षा के लिए गठित विभिन्न आयोगों ने भी इस बात की पैरवी की है।

विद्यालयीन शिक्षा का वर्तमान स्वरूप एवं भावी दिशा राष्ट्रीय कार्यशाला के संयोजक डॉ. दुर्गाप्रसाद अग्रवाल में बताया कि शनिवार को कार्यशाला में आज चार सत्रों का आयोजन किया गया। प्रत्येक सत्र में दो विषयों पर विस्तृत चर्चा की गई। प्रथम सत्र के प्रथम समूह में पाठ्यचर्चा, पाठ्यक्रम एवं पाठ्यसामग्री विषय पर राष्ट्रीय अखिल भारतीय विद्या भारती के राष्ट्रीय अध्यक्ष गोविन्द प्रसाद शर्मा ने कहा कि शिक्षा का आधार उस देश की सभ्यता, संस्कृति व मूल्य होने चाहिए। सम्पूर्ण भारत में समान पाठ्यक्रम के साथ ही पाठ्यपुस्तकों में देश का गौरव बढ़ाने वाले विषय समाहित होने चाहिए। इस सत्र के दूसरे समूह में विद्यालय का प्रबन्धन एवं परिवेश विषय पर चर्चा करते हुए देशराज शर्मा, तेलनगाना शिक्षा बोर्ड के बी राघव राव तथा घनश्याम वर्मन् ने बताया कि आध्यात्मिक व लोकतांत्रिक मानवीय मूल्यों पर आधारित वित्तीय प्रबन्धन पारदर्शी होना चाहिए। प्रबन्धन का लक्ष्य देश व समाज की आवश्यक को अनुसार होना चाहिए।

द्वितीय सत्र मे शैक्षिक एवं प्रोद्यौगिकी विभाग राजस्थान के अनुसंधान अधिकारी, हनुमान सिंह राठौड ने मूल्य आधारित शिक्षा विषय पर प्रकाश डालते हुए कहा कि संविधान में उल्लेखित सेक्युलरिजम शब्द के कारण हम शिक्षा में आवश्यक परिवर्तन नहीं कर पा रहे है। पाठ्यपुस्तकों में सकारात्मक परिवर्तन के परिणामस्वरूप ही जीवन मूल्यों को निर्माण होगा। शिक्षकों का समर्पित भाव, शिक्षक चयन प्रक्रिया व अभिभावकों के स्तर पर भी कार्ययोजना बनाने की आवश्यकता है। मूल्य शिक्षा पर समग्र पाठ्यक्रम का निर्माण हा,े जो सम्पूर्ण समाज का प्रतिनिधित्व कर सके। इसी सत्र में कर्नाटक शिक्षा बोर्ड के गंगाधर स्वामी ने कहा कि रामायण और महाभारत से प्रेरणा प्राप्त कर मूल्य आधारित शिक्षा की रचना की जानी चाहिए। इसी सत्र विद्यालयीन शिक्षा का माध्यम पर चर्चा करते हुए राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष भरत राम कुम्हार एवं छतीसगढ संस्कृत विद्या मण्डल के अध्यक्ष स्वामी परमात्मानंद, उत्तराखण्ड के आनन्द भारद्वाज, एवं हिमाचल प्रदेश ने स्कूल शिक्षा बोर्ड के संजय कपूर इत्यादि की सामूहिक राय थी कि शिक्षा मातृभाषा में हो साथ ही इन्होंने ने संस्कृत शिक्षा पर भी जोर दिया।

तृतीय सत्र का विषय में वर्तमान शिक्ष में शिक्षक शिक्षा का स्वरूप एवं व्यवहारिकता पर डीम्ड विश्वविद्यालय, सरदारशहर के कुलपति दिनेश वैद, इन्दौर की शिक्षाविद् शोभा पेठनकर एवं विवेक कोहली प्राचार्य डी.ए.वी. कॉलेज अम्बाला ने बताया कि शिक्षक-शिक्षा गुणवत्तापूर्ण हो, छात्र केन्द्रित हो जिससे विद्यार्थी का रचनात्मक विकास हो। सभी वक्ताओं ने विद्यार्थियों में स्वाध्याय की रूची जागृत करने की आवश्यकता को भी महत्वपूर्ण बताया। हरिणाणा केन्द्रीय विश्वविद्यालय के कुलाधिपति डॉ. पी.एल. चतुर्वेदी ने बी.एड. शिक्षण में सुधार के साथ ही शिक्षक शिक्षा में भारतीय संस्कृति, कला का समाहित करते हुए चार वर्षीय बी.एड. पाठ्यक्रम की सराहना की।

चतुर्थ सत्र में व्यक्त्तिव विकास एवं चरित्र निर्माण राष्ट्रीय सह-संयोजक के अशोक कडेल, हरिणाणा बोर्ड ऑफ सैकण्डरी एज्यूकेशन के राजेश कुमार, जम्मू कश्मीर शिक्षा बोर्ड के सुरेश कुमार ने कहा कि शिक्षा का उद्देश्य निर्धारित होने चाहिए। पर्यावरण एवं स्वच्छता के विषय भी पाठ्यक्रम में सम्मिलित करते हुए प्राच्य विद्याओं का आधुनिकता के साथ विकास करना चािहए।

पंचम एवं अन्तिम सत्र में नवाचार एवं अभिनव प्रयोग में भरत व्यास एवं संदीप जोशी ने बताया कि आज शिक्षा में अनेक नवाचारों की आवश्यकता है। राजस्थान के सरकारी विद्यालयों में नवाचारों में ‘‘भारत दर्शन गलियारे’’ की सभी ने सराहना की। सत्रों का संचालन क्रमशः डॉ. अनिल गुप्ता, डॉ. चन्द्रशेखर कच्छावा, संजय स्वामी एवं दसपति राव ने किया। समस्त सत्रों में देशभर से आये प्रतिभागियों ने भी चर्चा में भाग लिया।

उप निदेषक (जनसम्पर्क)

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