दया धर्म का मूल है पाप मूल अभिमान

केकड़ी :– अगर हम मानव हैं तो हमारा व्यवहार भी मानव जैसा होना चाहिए हमारे अंदर मानवीय गुण होने चाहिए सब जीवों के प्रति हमारे अंदर दया भाव होना चाहिए। उक्त उद्गार कोटा से आए ज्ञान प्रचारक संत मनोहर लाल ने बघेरा रोड स्थित झूलेलाल भवन पर शुक्रवार की रात्रि को आयोजित सत्संग के दौरान व्यक्त किए।
मीडिया सहायक राम चंद टहलानी के अनुसार संत मनोहर लाल ने कहा कि दया धर्म का मूल है पाप मूल अभिमान, तुलसी दया ना छोड़िए जब लग घट में प्राण। जब तक इंसान जिंदा है उसे हर पल दया का, क्षमा का भाव हृदय में रखना होगा तभी वह इंसान कहलाने के लायक बन पाता है। दुख मुसीबत आने पर इंसान की औकात का पता चलता है कभी भी जीवन में निराशा का भाव नहीं रखना चाहिए दुख- सुख तो आते जाते रहते हैं हर पल परमात्मा का धन्यवाद करें।
परमात्मा ने उत्तम योनि के साथ साथ बुद्धि- विवेक भी दिया है इससे इंसान दुनिया की हर वस्तु हासिल कर सकता है पर संतोष धन तो संतो के संग से,परमात्मा के स्मरण से,सत्संग से ही हासिल हो पाता है।
इंसान में इंसानियत वाले गुणों का होना जरूरी है,कोई कड़वे बोल भी बोल दे तो सहन करने की शक्ति भी होनी चाहिए। परमात्मा के आगे किसी का जोर नहीं चलता है परमात्मा ने इंसान को पांच ज्ञानेंद्रियां और पांच कर्मेन्द्रियाँ दी है इस पर अहंकार न कर परमात्मा की सौगात समझ कर काम में लेना चाहिए।इंसान दया,क्षमा,उदारता के भाव को पैदा कर अपनी शक्तियों को उजागर कर सत्कार्य में लगानी चाहिए। निंदा,चुगली,वैर, विरोध,नफरत इंसान को गर्त की ओर धकेलती हैं।प्यार,नमृता , सहनशीलता,अपनापन,ऊंचाइयां प्रदान करती हैं।इन्हें हमें धारण करना होगा खुशनसीब है वह इंसान जिसे संतो महापुरुषों का संग मिला है सत्संग,सिमरण, सेवा मिली है।
सत्संग के दौरान संत मनोहर लाल ने कहा कि इंसान परमात्मा की कृपा से कई प्रकार के दान कर सकता है इसमें रक्तदान भी एक गुण है मौका मिलने पर इसे कभी नहीं छोड़ना चाहिए।इससे इंसान दूसरों को जीवन दान जैसा महान कार्य कर पाता है।
सत्संग के दौरान सिमरन,प्राची , याशी,हैप्पी,भरत,समृद्धि,नमन, विधि,संगीता,नरेश,अशोक रंगवानी, रामचंद्र,ईशा, प्रशांत आदि ने गीत विचार भजन प्रस्तुत किए संचालन लवली भगतानी ने किया।

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