साहित्यकार डॉ रामगोपाल गोयल की स्मृति में काव्य गोष्ठी आयोजित

अंतर्भारती साहित्य एवं कला परिषद अजमेर के संस्थापक डॉ रामगोपाल गोयल की नवीं पुण्य तिथि एवं पितृ दिवस के अवसर पर रविवार को काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया । ब्रिगेडित्यर एस.एस. दास ने ” तुम सतत् साहित्य सृजन,उन्नयन, तुम विस्मरणीय कविता का आगाज करके डाँ. गोयल को याद किया ।” वो मुझे ही मुझे देखती सी लगी” गजल को तरन्नुम में गाकर गोपाल गर्ग ने गोष्ठी को आगे बढ़ाया । डाँ. बृजेश माथुर ने सफर आप दिल का पढ़ा कीजिये गजल से गोष्ठी को ऊंणाइयां दी । मुख्य अतिथि डॉ अनंत भटनागर ने कांप रहा है मन कविता में पिता के दर को उकेरा तथा अध्यक्षता कर रहे साहित्यकार उमेश कुमार चौरसिया ने करना ही पड़ता है बुजुर्गों का लिहाज के द्वारा परिवारों की स्थिति को दर्शाया । सञ्चालन कर रहे गोविन्द भारद्वाज ने चली नफरतों की हवा फिर शहर में रचना सुनाई । प्रारंभ में परिषद के अध्यक्ष श्री अनिल गोयल ने अतिथियों को पुष्पहार पहनाकर स्वागत किया । डाँ. अनंत भटनागर ,उमेश चौरसिया, विशिष्ट अतिथि सुरेश कासलीवाल तथा परिषद के कोषाध्यक्ष श्री कल्याण राय ने स्व. गोयल के व्यक्तित्व एवं कृतित्व के बारे में अपने-अपने अनुभव बताते हुए साहित्य में उनके योगदान को अनुकरणीय बताया ।

गीतगार गौरव दुबे ने हार कर तुमको जीता दम हमने, आनंद शर्मा नेतुम हवा हो, प्रदीप गुप्ता ने जब वह पिता बना , सुमन शर्मा ने सुख-दु:ख धूप छाँव मेंखुशियों की अनुगूंज होते हैं पिता, तेजसिंह कछावाने तू इध बूढ़े दरख्तों की हवाएं साथ रख लेना,सुनील मित्तल ने जीवन में अनुशासन है पिता, तानसिंह शेखावत ने पिता के चरणों में चारों धाम,डाँ. स्वर्णकांता अरोड़ा नेतुम्हारे जाने के बाद,जगदीश नागर ने सावन तो सूख गयो,सादिक अली ने अपनी चिर परिचित मधुर आवाज में गजल सूनी आँखों में है बहता दरिया ,डाँ. विष्णुदत्त शर्मा ने पिता उत्स है सृष्टि का,डाँ. विनिता जैन ने जब छन्दों में शब्द झमकते हैं, डाँ. कविता अग्रवाल ने धन्य हूं मैं पिता का प्यार पाकर,देवदत्त शर्मा ने आकाश से ऊ़चे पिता,गंगाधर हिन्दुस्तान ने शान हिन्दुस्तान की कोई मिटा नहीं सकता,विनिता बाड़मेरा ने बाबूजी लौट आओ, डाँ. चेतना उपाध्याय ने पापा मेरे बड़े रसीले, डाँ. ध्वनि मिश्रा ने तू जितनातन्हा लगता है उतना ही अपना लगता है, कविता सुनाई ।
अनिल गोयल ( अध्यक्ष )

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