इच्छाओं का कभी अन्त नहीं होता, सोना भी तप कर शुद्व होता है

अजमेर 09 सितम्बर 2019 – श्री 1008 पार्ष्वनाथ दिगम्बर जैसवाल जैन मंदिर कमेटी केसरगंज दस दिवसीय पर्वाधिराज पर्यूषण पर्व महोत्सव की श्रृखंला में आज सातवंे दिन उत्तम तप धर्म मनाया गया।
यह जानकारी देते हुए प्रचार प्रसार संयोजक राकेष घीया ने बताया कि सर्वप्रथम प्रातः 6ः15 बजे शांतिधारा अभिषेक व संगीतमय पूजन विधान कार्यक्रम आयोजित किये गये । सांयकालिन कार्यक्रम मे रात्रि 8ः00 बजे सांगानेर से पधारे विषेष प्रवचन पर उत्तम तप धर्म पर धर्म सभा को सम्बोधित करते हुए पंडित सत्यम जी ने कहा कि जहाँ पर तप हैं वहाँ मोक्ष नियामक हैं। तप करके ही फल आदि पकते हैं बिना तपे नहंी अपक्व फल स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होते हैं उसी प्रकार बिना तपे हमारी आत्मा पूर्ण परमात्मा के सांचे में नहीं ढल सकती। तप का अर्थ है तत्त्वभूत पवित्र अवस्था, तल्लीन होकर परमात्मा की दषा का अनुभव करना अथवा अपने पवित्र आचरण के लिए सदैव तत्पर रहना। कुभकर जब तक कच्चे घड़े को तपाये नहीं, तब तक वह दीर्घ जीवी नहीं हो सकते। सोना तभी शुद्ध बनता है जब वह तप जाता हैं। गंदगी में पड़ा बर्तन अग्नि में तपाकर ही शुद्ध होता है। तपा हुआ जल स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है उसी प्रकार आत्मा रूपी कनक पाषण को परमात्मा रूपी शुद्व सोना बनाने के लिए तप आवष्यक है जिससे आत्मा पर लगी कर्म रूपी किट्टकालिमा जलकर नष्ट हो जाती है। तपस्या करने से विकास नष्ट हो जाते हैं। अपनी इच्छाओं का त्याग करना तप है। इस मनुष्य रूपी यन्त्र में ऐसी अनोखी शक्ति है कि एक इच्छा पूरी करते-करते एक क्षण में अनेक इच्छायें उत्पन्न हो जाती हैं । जब तक इच्छाओं का जन्म होता रहता है तब तक मानव संसार में दुख उठाता रहता है।

राकेष घीया
प्रचार प्रसार संयोजक
मो. 9352000220

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