योग तन की,सत्संग मन की ताकत है

केकड़ी 12 मई।परमात्मा की कृपा का अंत नहीं है सारी धरती का कागज बना लें, सारे वृक्षों की कलम बना लें, सारे समुद्रों के पानी की स्याही बना लें तो भी परमात्मा की महिमा नहीं लिखी जा सकती है।ऐसे परमात्मा का उठते-बैठते,चलते-फिरते, खाते-पीते स्मरण करके धन्यवाद देना ही बनता है। उक्त उद्गार बहन संगीता ने अजमेर रोड स्थित सन्त निरंकारी सत्संग भवन पर आयोजित सत्संग के दौरान व्यक्त किए।
मीडिया सहायक राम चंद टहलानी के अनुसार बहन संगीता ने कहा कि हे परमात्मा तूने जो प्यार दिया है वह संभाला नहीं जा सकता बस तेरी कृपा के शुक्रगुजार बन कर रहें।
प्यार,नम्रता,सहनशीलता को अपना कर ही जीवन जीना है। जिस प्रकार योग तन को स्वस्थ रखता है ठीक उसी प्रकार सत्संग मन को शांत व स्थिर रखता है सत्संग,सेवा,सिमरन ही तन,मन की ताकत है परमात्मा का ज्ञान होने के बाद हमें शरीरों से नहीं परमात्मा से,आत्मा से प्यार करना है।
संकीर्णताओं को छोड़कर विशालता को अपनाना है वैर, विरोध,नफरत का त्याग करना है। सब के साथ प्यार,नम्रता से व्यवहार करना है,सब में एक परमात्मा की आत्मा काम कर रही होती है सबका आदर सत्कार करना है।तेरा रूप है यह संसार,सबका भला करो करतार वाली भावना हर पल मन में रखनी है जिससे यह संसार,घर- परिवार सुंदर नजर आने लगते हैं। कभी भी तन,मन,धन का अहंकार नहीं करना है बस तेरा- तेरा करके जीवन जीने में आनंद की अनुभूति प्राप्त होती है हमें अपने जीवन में नफरत की दीवारें तोड़कर प्यार के पुल बनाने हैं।
सत्संग के दौरान नमन,मोहित, सानिया,आरती,गौरव,मंजू, दीपक,विवेक,समृद्धि,रेणू, भगवान,हेमराज,दिव्या,रतन चन्द, गुड्डू,प्रीति,आशा अशोक रंगवानी आदि ने गीत विचार भजन प्रस्तुत किए संचालन नरेश कारिहा ने किया।

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