अहंकार भक्ति मार्ग में दीमक है -संत गोपाल

केकड़ी:– तलवार का घाव भर जाता है पर वाणी का घाव कभी नहीं भरता है।द्रोपदी के शब्द अंधे का बेटा अंधा नतीजा महाभारत का जन्म इसलिए तोल मोलकर मीठा बोलना है,सद्व्यवहार करना है,उसके साथ-साथ सावधान भी रहना है।उक्त उद्गार संत गोपाल ने अजमेर रोड से संत निरंकारी सत्संग भवन पर आयोजित सत्संग के दौरान व्यक्त किए।
मंडल प्रवक्ता राम चन्द टहलानी के अनुसार संत गोपाल ने कहा कि ब्रह्मज्ञानी का सकल आकार, ब्रह्मज्ञानी आप निरंकार,घट-घट में परमात्मा के दर्शन दीदार करना है बृह्म को जानकार की गई भक्ति उत्तम भक्ति कहलाती है।परमात्मा की भक्ति में ही सारे सुख समाए हुए हैं अगर इसमें लेशमात्र भी अहंकार जाता है तो वह दीमक के समान है जिसमें जीव का पतन ही होना है।शब्दों को सम्हाल कर बोलना है जैसा बोलेंगे वैसा ही लौट कर आना है हम आम बोयेंगे तो आम ही मिलेंगे,बबूल बोया है तो बबूल ही मिलेगा।संसार के उतार चढ़ाव जीव को डोलायमान करते हैं इसमें घबराना नहीं है हिम्मत से काम करना है,संतों का संग कर सत्संग,सेवा,सिमरण से जुड़ना है। संत से,गुरु से,परमात्मा से मांगने का ढ़ंग भी मांगना है प्यार,नम्रता,सहनशीलता,आदर-सत्कार वाले गुण जिस इंसान में होते हैं वह सब का भला मांगता है।काम,क्रोध,लोभ,मोह,अहंकार जिसमें हैं वह नुकसान ही करता है।अब हमें तय करना है कि हमें किस का संग करना है।समय के साथ-साथ हर वस्तु बदलती रहती है हमें स्वयं में अच्छे संस्कार भरने हैं, अपने बच्चों को भी अच्छे संस्कार देने हैं जिससे सभी का नाम रोशन होता है व जीवन भी खुशहाल रहता है।गुरु सर्वकला समरथ होते हैं,तीन लोक के स्वामीं होते हैं वो हमेशा सबका भला करते हैं। लेकिन जिस भी इंसान ने गुरु पर शंका कि वह डूबता अवश्य है और औरों को भी डुबोने का काम करता है।
सत्संग के दौरान माया,संगीता,आशा,शीतल,समृद्धि,मंजू मोहित,लक्ष्मण,नमन,उमेश आदि ने गीत विचार भजन प्रस्तुत किए। संचालन अशोक रंगवानी ने किया।

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