मनुश्य को भक्षक नहीं रक्षक बनने की आवष्यकता

मनुश्य को भक्षक नहीं रक्षक बनने की आवष्यकता है। हम उपभोग करने की सीमाओं को लाघते हुए हमारे अपरिहार्य जैसे महान कर्तव्यों को भूल चुके हैं। उपभोक्तावाद के अंधानुकरण के चलते हम आंखे मूद कर प्रकृति के भक्षक हो चले है हमें प्रकृति का भक्षक न होकर रक्षक बनने की आवष्यक्ता है यह विचार बुधवार को स्वदेषी जागरण मंच के प्रदेष संयोजक डॉ धमेन्द्र दुबे ने पुश्कर रोड स्थिति आदर्ष विद्या मंदिर विद्यालय में आयोजित तारणा त्रयोदषी कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए कहे। दुबे ने कहा कि प्रकुति में तीन लाख से अधिक छोटे फूलपौधे हमारे यहां विद्यमान है इनके परागकणों तथा बीजों से संरक्षित रहने वाले एक लाख पचास हजार कीट पतंगे हैं इन सबका मनुश्यों के द्वारा प्रकृति की अतिदोहन करने के कारण तथा अपने फायदे के लिए विभिन्न रसायनों के उपयोग के फलस्वरूप यह प्रजातियां नश्ट होती जा रही है। हम एक की प्रकार के खद्यान का उपयोग करने के कारण विभिन्न प्रकार के रोगों से ग्रसित होते जा रहे हैं हमारे खानपान पर इस जहर युक्त कृशि के कारण पडे प्रभाव के चलते कैंसर षुगर, हद्य रोग जैसे विभिन्न बिमारियों से पीढियां ग्रसित हो रही है।

स्वदेषी न अपनाने के परिणाम स्वरूप उद्योग धंधों के समाप्त होने के फलस्वरूप बढ रही बेरोजगारी एवम् अवसाद के चलते मनुश्य जल्दी बुढा हो रहा है। हमारे भोजन में से पौश्टिक तत्व गायब हो रहे है और हम कृत्रिम दवाई रूपी विटामिनों के भरोसे जीवन को आगे बढा रहे है हमें हमारे भोजन में पौश्टि तत्वों को लाने के लिए जैव विविधता को कायम रखना पडेगा। इसी लिए तारणा त्रयोदषी को जैवविविधता दिवस के रूप में स्वदेषी जागरण मंच मना रहा है।

उन्होंने विदेषी कम्पनियों के ब्रान्डेड के नाम पर युवाओं एवम् बालकों पर विभिन्न प्रचार माध्यमों से बढ रहे दबाव के चलते विदेषी वस्तुओं की खरीद तथा चीन एवम् अन्य देषी द्वारा भारत में की जा रही डंम्पिग के चलते भारतीय विनिर्माण क्षेत्र के तबाह होने पर भी चिन्ता जताई क्योकि अब निर्माण की तुलना में बडी कम्पनियों टेªडिंग का कार्य करने लगी है वही विदेष व्यापार घाटा बढता जा रहा है।

इस अवसर पर कार्यक्रम के अध्यक्ष संघ के निरंजन षर्मा विभाग सह सम्पर्क प्रमुख तथा डॉ रष्मिी षर्मा, डा अरूण अरोडा, डॉ मनोज बहरवाल दिलीप चौहान ने अपने विचार रखे। स्वदेषी जागरण मंच के महानगर संयोजक डॉ संत कुमार द्वारा कार्यक्रम का संचालन किया गया।

विभाग संयोजक
डॉ अरूण अरोडा

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